Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 758
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहुवासिं 731 अहेतु अहत्वा सम्भोन्ति, हुत्वा पटिवेन्तीति, म. नि. 3.75; अहुत्वा सम्भोन्तीति इमिना उदयं परसति, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.61; अहुत्वायेवुप्पज्जन्ति, न कुतोचिपि आगता, ना. रू. प. 1543. अहुवासिं राहु (होना) का अद्य., उ. पु., ए. व., हुआ, था - अहवासिन्ति अहोसिन्ति, वि. व. अट्ट, 274; सद्द. 2.455. अहुहासिय नपुं.. [अट्टहास], दांत निकाल कर किया गया अट्टहास, महाहसित, ऊंची आवाज में हंसी -- यं द्वि. वि., ए. व. - कायं एळगळागुम्बे, करोति अहुहासियं, जा. अट्ठ. 3.194; अहुहासियन्ति दन्तविदसकं महाहसितं वुच्चति, जा. अट्ठ. 3.195. अहेठयन्त त्रि., हेठ (पीड़ा देना, अपमान करना) के वर्त. कृ. का निषे. [अहेठयत्]. पीड़ा न पहुंचाने वाला, कष्ट न देने वाला - यं/न्तो पु., प्र. वि., ए. व. - यथापि भमरो पुर्फ, वण्णगन्धमहेठयं ध. प. 49; ... अहेठयन्तो अविनासेन्तो विचरतीति अत्थो, ध. प. अट्ठ. 1.210; - यानो पु., प्र. वि., ए. व. उपरिवत् .. अनिस्सितो अञ्जमहठयानो, स. नि. 1(1).9; अहेठयानोति अविहिंसमानो, स. नि. अट्ठ. 1.34. अहेतु 1. पु., तत्पु. स. [अहेतु]. हेतु या कारण की अविद्यमानता, हेतु का न होना - ना तृ. वि., ए. व., अहेतु द्वारा - अधिच्च लद्धन्ति अहेतुना लद्धं, जा. अट्ठ. 5.164; - तूहि तृ. वि., ब. व., बिना कारणों से - न हि बुद्धा अहेतूहि, । सितं पातुकरोन्ति ते. अप. 1.19; - स्मिं सप्त. वि., ए. व. - ... हेतुसमुग्घाते अहेतुस्मिं अवत्थुस्मि नत्थि दिब्बचक्खुस्स उप्पादोति सुत्ते वुत्तं मि. प. 125; 2. त्रि., ब. स., बिना हेतु वाला, बिना कारण वाला - तु नपुं॰, प्र. वि., ए. व. - सब्ब तं अहेतु अप्पच्चया ति, विभ. 426; - क त्रि., [अहेतुक], क. बिना हेतु वाला, कारणों से रहित, अकारण, कार्यकारण नियम से सर्वथा मुक्त, (धर्म, रूप, चित्त, प्राणी, योनि आदि) - का पु., प्र. वि., ब. व. - सहेतुका, भिक्खवे, उप्पज्जन्ति पापका अकुसला धम्मा, नो अहेतुका, अ. नि. 1(1).98; सहेतुका धम्मा, अहेतुका धम्मा, ध. स. 2; सम्पयोगतो पवत्तेन सह हेतुनाति सहेतुका, तथैव पवत्तो नत्थि एतेसं । हेतूति अहेतुका, ध. स. अट्ठ. 94; - कं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - सब रूपं न हेतु, अहेतुकं ..., ध. स. 584; - के पु.. द्वि. वि., ब. व. - ... कामावचरस्स विपाकतो अहेतुके चित्तुप्पादे ठपेत्वा.....