Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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अस्सरति
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अस्सवन
भन्ते, लभेय्यं..., स. नि. 1(1).116; - ने सप्त. वि., ए. व. - अस्सरतनेपि एसेव नयो, स. नि. अट्ठ. 1.144; - नं प्र. वि., ए. व. - सेय्यथिदं - चक्करतनं. ... अस्सरतनं, ..., परिणायकरतनमेव सत्तम, दी. नि. 1.77. अस्सरति आ + सर (रंगना, चलना) के वर्त., प्र. पु., ए.
व. का अप. [आसरति]. अतिक्रमण करता है - ... कत्वा .... अतिच्च अस्सरति एताय सत्तोति अच्चसरा, महानि. अट्ठ. 161; 332. अस्सरथ पु., तत्पु. स. [अश्वरथ], घोड़ों द्वारा खींचा जा रहा रथ - थो प्र. वि., ए. व. - अस्सेन युत्तो रथो अस्सरथो, सद्द. 3.755; - थं द्वि. वि., ए. व. - भरिया मे अरोगा ठिताति चत्तारि सहस्सानि पादासि दासञ्च दासिञ्च अस्सरथञ्च, महाव. 360; अस्सासयि अस्सरथं, ब्राह्मणस्स धनेसिनो ति, जा. अट्ठ. 7.271. अस्सरन्त त्रि., Vसर (स्मरण करना) के वर्त. कृ. का निषे. [अस्मरत्], स्मरण न करता हुआ, नहीं जानता हुआ - न्ता पु., प्र. वि., ए. व. - ब्राह्मणा पोराणं अस्सरन्ता एवमाहंसु. दी. नि. 3.60; अस्सरन्ताति अस्सरमाना, ... अननुस्सरन्ता अजानन्ता एवं वदन्तीति, दी. नि. अट्ठ. 3.41. अस्सराज पु., तत्पु. स. [अश्वराजन्], उत्तम घोड़ा, शाही घोड़ा - जा प्र. वि., ए. व. - ... वलाहको नाम अस्सराजा, दी. नि. 2.130; दी. नि. अट्ठ. 2.56; - जानं वि. वि., ब. व. - ... रमणीये भूमिभागे ठितं कण्डकं अस्सराजानं दिवा ..... जा. अट्ट. 1.72. अस्सरूपक नपुं.. [अश्वसदृश्], घोड़े से समानता - कं द्वि. वि., ए. व. - अस्सरूपकं नो दस्सेही ति गामदारकेहि
वुच्चमानो... लभति, ध. प. अट्ठ. 1.289. अस्सलक्खण नपुं., तत्पु. स. [अश्वलक्षण]. घोड़ों के शुभ लक्षण (को बतलाने वाली विद्या), अट्ठारह महाशिल्पों में से एक - णं प्र. वि., ए. व. - सेय्यथिदं- मणिलक्खणं, ... अस्सलक्खणं ... मिगलक्खणं इति वा इति, दी. नि. 1.8-9. अस्सलण्ड नपुं.. तत्पु. स. [अश्वलण्ड], घोड़े की लीद - ण्डं द्वि. वि., ए. व. - तं अन्तोफरुसताय बहिमढ़ताय हत्थिलण्डं विय अस्सलण्डं विय च होतीति, जा. अट्ठ. 373. अस्सलायन पु., व्यक्तियों का नाम, 1. श्रावस्ती का एक विद्वान युवा ब्राह्मण - तेन खो पन समयेन अस्सलायनो नाम माणवो सावत्थियं पटिवसति दहरो, म. नि. 2.362; अपि ब्राह्मणा सन्ति के चीति इमिना ...
अस्सलायनवासेट्ठअम्बट्ठउत्तरमाणवकादयो दस्सेति सु. नि. अट्ठ. 2.93; 2. स्थविर महाकोट्ठित का पिता - नो प्र. वि., ए. व. - माता चन्दवती नाम, पिता मे अस्सलायनो, अप. 2.129; - सुत्त नपुं., म. नि. का एक सुत्त, जिसमें श्रावस्ती के युवा ब्राह्मण अस्सलायन का भगवान बुद्ध के साथ संवाद वर्णित है, म. नि. 2.362-371; वित्थारो पन अस्सलायनसुत्तानुसारेन वेदितब्बो, सु. नि. अट्ठ. 2.121. अस्सव' त्रि., [आश्रव], आज्ञाकारी, आज्ञापालक, बात को सुनने वाला, विनीत - वो प्र. वि., ए. व. - विधेय्यो तु अस्सवो सुब्बचो समा, अभि. प. 730; सुस्सूसा सेट्टा भरियानं यो च पुत्तानमस्सवो ति, स. नि. 1(1).8; अस्सवोति आसुणमानो, स. नि. अट्ठ. 1.32; भवति परिजनस्सवो विधेय्यो, दी. नि. 3.114; परिजनस्सवोति परिजनो अस्सवो वचनकरो, दी. नि. अट्ठ. 3.100; - वा' पु., प्र. वि., ब. व. -- यक्खापि मे अस्सवा नत्थि केचि, जा. अट्ठ. 4.88; अस्सवाति वचनकारका इच्छितिच्छितदायका .... जा. अट्ठ. 4.89; - वा स्त्री., प्र. वि., ए.व. - गोपी मम अस्सवा अलोला, सु. नि. 22; - वं नपुं., प्र. वि., ए. व. - चित्तं मम अस्सवं विमुत्तं, सु. नि. 23. अस्स/अस्साव पु., [आस्रव], बहाव, स्रवण, पीब से भरा बहाव, घाव से पीब का रिसाव - विधेय्ये अस्सवो तीसु पुब्बम्हि पुरिसे सिया, अभि. प. 1036; यरस कण्डु वा पिळका वा अस्सावो वा थुल्लकच्छु वा वा आबाधो, महाव. 277. अस्सवत नपुं० [अश्वव्रत], (कुछ तपस्वियों द्वारा धार्मिकचर्या के रूप में अपनाया गया) घोड़े की क्रियाओं का आचरण - तं प्र. वि., ए. व. - वतानीति हत्थिवतं वा अस्सवतं वा .... महानि. 66; - तिक त्रि., अस्सवत से व्यु. [अश्ववतिक], घोड़े की क्रियाओं के आचरण का व्रत लेने वाला - तिका पु., प्र. वि., ब. व. - ते हत्थिवतिका वा होन्ति, अस्सवतिका वा होन्ति, ..., महानि. 63; अस्सवतिकादीसुपिलभमानवसेन यथायोग योजेतब्बं, महानि. अट्ठ. 171. अस्सवति आ + vसु का वर्त, प्र. पु., ए. व. [आस्रवति], बहता है, प्रवाहित होता है - वे विधि., प्र. पु., ए. व. - आवेधञ्च न परसामि, यतो रुहिरमस्सवे, जा. अट्ठ. 2.230; यतो रुहिरमस्सवेति यतो मे आवेधतो लोहितं पग्घरेय्य, तं न पस्सामीति अत्थो, तदे... अस्सवन नपुं., सवन का निषे. [अश्रवण], नहीं सुनना, ध्यान न देना, उपेक्षा, अवज्ञा-भाव - पच्छा आगतपरिसं
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