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अचेलकस्सप
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अच्चन्त
1(1),333-335; पाचि. के एक खण्ड का नाम, पाचि. 125-147; परि. के एक खण्ड का नाम, परि. 30-32, 67-683; - वाद पु.. नग्न-तापसों का सिद्धान्त - दं द्वि. वि., ए. व. - ते उच्छेदवादं विस्सज्जेत्वा अचेलकवादं गहिसु, जा. अट्ठ. 3.215; - सावक पु.. नग्न या निर्वस्त्र रहनेवाले तापसों का श्रावक या शिष्य - का प्र. वि., ब. व. - गिही
ओदातवसना अचेलकसावका, अ. नि. 2(2).93; - सिक्खापद नपुं.. 41वें पाचित्तिय से सम्बद्ध विनय-शिक्षापद, पाचि. 125-127. अचेलकस्सप पु., एक तापस का नाम, जिसे भगवान् बुद्ध ने अपने सङ्ग में दीक्षित किया था, दी. नि. में एक 'वत्थु
का शीर्षक, दी. नि. 1.146. अचेलसुत्त नपुं.. स. नि. के एक सुत्त का नाम, स. नि.
1(2).18-21; 2(2).290-291. अचोर पु., चोर का निषे. [अचोर], वह, जो चोर नहीं है, वह, जो चौर्यकर्म में प्रवृत्त नहीं है - रा प्र. वि., ब. व. - ते पञ्चपि अचोरा, जा. अट्ठ. 1.369; - भाव पु., भाव., अचौर्यत्व - तेसं तथतो अचोरभावं अत्वा, जा. अट्ठ. 1.369; -राहरण त्रि., चोरों के द्वारा न ले जा सकने योग्य, चोरों के द्वारा हरण न करने योग्य - णं नपुं., प्र. वि., ए. व. - यथा, महाराज, आकासो न जायति, ... अनन्तो, एवमेव
खो, महाराज, निब्बानं न जायति, ... अचोराहरणं, मि. प. 292; - णो पु.. प्र. वि., ए. व. - असाधारणम सं.
अचोराहरणो निधि, खु. पा. 10. अच्चगमा, अच्चगा, अच्चगु अति + गम धातु का अद्य.. प्र. पु., ए. व., अतिगच्छति के अन्त. द्रष्ट.. अच्चकस त्रि., ब. स. [अत्यङ्कुश], अङ्कुश के द्वारा अदम्य, निरङ्कुश, अनियंत्रित- सो पु., प्र. वि., ए. व. - अच्चसोव नागो, वजितं मे तुत्ततोमर, दी. नि. 2.196. अच्चङ्गुल नपुं.. [अत्यङ्गुल]. एक अङ्गुल से अधिक - असंख्यहि
चाङ्गुल्या नआसंख्यत्थेसु अच्चङ्गुलं, मो. व्या. 3.44. अच्चति ।अच्च का वर्त, प्र. पु.. ए. व. [अर्चति], पूजा करता है, प्रशंसा करता है - च्चितुं निमि. कृ. - यो इमं
सेलं सुट्ट उपचरितुं अच्चितुं... जानाति .... जा. अट्ठ. 7.23... अच्चना स्त्री., [अर्चना], पूजा, समादर, सत्कार -
अपचित्यच्चना पूजा पहारो बलि मानना, अभि. प. 425. अच्चन्त त्रि., [अत्यन्त]. 1. पूर्ण, सम्पूर्ण, परम, अन्त का अतिक्रमण करने वाला, अविनाशधर्मा निर्वाण (नपुं. नाम के रूप में) -- न्तं नपुं, प्र. वि., ए. व. - सब्बदुक्खसमत्तिक्कम
सिवं, अच्चन्तमचलितं असङ्घतं. जा. अट्ठ. 5.452; अच्चन्तन्ति अन्तातीतं अविनासधम्म, जा. अट्ठ. 5.453; अन्तं अतीतत्ता अच्चन्तसङ्घातं अविनासधम्म निब्बानं .... अ. नि. अट्ठ. 3.342; 2. - अच्चन्तं क्रि. वि., प्रतिरू. निपा. क. सम्यक रूप से, अत्यधिक रूप से, पूर्ण रूप से - अस्स इन्दसमो राज, अच्चन्तं अजरामरो, जा. अट्ठ. 3.454; ख. लौकिक सन्दर्भ में, हमेशा, सदैव, लगातार, सतत रूप से - अपारनेय्यमच्चन्तं.... जा. अट्ठ. 6.44; नाच्चन्तं निकतिप्पओ, निकत्या सुखमेधति, जा. अट्ठ. 1.219; न अच्चन्तं सुखमेधति, निच्चकाले सुखस्मियेव पतिट्ठातुं न सक्कोति, जा. अट्ठ. 1.220; - कामानुगत त्रि., कर्म. स., कामभोगों अथवा इन्द्रियजनित सुखों के साथ अत्यधिक बंधा हुआ - स्स पु., प्र. वि., ए. व. - अच्चन्तकामानुगतस्साति अच्चन्तं कामं अनुगतस्स, जा. अट्ठ. 5.441; - कोधन त्रि., अत्यधिक क्रोधी स्वभाववाला - नो पु., ष. वि., ए. व. - चण्डो त्वच्चन्तकोधनो, अभि. प. 732; - क्खय पु., कर्म. स., पूर्ण विनाश - खयाति लोकुत्तरमग्गेन अच्चन्तक्खया, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).59; - खार त्रि., अत्यधिक नमकीन, बहुत अधिक खारा - रे नपुं.. सप्त. वि., ए. व. - अच्चन्तखारे उदके, अ. नि. अठ्ठ 2.433(रो.); - दालिद्दिय नपुं., कर्म. स. [अत्यन्त-दारिद्र्य], अत्यधिक दरिद्रता - यं द्वि. वि., ए. व. - ... अच्चन्तदालिदियं पापुणाति, जा. अट्ठ. 4.58; - दुस्सील्य नपुं., कर्म. स. [अत्यन्त-दौश्शील्य], अत्यधिक दुराचारमय व्यवहार अथवा मनोभाव - यस्स अच्चन्तदुस्सील्यं, ध. प. 162; अच्चन्तदुस्सील्यन्ति एकन्तदुस्सीलभावो, ध. प. अट्ठ. 2.85; - निट्ठ त्रि.. पूर्ण दृढ़ता वाला, हर तरह से परिपूर्ण - 8ो पु., प्र. वि., ए. व. - भिक्खु संखित्तेन ... होति अच्चन्तनिट्ठो ..., म. नि. 1.320; - नियामकथा स्त्री., कथा. के उन्नीसवें वग्ग की सातवीं कथा का शीर्षक, कथा. 472-74; - नियामता स्त्री., अन्तिम समाश्वासन, निश्चित प्रकृति की निर्भरता - अत्थि पुथुज्जनस्स अच्चन्तनियामता, कथा. 477; - निरोध पु., पूर्ण रूप से क्षय, समूचे तौर पर उन्मूलन - निरोधोपि हि खयनिरोधो च अच्चन्तनिरोधो चाति दुविधोयेव, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).194; - पेमानुगत त्रि., असीम प्रेमभाव से भरपूर - स्स पु.. ष. वि., ए. व. - अच्चन्तपेमानुगतस्स भरिया .... जा. अट्ठ. 5.445; - वण्ण त्रि., ब. स., अत्यधिक सुन्दर रूप वाला - ण्णा स्त्री., प्र. वि., ए. व. - नच्चन्तवण्णा न बहून कन्ता ..., जा. अट्ठ.
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