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अहेवन
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अहोरत्त
प्रजाति में पुनर्जन्म - यं सप्त. वि., ए. व. - ... एत्तकं नाम कालं समणधम्म कत्वा अहेतुकयोनियं मण्डूकभक्खहाने निब्बत्तोम्ही ति.....ध. प. अठ्ठ. 2.132; - वाद 1. पु., तत्पु. स. [अहेतुकवाद], धर्मों का बिना हेतुओं के ही उत्पन्न बतलाने वाले सिद्धान्त - दो प्र. वि., ए. व. - तेन च अहेतुकवादोपि सङ्गहितो होति, उदा. अट्ठ. 281; 2. त्रि., धर्मों की अहेतुक उत्पत्ति प्रतिपादित करने वाला - दा पु., प्र. वि., ब. व. - अहेसु उक्कला वस्सभा अहेतुकवादा ... नत्थिकवादा, स. नि. 2(1).68; - वादी त्रि., [अहेतुकवादी], धर्म बिना हेतुओं के ही उत्पन्न है, इस प्रकार के सिद्धान्त का प्रतिपादक -दी पु.. प्र. वि., ए. व. - तेसु एको अहेतुकवादी, ... तेसु अहेतुकवादी इमे सत्ता संसारसुद्धिका ति महाजनं उग्गण्हापेसि, जा. अट्ठ. 5.217; -दि पु., द्वि. वि., ए. व. - जानापेस्सामि नेति अहेतुकवादिं ताव आमन्तेत्वा पुच्छि, जा. अट्ठ. 5.224; - ज त्रि., [अहेतुज]. बिना हेतु के उत्पन्न - जं नपुं., प्र. वि., ए. व. - यं लोके अकम्मजं अहेतुजं अनुतुजं, ते मे कथेही ति, मि. प. 250; - दिट्ठि स्त्री., स. प. के रूपों में प्राप्त [अहेतुदृष्टि]. 'धर्म हेतुओं के बिना उत्पन्न है', इस प्रकार की मिथ्या धारणा - पच्चयपरिग्गहेन अहेतुविसमहेतुदिट्ठीनं. ... पहानं, सु. नि. अट्ठ. 1.8. अहेवन नपुं.. उत्तम वन-प्रदेश - नं प्र. वि., ए. व. -
उत्तमाहेवनन्दहोति अहेवनं वुच्चति वनसण्डो, उत्तमं वनसण्डं दहतीति अत्थो, जा. अट्ट, 5.58. अहो अ., निपा. [अहो], निम्नलिखित अर्थों का सूचक, 1. इच्छा, कामना, प्रार्थना (विधि. क्रि.रू. के साथ)- अहो इति पत्थनत्थे, सद्द. 3.898; अहो भवं अस्समं मय्ह पस्से, जा. अट्ठ.5.190; 2. आश्चर्य, हर्ष, प्रशंसा - अहो, नाम, साध इच्चेते पसंसनत्थे, सद्द. 3.897; ... अहो अच्छरियं अहो अभुतान्ति कथं समुढ़ापेसु. जा. अट्ठ. 1.97; ... अभिक्खणं उदानं उदानेसि - "अहो सुखं, अहो सुखान्ति, चूळव. 319; सा "अहो इमिस्सा केसा सोभना, अहो नलाट सोभनन्ति. .. बलवसिनेहा अहोसिध. प. अट्ठ. 2.64; 3. निन्दा या गरे - अहो नाम इच्चेते गरहत्थे, सद्द. 3.897; अहो वत रे अम्हाकं पण्डितक, अहो वत रे अम्हाकं बहुस्सुतक, .... दी. नि. 1.93; 4. निम्नलिखित निपा. के साथ प्रयुक्त-क. नून, आश्चर्य भरी प्रीति एवं अनुस्मरण का सूचक - अहो नून भगवा, अहो नून सुगतो, यो इमेसं धम्मानं सुकुसलोति, म. नि. 2.232; तत्थ अहो नूनाति अनुस्सरणत्थे निपातद्वयं