ध. स. 1441; - का स्त्री., प्र. वि., ब. व. - पटिसन्धिसा पन नेसं तिहेतुकापि द्विहेतुकापि अहेतुकापि होन्ति, दी. नि. अट्ठ. 2.89; - कानं पु.. ष. वि., ब. व. - गभसेय्यकानं सत्तानं अहेतुकानं नपुंसकानं उपपत्तिक्खणे चत्तारिन्द्रियानि पातुभवन्ति, विभ. 488; ख. अहेतुवादी, धर्मों को अहेतुक प्रतिपादित करने वाला - का पु., प्र. वि., ब. व. - अहेतुका ये न वदन्ति कम्म, जा. अट्ठ. 4.301; अहेतुका "विसुद्धिया वा संकिलेसस्स वा हेतुभूत कम्म नत्थीति एवंवादा, तदे.; - अपच्चयवादी त्रि., [अहेत्वप्रत्ययवादिन], धर्म हेतु एवं प्रत्ययों के बिना ही उत्पन्न हुए हैं, इस मत को प्रतिपादित करने वाला (आचार्य) - दी पु., प्र. वि., ए. व. - अम्हाकं पाचरियो अहेतुअपच्चयवादी, अ. नि. अट्ठ. 2.153; - किरियाचित्त नपुं.. [अहेतुकक्रियाचित्त], विपाक उत्पन्न न करने वाले तथा (लोभ, द्वेष, मोह, अलोभ, अद्वेष, अमोह नामक) हेतुओं से असम्प्रयुक्त कामावचर भूमि के 3 प्रकार के चित्त - त्तानि प्र. वि., ब. व. - उपेक्खासहगतं पञ्चद्वारावज्जनचित्तं, तथा मनोद्वारावज्जनचित्त, सोमनस्ससहगतं हसितुप्पादचित्तञ्चेति इमानि तीणिपि अहेतुककिरियचित्तानि नाम अभि. ध. स. 3; - कुसलविपाकचित्त नपुं., कर्म. स. [अहेतुककुशलविपाकचित्त], कामावचरभूमि के हेतुओं से असम्प्रयुक्त तथा कुशल विपाक देने वाले आठ प्रकार के चित्त - ... इमानि अट्ठपि कुसलविपाकाहेतुकाचित्तानि नाम, अभि. ध. स. 3 - चित्त नपुं.. कर्म. स. [अहेतुकचित्त]. छ प्रकार के हेतुओं में से किसी एक से भी असंप्रयुक्त कामावचरभूमि के अट्ठारह प्रकार के चित्त, 7 अकुशलविपाक, 8 कुशल-विपाक तथा 3 अहेतुकक्रियाचित्त - त्तानि प्र. वि., ब. व. - इच्चेवं सब्बथापि अट्ठारसाहेतुकचित्तानि समत्तानि, अभि. ध. स. 3; - कट्ठक नपुं.. [अहेतुकाष्टक]. आठ अहेतुक चित्तो का समुच्चय - कं प्र. वि., ए. व. - चक्खुद्वारे तु चत्तारि गहितागहणेनिध सोतधानादिना सद्धि, होतेवाहेतुकट्ठकं अभि. अव. 442; - दिट्ठि स्त्री., प्र. वि., ए. व. [अहेतुकदृष्टि], धर्मों के अहेतुक होने की मिथ्या धारणा - अहेतुकदिट्टि उभयम्पि पटिबाहति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.87; - पटिसन्धि 1. स्त्री., कर्म. स. [अहेतुकप्रतिसन्धि], बिना हेतु के पुनर्जन्म - न्धिं द्वि. वि., ए. व. - ... अहेतुकपटिसन्धिं गहेत्वा उरेन परिसक्कनट्ठाने निब्बत्तोस्मि, ध. प. अठ्ठ. 2.134; 2. त्रि., ब. स., अहेतुक श्रेणी की प्रजाति में जन्म लेने वाला, अपायगति में उत्पत्ति प्राप्त करने वाला - स्स पु., ष. वि., ए. व. - अहेतुपटिसन्धिस्स, न तदारम्मणं भवे, अभि. अव. 444; - योनि स्त्री., कर्म. स. [अहेतुकयोनि]. निकृष्ट श्रेणी की For Private and Personal Use Only

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