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अप्पञत्ति/अप्पण्णत्ति
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अप्पटिकार
अपञत्तं तथागतेनाति दीपेति, महाव. 476; वज्जी अपञत्तं वाचकत्त नपु., अपञत्तिवाचक का भाव. न पञपेन्ति, दी. नि. 2.57; ... पुब्बे अकतं सङ्क वा बलिं [अप्रज्ञप्तिवाचकत्व], किसी नाम को कहने वाला न होना, वा दण्ड वा आहरापेन्ता अपञत्तं पञपेन्ति नाम, दी. नि. नाम का वाचक न रहना - कस्मा अपत्तिवाचकत्ता ति अट्ठ. 2.97; - तेन पु./नपुं., तृ. वि., ए. व. - अनुपसम्पन्ने दहब्ब, सद्द. 1.174. पञ्जत्तेन वा अपञत्तेन वा वुच्चमानो, पाचि. 153; अप्पात त्रि., पञ्ञात का निषे. [अप्रज्ञात], अज्ञात, अल्प अपञत्तेनाति सुत्ते वा अभिधम्मे वा आगतेन, पाचि. अट्ट रूप में विख्यात, भिक्षा आदि के सत्पात्र के रूप में अप्रसिद्ध, 116; - ते सप्त. वि., ए. व. - पुराणदुतियिकाय बाहायं - तो पु., प्र. वि., ए. व. - विहरे अञ्जतरो भिक्खु नवो गहेत्वा महावनं अज्झोगाहेत्वा अपञत्ते सिक्खापदे अप्पज्ञातो आबाधिको दुक्खितो बाळ्हगिलानो, स. नि. आदीनवदस्सो ... अभिविआपेसि, पारा. 19; अपञत्ते 2(2).50; अप्पातोति अज्ञातो अपाकटो, स. नि. अट्ठ. सिक्खापदेति पठमपाराजिकसिक्खापदे अट्ठपिते. पारा. अट्ठ. 3.16; अप्पञातोतिनं बाला, अवजानन्ति, अजानता, थेरगा. 1.164; - त्त नपुं., भाव. [अप्रज्ञप्तत्व], अनिर्दिष्ट, नहीं 129; - ता ब. व. - अयं अनाथा अप्पाता, पाचि. 308; बतलाया गया होना - अनुपोसथे उपोसथो कातब्बो इमे पनऊ भिक्खू अप्पाता अप्पेसक्खा ति, म. नि. तिसिक्खापदरस अपञ्जत्तत्ता, उदा. अट्ठ. 241.
1.253; अपाताति द्विन्नं जनानं ठितवाने न पञआयन्ति, अप्पजत्ति/अप्पण्णत्ति स्त्री., पत्ति/पण्णत्ति का निषे. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).130; - क नपुं.. [अप्रज्ञातत्व], [अप्रज्ञप्ति], अप्रकाशन, सूचित न किया जाना, अप्रादुर्भाव, प्रसिद्ध या विख्यात न होना, अप्रसिद्धि, अप्रकाशन, - केन तिरोभाव, अस्त हो जाना - निरुद्धा सा अच्चि अप्पञत्तिं तृ. वि., ए. व. - तेन च अपातकेन नो परितस्सति, अ. गताति, मि. प. 79; - भाव पु., तत्पु. स., प्रकाशन अथवा नि. 2(1).125; अपञातकेनाति अपञातभावेन अपाकटताय संसूचन का न रहना, नहीं ज्ञात कराया जाना, नहीं प्रकट मन्दपुञ्जताय, अ. नि. अट्ठ. 3.44; - भाव पु., उपरिवत् - किया जाना - यथा तस्मिं वत्थुस्मिं ... पायत्ति, एवं पुन अपातकेनाति अपञ्जातभावेन अपाकटताय मन्दपुञताय, अपजत्तिभावं नीताति अत्थो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) अ. नि. अट्ठ. 3.44. 1(2).20-21.
अप्पातिक' त्रि., ब. स. [अल्पज्ञातिक], बहुत कम सगेअप्पत्तिक/अपण्णत्तिक त्रि., पञत्तिक का निषे. सम्बन्धियों वाला- इदानि अप्पञातिकं अप्पपक्खं जातान्ति, [अप्रज्ञप्तिक], शा. अ. नामकरण नहीं किए जाने योग्य, अ. नि. अट्ठ. 1.65. बिना नाम वाला, बिना पहचान वाला- न यत्थ कत्थचि सङ्घ अप्पातिक नपुं., अपआतक के स्थान पर अप., द्रष्ट, उपेति अञदत्थु अनुपादानो विय जातवेदो परिनिब्बानतो अपञ्जातक के अन्त.. उद्धं अपञत्तिकोव होतीति, उदा. अट्ठ. 174; - भाव पु., अप्पटिकम्म' त्रि., ब. स. [अप्रतिकर्मन], क. अशुभ, अमङ्गल, तत्पु. स. [अप्रज्ञप्तिकभाव], नाम आदि द्वारा जानने योग्य अमङ्गलसूचक, असाध्य, लाइलाज - सप्पटिकम्मा, नहीं रह जाना, नामकरण या उपाधि आदि से ऊपर उठ अप्पटिकम्माति? कामं एते सपिना अतिफरुसत्ता अप्पटिकम्मा. जाना, पहचान-रहित हो जाना - अपण्णत्तिकभावं गमिस्सतीति जा. अट्ठ 1.320; ख. अक्षम्य, प्रायश्चित्त न किये जाने अत्थो दी. नि. अट्ठ. 1.109; सो गामोपि छड्डितो अपण्णत्तिकभावं योग्य - अप्पटिकम्मा आपत्ति जानितब्बा, परि. 2363B अगमासि, जा. अट्ठ. 1.456; ... तेसं वट्ट अपचत्तिभावं गतं । सप्पटिकम्म अप्पटिकम्म आपत्तिं न जानाति, परि. 345; निप्पत्तिकं जातं. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).24; उदा. कतेत्थ अप्पटिकम्मा वुत्ता, बुद्धनादिच्चबन्धुना, परि. 387. अट्ठ. 288; ला. अ. किसी विशेष वाद या सिद्धान्त को अप्पटिकम्म नपुं., पटिकम्म का निषे., तत्पु. स. प्रतिपादित न करने वाला, केवल विनय के नियमों के । [अप्रतिकर्मन्], प्रायश्चित्त का अभाव, निराकरण का न आचरण की शिक्षा देने वाला, अप्रत्यक्ष निर्वाण को होना, शुद्धि की प्राप्ति का न होना - भिक्खु आपत्तिया बतलाने वाला - न सो भगवा वेनयिको अप्पत्तिको ति, अप्पटिकम्मे उक्खित्तको विब्भमति, महाव. 124; आपत्तिया अ. नि. 3(2).162; अपत्तिकोति न किञ्चि पआपेतु अप्पटिकम्मे, उक्खेपनीयकम्मं करोतुं .... चूळव. 55. सक्कोति, अथ वा वेनयिकोति सत्तविनासको, अपञत्तिकोति अप्पटिकार त्रि., ब. स. [अप्रतिकार], 1. वह, जिसने अपने अपच्चक्खं निब्बानं पापेति, अ. नि. अट्ठ. 3.327; - अपराध का प्रायश्चित्त नहीं किया है, अपने अपराध कर्म की
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