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अत्थविज्ञापन
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अत्थसन्धि
अत्थविज्ञापन नपुं., तत्पु. स. [अर्थविज्ञापन], अभिप्राय सम्पन्न त्रि., अर्थों एवं व्यञ्जनों से भरपूर - ...
अथवा मन की बात का प्रकाशन, तथ्य का प्रकाशन - अत्थब्यञ्जनसम्पन्नस्स धम्मकोसस्स ..., म. नि. अट्ठ. निज्जीवालपनं अप्पं अत्थविज्ञआपने सिया, सद्द. 1.172; - (मू.प.) 1(1).8; - नापगत त्रि., [अर्थव्यञ्जनापगत], अर्थ नी स्त्री., अर्थ को स्पष्ट करने वाली या सूचित करने वाली एवं व्यञ्जनों से रहित - ... अत्थब्यञ्जनापगतं भणितन्ति - विज्ञापनिन्ति अत्थविज्ञापनि, ध. प. अट्ठ. 2.388; सु. अत्थव्यञ्जनतो अपहरन्ति .... महानि. 121; - टि. संक्षिप्त नि. अट्ठ. 2.171.
और सारगर्भित बात को अर्थ तथा किसी बात के विस्तृत अत्थविनिच्छय पु., तत्पु. स. [अर्थविनिश्चय], विवाद- रूप से प्रस्तुत करने की पद्धति को व्यञ्जन कहा गया है. विषय का निर्णय, तात्पर्य का निश्चयात्मक अवधारण- अत्थव्याख्यान नपुं., ष. तत्पु. स. [अर्थव्याख्यान], पालि ... तस्स अत्थविनिच्छयस्स ओकासाकरणेन .... उदा. के एक ग्रन्थ का नाम, जो चूलबुद्धथेर द्वारा लिखित माना अट्ठ. 127; - जू त्रि., [अर्थविनिश्चयज्ञ], अर्थ-निर्धारण जाता है - अत्थव्याख्यानं चूळबुद्धथेरो, सा. वं. 32. का ज्ञाता, किसी विषय पर निर्णय करने में कुशल - अत्थब्यापत्ति स्त्री., ष. तत्पु. स. [अर्थब्यापत्ति], धन-संपत्ति अत्थविनिच्छयसूति तस्स तस्स अत्थस्स विनिच्छयकुसलो. का क्षय, धनहानि, - अत्थब्यापत्तीति यदा पन अत्तनो जा. अट्ठ. 3.178; न वेधती अत्थविनिच्छयञ्जू अ. नि. 2(1). अत्थब्यापत्ति यसविनासो होति, तदा अब्यथो अकिलमनं 52; अत्थविनिच्छ - यञ्जूति कारणत्थविनिच्छये कुसलो, अ. ..... जा. अट्ठ. 3.411. नि. अट्ठ. 3.24.
अत्थसंबड्डनकथा स्त्री., कर्म. स. [अर्थसंवर्धन - कथा], अत्थविभाग पु., तत्पु. स. [अर्थविभाग], पदार्थों या अर्थों का अर्थचर्या, हितकारक अथवा लाभदायक कथन - वर्गीकरण - तेसं अयं अत्थविभागो, विभ. अट्ठ. 172. अत्थचरियायाति अत्थसंवड्डनकथाय, दी. नि. अट्ठ.3.99. अत्थविभावना स्त्री., तत्पु. स. [अर्थविभावना]. अर्थ- अत्थसंहित त्रि., [अर्थसंहित], कल्याण से परिपूर्ण, सम्बन्धी विस्तृत व्याख्यान - तत्रायं अत्थविभावना, उदा. हितकारक, उपयोगी, मङ्गल-कारक, कारण-प्रकाशक - यं अट्ठ. 317.
समणो बहुभासति, उपेतं अस्थसंहितं. स. नि. 727; अत्थसंहितं अत्थविभावी त्रि., अर्थ-सम्बन्धी विस्तृत व्याख्यान करने अत्थुपेतं धम्मुपेतञ्च हितेन च संहितं. सु. नि. अट्ठ. 2.197; वाला, अर्थों की विभावना करने वाला(चित्त) - अत्थविभावी अत्थसंहितं तथागता पुच्छन्ति, नो अनत्थसंहितं, महाव. 66%; ति, अत्थस्स विभावनसीलं चित्तं .... सद्द. 1.86; 233. अत्थसंहितानि, भिक्खवे, धम्मचेतियानि आदिब्रह्मचरियकानि, अत्थविवरण नपुं., तत्पु. स. [अर्थविवरण], अर्थ का विवेचन, म. नि. 2.333. व्याख्यान - साधारणे विहअन्तीति इदं सब्बं परवसं दुक्खन्ति अत्थसद्दचिन्ता स्त्री., तत्पु. स. [शब्दार्थचिन्ता], शब्द एवं इमस्स पदस्स अत्थविवरणं, उदा. अट्ठ. 128.
अर्थ के बीच पाए जाने वाले सम्बन्ध पर विचार - अत्थविसेस पु., तत्पु. स. [अर्थविशेष], अर्थ में अन्तर अत्थसद्दचिन्तायं पन एवं उपलक्खेतब्ब, सद्द. 1.34. अथवा विशिष्टता - यत्थ ... लमति अत्थविसेसो च ..... अत्थसन्दस्सक पु., एक स्थविर का नाम - इत्थं सुदं सद्द. 1.38.
आयस्मा अत्थसन्दस्सको थेरो इमा गाथायो अभासित्थाति, अत्थव्यञ्जन नपुं., द्व. स., [अत्थ + व्यञ्जन], अर्थ एवं अप. 1.171. व्यञ्जन - अत्थव्यञ्जनतो अपहरन्ति, महानि. 121; - अत्थसन्दस्सन नपुं.. परमार्थ का संदर्शन या स्पष्ट रूप से ग्गहण नपुं, अर्थों एवं व्यञ्जनों की उपलब्धि - ... ज्ञान - कथं नानाधम्मप्पकासनता पा अत्थसन्दस्सने नानत्थव्यञ्जनग्गहणं होति ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) आणं, पटि. म. 96. 1(1).9; - परिपुण्ण त्रि., अर्थों एवं व्यञ्जनों से परिपूर्ण - अत्थसन्दस्सनी स्त्री., [अर्थसन्दर्शिनी], अर्थ अथवा तात्पर्य अत्थब्यञ्जनपरिपुण्णहि धम्म आदरेन अस्सुणन्तो महता को दरसाने वाली या सुस्पष्ट कराने वाली, अर्थप्रकाशिका हिता परिबाहिरो होतीति ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).9; - एसा ते उपमा राज, अत्थसन्दस्सनी कता, जा. अट्ठ. 5.245. - पारिपूरी स्त्री०, अर्थों एवं व्यञ्जनों के मामले में परिपूर्णता अत्थसन्धि पु., अर्थ के सम्बन्ध में सन्धि, पहले कही हुई बात - तदुभयेनपि अत्थब्यञ्जनपारिपूर्ति दीपेन्तो सवने आदरं को बाद में कही गई बात के साथ जोड़ने वाली चार जनेति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).9; खु. पा. अट्ठ. 84; - सन्धियों में से एक - सो चायं पुब्बापरो सन्धि चतुबिधो
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