Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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अस्सुम्ह
रुदितं अस्सुमोचनं नहि कातब्बन्ति वचनसेसो, पे. व. अ.
15.
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अस्सुम्ह√सु (सुनना) का अय., उ. पु. व. व. हमने सुना था अस्सुम्ह अभिभूस्स भिक्खुनो ब्रह्मलोके ठितस्स गाथायो भासमानस्स, स. नि. 1 (1). 184. अस्सुरोप / असुरोप पु. सुरोप का निषे, द्वेषभाव दौर्मनष्य, मन में विद्यमान रोष, मन की अप्रसन्नता, वचन की अपरिपूर्णता पो असुरोपो अनत्तमनता चित्तस्स. ध. स. 418; दुरुत्तं अपरिपुण्णमेव होतीति असुरोपो, ध. स.अ. 297 द्रष्ट, असुरोप के अन्त (पीछे). अस्सुविमोचनमत्त नपुं [अश्रुविमोचनमात्र] केवल आंसुओं को गिराना, रोना, कलपना, रुदन तेन तृ. वि., ए. व. -न अस्सुविमोचनमतेन... स. नि. अड. 3.141. अस्सुसमुद्द पु॰, तत्पु॰ स॰ [अश्रुसमुद्र ], आंसुओं का समुद्र, बहुत सारे आंसू हो प्र. वि., ए. व. सोसितो मया अस्सुसमुद्दो, जा. अनु. 3.333. अस्सुसुक्खनकाल पु.. तत्पु. स. [ अश्रुशोषणकाल] आसुओं को सूख जाने का समय लो प्र. वि. ए. व. तेसंयेव एवं रोदन्तानं अस्सुसुक्खनकालो नत्थि जा. अड. 3.345. अस्सोसि सु (सुनना) के अद्य का प्र. पु. ए. व.. सुना अस्सोसि खो वेरजो ब्राह्मणो, पारा. 1.
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अह क. अट्ठ. के अनुसार त्रि, तुच्छ, घटिया, हीन, निकृष्ट - अहाति हि लाभकपरियायो अहलोकित्थियों नामा तिआदीसु विय, थेरीगा, अड. 315: ख. पा. टे. सो. के शब्दकोश के अनुसार अ. निपा. [अहो अहह ] आश्चर्य, पीड़ा, अवहेलना, वियोगजनित दुख (का सूचक) शोक, खेद, का सूचक, पा० इ. डि. 91.
व.
अह पु. / नपुं० [ अहन् / अहर] दिन है नपुं. प्र. वि., ए. व. दिवस तु अहं दिनं अभि. प. 67 हो पु. द्वि. वि., ए. व. निकीलितं निच्चमहये च रति जा. अड. 7.210 - हस्स/हुष. वि., ए. व. पुब्बापरज्ज सायमज्डोहि अहस्स अन्तो, मो. व्या. 3.110 द्वे पुण्णमायो तदहु अमज्ञहं दिवान... जा. अड. 5.203 अहं तदहू तस्मिं छणदिवसे
जा. अदु. 5.204; हे / हनि सप्त वि. ए. व. - पञ्चमे तदहूति तस्मिं अहनि तस्मिं दिवसे... उदा. अ. 241; तस्मिं अहनि गोपाला लद्धा एकं चतुप्पदं, म. वं. 10.14; देवपुत्तरस इद्धिया तदहेव सावत्थि पत्वा जेतवनं आरोचेसि, पे, व अह 39 हानि नपुं. प्र. वि. ब. पञ्च अहानि पञ्चाहं, क. व्या. 339.
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अट्ठ
अहं
अहं उ० पु० सूचक सर्व, अम्ह का प्र. वि., ए. व. [अहं ], 1. मैं - स्मिही ति किमत्थं? त्वं भवसि, अहं भवामि, क. व्या. 139; अहं पठमं झानं समापज्जामीति या स. नि. 2 (1). 232; एतं वो अहमक्खामि सु. नि. 174; तमहं सारथिं ब्रूमि. ध. प. 222 2. अधिक सूक्ष्म अर्थ मैं, मेरी आत्मा. मेरा महत्वपूर्ण व्यक्तित्व लोक में एकमात्र महत्व वाला मैं
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ये वदन्ति न ते अहं स. नि. 1 ( 1 ). 137; इमिनाहं सीलेन देवो वा भविस्सामि देवज्ञतरो वा विसुद्धि. 1.12; मं / ममं / मे द्वि. वि. ए. व.. मुझ को मुझे मं न मं मिगा उत्तसन्ति, जा. अट्ठ. 6.93; न मं वञ्चेसि ब्राह्मणो, सु. नि. 358; - ममं ममं भुत्वा वने वसाति, जा. अट्ठ. 3.47; अलहि ते जग्घिताये, ममं दिस्वान एदिसं, जा. अ. 3.197 मे तत्थ सो मं उहतीति सो मे जहति अयमेव वा पाठो, जा. अट्ठ. 3.449; तं मे तपति नो इदं, जा. अट्ठ. मया / मे तृ. वि., ए. व., मेरे द्वारा, 2.367; मेरे साथ सो मया... पुट्ठो... पटिचरि, म. नि. 2.232; यं मया पकतं कम्मं थेरगा 80 मया / ममतो / मम / मे प. वि. ए. व., मुझ से, क. तुल, विशे के साथ संबद्ध ख. ममतोममतोपि सुरूपिनि, अप. 2.244; ग. मम - भिन्नं वतिदं कुलं ममा ति चिन्तयतो, दी. नि. अट्ठ. 2.279; ममाति मया, अयमेव वा पाठो, लीन. (दी.नि.टी.) 2238 घ. मेन मे समण मोक्खसीति, महाव. 27: महं / ममं / मे / मम क. च. वि., ए. व., मेरे लिए, मुझ को सब्बञ्जतं पियं महं चरिया 1 3 8 अद्धा हि सो भक्खो मम मनापो, जा. अ. 5.495; न सा ममं अप्पिया भूमिपाल, जा. अट्ठ 207: तेन मे समणा पिया थेरीगा. 278; ख. प. वि. ए. व. - मेरा / मेरी पुत्तो ममं ओरसको समानो, जा० अड. 4.42; तं तत्थ अवधी सेनो, पेक्खतो सुधरे ममाति. जा. अड. 6.247; अरोगा मव्ह मातरो, जा. अट्ठ 6.27 पुब्बेव मे, भिक्खवे, सम्बोधा... एतदहोसि, अ. नि. 1 (1).292; मयि सप्त. कि. ए. व., मुझ में, मेरे विषय में किन्ति वो भिक्खये, मयि होति. म. नि. 3.25: सादियतु नु खो महाराज, अथ महापथवी सब्बबीजानि मयि संविरुहन्तूति, मि. प. 110 - मयं / अम्हे / अस्मा / नो प्र. वि. ब. व.. हम - तेदिज्जा मयमस्मुभो, सु. नि. 599; उपसङ्कमित्वा अम्हे एतदवोच स. नि. 1 ( 1 ). 139, मयमस्माम्हरस, मो. व्या. 2.211: अडमासे असम्पत्ते, चतुसच्चं फुसिम्ह नो. अप. 2.265; - अम्हे / अस्मे / अम्हं / अम्हाकं / अम्हानं / नो द्वि. वि. ब. व. हमको हमें हम लोगों को अम्हे च भरिया
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