Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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अस्सपिट्टि
713
अस्समण्डलिका -त्थरण नपुं.. तत्पु. स. [अश्वपृष्ठास्तरण], घोड़े की पीठ गच्छति अस्सम, जा. अट्ठ, 7.297; 2. गृहस्थ, वानप्रस्थ, पर बिछाया गया बिछावन या गलीचा - चम्म विहनन्ति आदि चार आश्रम, घर-बार छोड़ वन में रहकर बिताया जा एळकस्स, अस्सपिछत्थरस्सुखस्स हेतु, जा. अट्ठ. 6.181. रहा वानप्रस्थ-नामक आश्रम - मं द्वि. वि., ए. व. - अस्सपिट्ठि स्त्री., तत्पु. स. [अश्वपृष्ठ/अश्वपृष्ठि], घोड़े महायचं यजित्वान, पुन पाविसि अस्सम सु. नि. 985. की पीठ - तो प. वि., ए. व. - सो पुण्णको अस्सपिट्टितो अस्समंस नपुं., तत्पु. स. [अश्वमांस], घोड़े का मांस - सं ओरुव्ह .... जा. अट्ठ. 7.164; सो तावदेव अस्सपिडितो द्वि. वि., ए. व. - न, भिक्खवे, अस्समंसं परिभुजितब्ब ओतरित्वा ..., ध, प. अट्ठ. 1.317.
महाव. 295. अस्सपुर नपुं., व्य. सं., अङ्ग जनपद का एक नगर - रं प्र. अस्समण पु., समण का निषे., तत्पु. स. [अश्रमण], श्रमण वि., ए. व. -- अस्सपुरं नाम अङ्गानं निगमो, म. नि. 1.342; या भिक्षुभाव के लिए आवश्यक संयमों से रहित, अयोग्य या अस्सपुरं नाम अङ्गानं निगमोति अस्सपुरन्ति नगरनामेन अनाचारी भिक्षु, भिक्षुभाव से पतित या भ्रष्ट - णो प्र. वि., लद्धवोहारो अङ्गानं जनपदस्स एको निगमो, तं गोचरगाम ए. व. - यंनूनाहं अस्समणो अस्सन्ति, पारा. 26; अस्समणोति कत्वा विहरतीति अत्थो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).208. मंधारेहीति न वेवचनेन पच्चक्खानं पारा. अट्ठ. 1.202; यो अस्सपोत पु., तत्पु. स. [अश्वपोत], बछेड़ा, घोड़े का भिक्ख मेथुनं धम्म पटिसेवति, अस्समणो होति असक्यपत्तियो, अनाड़ी बच्चा - तो प्र. वि., ए. व. - अस्सखळुङ्कोति महाव. 123; - णे वि. वि., ब. व. - ततो पलापे वाहेथ, अस्सपोतो, अ. नि. अट्ठ. 2.235; - क पु., [अश्वपोतक], अस्समणे समणमानिने, सु. नि. 284; - धम्म त्रि., ब. स. उपरिवत् - ... अस्सपोतकप्पमाणो यमसम्पन्नो ..., जा. [अश्रमणधर्मन्], श्रमण-धर्म का पालन न करने वाला, भिक्षु अट्ठ. 1.268; - कं द्वि. वि., ए. व. - वेतनं मे ददमानो के लिए निर्धारित संयम से रहित, दुराचारी भिक्षु - म्मो पु., इमम्पि अस्सपोतकं वेतनतो खण्डेत्वा देही ति आह, जा. प्र. वि., ए. व. - ... धारेय्यासि अस्समणधम्मो असक्यपुत्तियअट्ठ. 2.239; - प्पमाण त्रि., ब. स. [अश्वपोतकप्रमाण], धम्मोति, स. नि. 2(2).311. बछेड़े जैसा - णो पु.. प्र. वि., ए. व. - अस्सपोतकप्पमाणो अस्समणी स्त्री., अस्समण से व्यु. [अश्रमणी], अच्छे आचरणों थामसम्पन्नो .... जा. अट्ठ. 1.268; - णं नपुं॰, प्र. वि., ए. से विहीन भिक्षुणी, असंयत भिक्षुणी - णी प्र. वि., ए. व. - व. - सरीरं पनस्स महन्तं अस्सपोतकप्पमाणं अहोसि, जा. ... अस्समणी होती असक्यधीता, पाचि. 288. अट्ठ. 1.153.
अस्समण्डल नपुं.. [अश्वमण्डल], घोड़ों को दौड़ाने का अस्सबन्ध पु.. [अश्वबन्ध], घोड़े को सधाने में कुशल साईस मैदान, घोड़े को घुमाने-फिराने का मैदान, घुड़सवारी के - न्धं द्वि. वि., ए. व. - हत्थिबन्धं अस्सबन्धं गोपुरिसञ्च अभ्यास करने का मैदान - ले सप्त. वि., ए. व. - ... अस्सं ... सधनमनुपतन्ति नारियो, जा. अट्ठ. 5.446; - न्धो प्र. वि.. आनने गहेत्वा अस्समण्डले परिवत्तेय्य, जा. अट्ठ. 2.81; एवं ए. व. - तस्स गिरिदत्तो नाम अस्सबन्धो.... जा. अट्ठ. 2.81. सब्बदिसासु अस्समण्डले अस्समिव मेत्तासहगतं चित्तं सारेतिपि अस्सभण्डक नपुं., तत्पु. स. [अश्वभाण्डक], घोड़े को पच्चासारेतिपीति, विसुद्धि. 1.298; - तो प. वि., ए. व. - सजाने वाला साजो-समान - केन तृ. वि., ए. व. - ... .... अस्समण्डलतो याव चम्पानगरद्वारा ..., म. नि. अट्ठ.
अस्सभण्डकेन अलङ्करित्वा अस्सं अदासि, जा. अट्ठ. 2.94. (म.प.) 2.5. अस्सम पु.. [आश्रम], 1. तपस्वी या ऋषि-मुनि का वन में अस्समण्डलतित्थट्ठ त्रि., अनुराधपुर महाविहार के बनाया हुआ ऐसा वासस्थान, जिसमें पर्णशाला एवं चंक्रमणपथ अस्समण्डलतीर्थ नामक एक स्थान पर स्थित - 8ो पु., प्र. रहे तथा जो गोचरग्राम से बहुत दूरी पर स्थित न हो; 2. वि., ए. व. - अस्समण्डलतित्थट्ठो कित्तिनामादिपोत्थकी, चू. आश्रम में रहने वाले का जीवन - मो प्र. वि., ए. व. - वं. 72.27. ब्रह्मचारिगहट्ठादो अस्समो च तपोवने, अभि. प. 928; 409; अस्समण्डलिका स्त्री., [अश्वमण्डलिका], घोड़ा को बन्द पदुमकिञ्जक्खरेणूहि, ओकिण्णो होति अस्समो, जा. अट्ठ. करने का गोलाकार बाड़ा, उत्तरापथ के घोड़ों के व्यापारियों 7.294; अथ खो भगवा येन उरुवेलकस्सपस्स जटिलस्स की सराय - सु सप्त. वि., ब. व. - ... उत्तरापथका अस्समो तेनुपसङ्कमि, महाव. 78; अस्समो सुकतो मय्ह, बु. अस्सवाणिजा... अस्समण्डलिकासु भिक्खूनं पत्थपत्थपुलक वं. 2.28; - मं द्वि. वि., ए. व. - अयं एकपदी एति, उर्जु पअत्तं होति, पारा. 7; - यो द्वि. वि., ब. व. -
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