Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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असु
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असुचि
व्यु. [असुक/अमुक], यह नाम वाला/वाली, फलाना - असुको असुका, असुकं असुके ति आदिना अमुको अमुका, सद्द. 1.278; - को पु., प्र. वि., ए.व. - असुको नाम तुम्हाकं एवञ्च एवञ्च अगुणं कथेती ति .... ध. प. अट्ठ. 1.225; - का स्त्री., प्र. वि., ए. व. - ननु त्वं पदुमकुमारस्स भरिया असुकरज्ञो धीता, असुका नाम.... जा. अट्ठ. 2.99%; -- कं नपुं., प्र. वि., ए. व. - असुकं नामा ति वुत्ते ..., जा. अट्ठ. 6.220; - कंपु., द्वि. वि., ए. व. - असुकञ्च असुकञ्चाति, जा. अट्ठ. 1.109; - केन पु., तृ. वि., ए. व. - असुकेन मे तेलं पक्कन्ति मा वदित्थ, ध. प. अट्ठ. 1.8; - कस्स पु., ष. वि., ए. व. - आणत्तिको नाम असुकस्स भण्डं अवहराति अझं आणापेति, पारा. अट्ठ. 1.243; - कस्मिं पु./नपुं.. सप्त. वि., ए. व. - अमुकस्मि गामे वा निगमे वा नगरे वा ति, म. नि. 2.100. असु पु.. प्र. वि., ए. व. [असु], प्राण - पाणो त्वसु पकासितो, अभि. प. 407; - म्हि सप्त. वि., ए. व. - असुम्हि च बले पाणो सत्ते हदयगानिले, अभि. प. 945. असुक्क त्रि., सुक्क का निषे., तत्पु. स. [अशुक्ल], अनुज्ज्वल, गन्दा, मलिन, काला (कर्म) - क्कं नपुं., प्र. वि., ए. व. - कम्म अकण्ह असुक्क अकण्हअसुक्कविपाक, म. नि. 2.59. असुक्ख त्रि., vसुस के भू. क. कृ. का निषे॰ [अशुष्क], नहीं सूखा हुआ, हरा-भरा या ताजा - क्खं नपुं॰, प्र. वि., ए. व. - रुक्खतो पन अवियोजितं असुक्खं भूतगामो ति वुच्चति, दी. नि. अट्ट, 1.75. असुख क. त्रि., ब. स. [असुख], सुख का अनुभव न कराने वाला, दुख से भरा, ख, नपुं., निषे. तत्पु. स. [असुख], सुख का अभाव, दुख, मन के लिए प्रतिकूल अनुभव - खाय च. वि., ए. व. - ... बहुजनअहिताय बहुजनअसुखाय अनत्थाय अहिताय दुक्खाय देवमनुस्सानं दी. नि. 3.195. असुखसयित त्रि., तत्पु. स., ठीक से सुखाकर भण्डारण । नहीं किया हुआ, अन्नभण्डार में ठीक से नहीं रखा गया - तानि नपुं., प्र. वि., ब. व. - बीजानि पतिद्वापेय्य खण्डानि ... असुखसयितानि दी. नि. 2.260; असुखसयितानीति यानि सक्खापेत्वा कोडे आकिरित्वा ठपितानि तानि सुखसयितानि नाम एतानि पन न तादिसानि, दी. नि. अट्ठ. 2.362. असुखुम त्रि., सुखुम का निषे.. तत्पु. स. [असूक्ष्म], स्थूल, मोटा-झोंटा, सुव्यक्त - मं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - दुदुल्लन्ति दुद्द च किलेसदूसित थूलञ्च असुखुम, अनिपुणन्ति वुत्तं होति, पारा. अट्ठ. 1.170.
असुङ्कारह त्रि., [अशुल्काह], शुल्क न लगाए जाने योग्य, टैक्स न भरने योग्य - हं नपुं., प्र. वि., ए. व. - चोरानं अनुपकारं सुङ्किकानं असुङ्कारहं मातिकापत्तञ्चेव ..., जा. अट्ठ. 5.243. असुचि त्रि., सुचि को निषे. [अशुचि], शा. अ. अपवित्र, गन्दा, मलिन - सम्भवे चासुचि पुमे अमेज्झे तीस दिस्सति, अभि. प. 1024; - चि पु., प्र. वि., ए. व. - असुचि पूतिलोमोसि, दुग्गन्धो वासि सूकर जा. अट्ठ. 2.10; असुचि दुग्गन्धो सभीरु सप्पटिभयो मित्तदुभी, अ. नि. 2(1).240; - ची ब. व. - इमे चुन्द दस अकुसलकम्मपथा असुचीयेव होन्ति असुचिकरणा, अ. नि. 3(2).234; अत्तद्वपञ्जा असुची मनुस्सा, सु. नि. 75; - चिना/चिया पु./स्त्री., तृ. वि., ए. व. - असुचिना कायकम्मेन ... असुचिया चेतनाय ... असुचिना पणिधिना समन्नागता, चूळनि. 275; ला. अ. 1. नपुं, शरीर के विविध द्वारों से बाहर होकर बहने वाला मल या गन्दगी- अथस्स नवहि सोतेहि, असुची सवति सब्बदा, सु. नि. 199; असुचि सवतीति सब्बलोकपाकटनानप्पकारपरमदुग्गन्धजेगुच्छ असुचियेव सवति, सु. नि. अट्ठ. 1.209; ला. अ. 2. वीर्य, शुक्र - असुचि सम्भवो सुक्कं अभि. प. 274; - चि द्वि. वि., ए. व. - तेसं... ओक्कमन्तानं सुपिनन्तेन असुचि मुच्चति, सेनासनं असुचिना मक्खियति, महाव. 385; - कपल्लक नपुं.. कर्म. स. [अशुचिकपालक]. गन्दे मल या विष्टा से भरी गगरी - कं द्वि. वि., ए. व. - पथविरसरस्स असुचिकपल्लक सीसेन उक्खिपित्वा विचरणं नाम ..., विभ. अट्ठ. 426; - करण त्रि., [अशुचिकरण], अपवित्र कर देने वाला, गन्दा बनाने वाला- णा पु..प्र. वि., ब. व. - दस अकुसलकम्मपथा असुचीयेव होन्ति असुचिकरणा च, अ. नि. 3(2).234; - कललकूप पु., कर्म. स. [अशुचिकललकूप]. अपवित्र वस्तुओं या मलों से भरा हुआ सालाब, अत्यन्त गन्दा जलाशय - पे सप्त. वि., ए. व. - चन्दनिकायाति असुचिकललकूपे, अ. नि. अट्ठ. 2.141; - कलिमल नपुं.. कर्म. स., अपवित्र एवं काले रंग का मल, आंख का कीचड़ एवं नाक के अन्दर से बह रहा नेटा-लं द्वि. वि., ए. व. - ... नयेन नानप्पकारकं असुचिकलिमलं वमतीति वम्मिको, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).33; - किलिट्ठ त्रि, तत्पु. स., अपवित्र वस्तु द्वारा गीला किया हुआ, मूत्र आदि अपवित्र द्रवों द्वारा भिगोया हुआ -पु., वि. वि., ए. व. - किलिन्न पस्सित्वाति असुचिकिलिट्ठ पस्सित्वा, पारा. अट्ठ. 1.224; -
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