तेन तस्स भगवन्तं अनुस्सरन्तस्स एतदहोसि अहो नून भगवा, अहो नून सुगतो ति. म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.191; ख. वत (अहो वत) विधि. क्रि. प. के साथ, इच्छा के अर्थ का सूचक - ... अहो इति पत्थनत्थे, सद्द. 3.898; अहो वत में अरजे वसमानं रज्जे अभिसिञ्चेय्यान्ति, तदे; में उदधृत, अहो वत अपि सत्ता इत्थत्तं आगच्छेय्युन्ति, दी. नि. 1.15; ग. अहो वत रे, (1) निन्दा या डांट-फटकार, भर्त्सना - अहो वत रे अम्हाकं पण्डितक, अहो वत रे अम्हाक बहुस्सुतक, दी. नि. 1.93; अहो वताति गरहवचनमेतं रेति इदं हीळनवसेन आमन्तन, दी. नि. अट्ठ. 1.223; (2) प्रशंसा का सूचक - अहो वत रे छेका आचरिया, ईदिसानिपि नाम सिप्पानि करिस्सन्तीति एवं तेसं छेकताय तुस्सति, ध, स. अट्ठ. 251. अहोगङ्ग पु., उत्तर भारत में गङ्गा-तट पर स्थित एक पर्वत,
जो कुछ समय तक सम्भूत साणवासी का निवास स्थान था तथा बाद में मोग्गलिपुत्त तिस्सथेर का भी सात वर्षों तक आश्रयस्थल बना, यहीं पर काकण्डक-पुत्र यश साणवासी थेर से मिलने आए तथा वैशाली के भिक्षओं के विनयविपरीत दस आचरणों पर विचार करने हेतु इस पर्वत पर अर्हतों की एक सभा आयोजित हुई - जो प्र. वि., ए. व. - ... येन अहोगङ्गो पब्बतो, येनायस्मा सम्भूतो साणवासी तेनुपसङ्कमि, चूळव. 468; - ड्ङ्गे सप्त. वि., ए. व. - अहोगङ्गे पब्बते सन्निपतिंसु, चूळव. 468; - ङ्गम्हि सप्त. वि., ए. व. - उद्ध गङ्गाय एको व अहोगङ्गम्हि पब्बते, म. वं. 5.233; - पब्बत पु., उपरिवत् - तं द्वि. वि., ए. व. - ... फासुविहारेन विहरितुकामो अहोगङ्गपब्बतं अगमासि, पारा. अट्ठ. 1.38. अहोपुरिस पु., [अहोपुरुष], शा. अ. अत्यधिक घमण्ड या अहंमन्यता से भरा पुरुष, शेखी बघारने वाला, ला. अ. अपने धन, बल आदि की डींग हांकने वाला पुरुष - तो प. वि., ए. व. - अहोपुरिसतो दप्पने णिको, सद्द. 3.867; - सिका स्त्री., [अहोपुरुषिका, अत्यधिक घमण्ड या अहंमन्यता, डींग हांकना या शेखी बघारना - अहङ्कारदप्पने अहोसद्दपुब्बस्मा पुरिससद्दतो णिकपच्चयो होति, अहोपुरिसिका, सद्द..3.867. अहोरत्त पु., [अहोरात्र], रात-दिन - त्तो प्र. वि., ए. व. - घटिका सट्ठयहोरतो, अभि. प. 74; - त्तं द्वि. वि., ए. व. - अहोरत्तं अनुयुज, जीवित अनिकामयं, स. नि. 1(1).143; ध, प. अट्ठ. 1.243 में उद्धृत; - त्तेन तृ. वि., ए. व. - .... अहोरत्तेन अट्ठचत्तालीसंयोजनसहस्सानि भस्समाना .... मि. प. 90; - त्ता प्र. वि., ब. व. - अच्चयन्ति अहोरत्ता,
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