Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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अस्सजातिय
711
अस्सत्थर अस्सजातिय त्रि., ब. स. [अश्वजातीय], घोड़े की नस्ल में अस्सति ।अस (फेकना) का वर्त, प्र. वि., ए. व., फेंक देता उत्पन्न - यो पु., प्र. वि., ए. व. - बोधिसत्तस्स जातिया है, त्याग देता है - अस्सति, निरस्सति आदियति च धम्म, जातो बोधिसत्तजातियो, एवं अस्सजातियो हत्थिजातियो, सद्द. 2.490; - अस्सि अद्य., प्र. पु., ए. व. - तथा ते तपे मनुस्सजातियो, क. व्या. 355.
अस्सि निरस्सि पहासि विद्धसेसीति तपस्सी. पारा. अट्ठ. अस्सजि पु.. [अश्वजित्]. 1. पञ्चवर्गीय भिक्षुओं के बीच
1.99. पांचवां, जिसने इसिपत्तन में अर्हत्व प्राप्त किया - स्स ष. अस्सते अस (खाना) के कर्म. वा. का वर्त.. प्र. वि., ए. व. वि., ए. व. -- अथ खो आयस्मतो च महानामस्स आयस्मतो [अश्यते], खाया जाता है - अस्सते असनं, क. व्या. 643. च अस्सजिस्स भगवता धम्मिया ... धम्मचक्खं उदपादि, अस्सत्थ' 1. पु., [अश्वत्थ]. पीपल का पेड़, बोधिवृक्ष - त्थो महाव. 16; 2. छब्बग्गीय भिक्षुओं के दो गणाचार्य स्थविरों प्र. वि., ए. व. - अस्सत्थो बोधि च द्वीसु, अभि. प. 551; - में से एक - जि प्र. वि.. ए. व. - अस्सजिपुनब्बसुकाति स्स ष. वि., ए. व. - अस्सत्थस्सेव तरुणं, पवाळ मातुतेरितं अस्सजि च पुनब्बसुको च छसु छब्बग्गियेसुद्वे गणाचरिया, ...., हदयं मे पवेधति, जा. अट्ठ. 5.322; - त्थे सप्त. वि., म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.133; - पुनब्बसुक पु., द्व. स., ए. व. - अस्सत्थे हरितोभासे .... थेरगा. 217; - त्था प्र. अश्वजित् एवं पुनर्वसु नामक दो गणाचार्य स्थविर - का प्र. वि., ब. व. - हरीतकी आमलका, अस्सत्था बदरानि च, जा. वि., ब. व. - ... अस्सजिपुनब्बसुका नाम भिक्खू कीटागिरिस्मि अट्ठ. 7.293; - त्थं द्वि. वि., ए. व. - अस्सत्थं व पथे जातं. आवासिका होन्ति, म. नि. 2.148; - अस्सजिपुनब्बसुकवत्थु जा. अट्ठ. 7.288; 2. नपुं., पीपल के बीज - स्थानि द्वि. नपुं.. ध. प. अट्ठ. का एक कथानक, ध. प. अट्ठ. 1.310- वि., ब. व. - अस्सत्थानि च भक्खित्वा, ..., जा. अट्ठ. 311.
3.352. अस्सतर पु., [अश्वतर], खच्चर - रो प्र. वि., ए. व. - भेदो अस्सत्थः त्रि., अस्ससति का भू, क. कृ. का निषे. [आश्वस्त]. अस्सतरो तस्सा जानीयो तु कुलीनको, अभि. प. 369; निश्चिन्त, आश्वासन-प्राप्त - त्थं पु., वि. वि., ए. व. - तभेदा सिन्धवो चेव गोजो अस्सतरोपि च, सद्द. 2.417; अस्सत्थमासीनं समेक्खियान, ..., जा. अट्ठ. 7.206; तत्थ इध वळवं गद्रभेन सम्पयोजेय्यु... सो... अस्सतरो होति. म. अस्सत्थमासीनन्ति लद्धस्सासं हत्वा निसिन्न, तदे; अस्सत्थं नि. 2.368; - तरा प्र. वि., ब. व. - वरमस्सतरा दन्ता, नं विदित्वान, ..., जा. अट्ठ. 7.343. आजानीया च सिन्धवा, ध. प. 322; अस्सतराति वळवाय अस्सत्थक त्रि., [अश्वत्थक, पीपल की लकड़ी से बना गद्रभेन जाता,ध. प. अट्ठ. 2.284; - रे द्वि. वि., ब. व. - हुआ - के सप्त. वि., ए. व. - असत्थके फलमये, ..., योजेन्तु वे राजरथे सुचित्ते, कम्बोजके अस्सतरे सुदन्ते, जा. मधुपानकसङ्के च, लभामि थालके अहं, अप. 1.342; पाठा. अट्ठ. 4.419.
अस्सत्थे. अस्सतरी स्त्री., [अश्वतरी], मादा खच्चड़, खच्चड़ी - री। अस्सत्थकपित्थ नपुं., ए. व./पु., ब. व., द्व. स. प्र. वि., ए. व. - सेय्यथापि, भिक्खवे, अस्सतरी अत्तवधाय [अश्वत्थकपित्थं/अश्वत्थकपित्था]. पीपल और कैंथे के गभं गण्हाति .... स. नि. 1(2).218; - रिं द्वि. वि., ए. व. पेड - अस्सत्थो च कपित्थो च अस्सत्थकपित्थं क. व्या. - सक्कारो कापुरिसं हन्ति, गब्भो अस्सतरि यथाति, स. नि. 325. 1(1).180; अस्सतरिन्ति गद्रभस्स वळवाय जातं. स. नि. अस्सत्थपत्त नपुं.. [अश्वत्थपत्र]. पीपल का पत्ता - त्तं प्र. अट्ठ. 1.193; - रथ पु., तत्पु. स. [अश्वतरीरथ], मादा वि., ए. व. - वेधमस्सत्थपत्तंव, पित्त पादानि वन्दति, जा. खच्चरों द्वारा खींचा जा रहा रथ - थेन . वि., ए. व. - अट्ठ. 7.318. पुरतोव सेतेन पलेति हत्थिना, मज्झे पन अस्सतरीरथेन, पे. अस्सत्थर नपुं.. [अश्वास्तरण], घोड़े की पीठ पर व. 73; अस्सतरीरथेनाति अस्सतरीयुत्तेन रथेन पलेतीति बिछाया जाने वाला चादर या बिछावन - रं प्र. वि., ए. योजना, पे. व. अट्ठ. 48; - था प्र. वि., ब. व. - सतं हत्थी व. - आसन्दिं पल्लङ्क गोनकं ... कुत्तकं हत्थत्थर सतं अस्सा , सतं अस्सतरीरथा, स. नि. 1(1).244; - थं द्वि. अस्सत्थरं रथत्थरं... वा इति, दी. नि. 1.7; अस्सत्थरन्ति वि., ए. व. - दासिं दासञ्च सो दज्जा, अस्सं चस्सतरीरथं, हत्थिअस्सपिट्टीसु अत्थरणअत्थरकायेव, दी. नि. अट्ठ. जा. अट्ठ. 7.355.
1.79.
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