________________
पृष्ठाङ्क
१६७
१६८
१६६-१७६
१७६-१८७
१८७-१६० १८७ १८७ १८
सूत्रसंख्या विषय
गायाङ्क t-११ कौतूहल से हार, अर्धहार आदि के निर्माण एवं धारण ___आदि का निषेध
५६१४-५६१५ १२-१४ कौतूहल से अजिन, कम्बल आदि के निर्माण एवं धारण आदि का निषेध
५६१६-५६१७ १५-६७ निन्थी को निग्रन्थ के पाद, काय, व्रण आदि का
अन्यतीर्थी तथा गृहस्थ से प्रमार्जन, परिमर्दन, उद्वर्तन एवं प्रक्षालन आदि करने का निषेध
५६१८-४६३० ६८-१२० निग्रन्थ को निन्थी के पाद, काय, व्रण आदि का
अन्यतीर्थी तथा गृहस्थ से प्रमार्जन, परिमर्दन, उद्वर्तन तथा प्रक्षालन आदि कराने का निषेध
५६३१ १२१ सदृश निर्ग्रन्थ को उपाश्रय में विद्यमान स्थान न देने
वाले निग्रन्थ को प्रायश्चित्त सहशता की व्याख्या
५६३२ दशविध स्थित कल्प
५६३३ स्थापना-कल्प के दो प्रकार और उत्तरगुण-कल्प ५६३४-५६३५ सदृश का आदेशान्तर, स्थान न देने पर प्रायश्चिन, तथा निर्ग्रन्य के प्रागमन के कारण
५६३६-५६३८ वसति से बाहर रहने में दोष तथा वसति-दान के अपवाद,
यतना मादि १२२ सदृश निग्रन्थी को उपाश्रय में विद्यमान स्थान न देने वाली निग्रन्थी को प्रायश्चित्त
५६४८ १२३ माला-हृत अशनादि लेने का निषेध
मालाहृत के ऊर्ध्व, अधः प्रादि भेद-प्रभेद; दोष, प्रायश्चित्त तथा अपवाद
२६४६-१९५३ १२४ कुशूल आदि में रखे हुए, फलतः कठिनता से ऊँचे-नीचे होकर दिये जाने वाले प्रशनादि का निषेध
५९५४ ५२५ वृत्तिका से लिप्त, फलतः भेदन करके दिये जाने वाले अशनादि का निषेध
५६५५-५६५७ १२६-१२६ पृथ्वी, जल, अग्नि और वनस्पति पर रखे हुए प्रश
नादि का निषेध पृथ्वी आदि और निक्षिप्त के प्रकार, दोष, शंकासमाधान, अपवाद और तद्विषयक यतना
५६५८-५६६४
१८८
५६३६-५६४७
१८६-१६०
१६१
१६१
१६१
१६१-१६२
१६२
१६२-१६३
१६३-१६४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org