Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 744
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अस्सा 717 अस्सादानुपस्सी अस्सा स्त्री., [अश्वा], घोड़ी - वळवा स्सा, अभि. प. 371. नि. 2(2).146; अस्साददिठ्ठीति सरसतदिद्धि, अ. नि. अट्ठ अस्साचरिय पु., तत्पु. स. [अश्वाचार्य], क. राजा के समीप 3.145; - या ष. वि., ए. व. - अस्साददिट्ठिया पञ्चतिंसाय रहने वाला घोड़ों का विशेषज्ञ, घुड़सवारी शिक्षक - यं द्वि. आकारेहि अभिनिवेसो होति, पटि. म. 127. वि., ए. व. - राजा अस्साचरिय आमन्तेत्वा..., स. नि. अट्ठ. अस्सादन नपुं.. [अस्सादन], खाने, पीने, चखने या चाटने 1.32; ख. घुड़सवार सेना का अधिकारी - येहि तृ. वि., ब. में आनन्द या सुख का अनुभव, स्वाद लेना - लिह व. -- गामणीयेहीति अस्साचरियेहि, जा. अट्ट. 7.260. अस्सादने, सद्द. 2.459; रस अस्सादने, सद्द, 2.443; सा अस्साजानीय पु., कर्म. स. [अश्वाजानेय], उत्तम नस्ल अस्सादने, सद्द. 2.482; मोक्खासने अस्सादने, सद्द. 2.522. का घोड़ा - यं द्वि. वि., ए. व. - दक्खो अस्सदमको भद्रं अस्सादना स्त्री., स्वाद लेने की क्रिया, स्वाद का अनुभव - अस्साजानीय लभित्वा पठमेनेव मुखाधाने कारणं कारेति, म. ना प्र. वि., ए. व. - ..., अपि अस्सादना सिया, स. नि. नि. 2.118; तीहि भिक्खवे अङ्गेहि समन्नागतो रुओ भद्रो । 1(1).145; स. नि. 1(1).449; अस्सादनाति सादुभावो, सु. अस्साजानीयो राजारहो होति, अ. नि. 1(1).277; - ये द्वि. नि. अट्ठ. 2.109. वि., ब. व. - तयो च, भिक्खवे, भद्रे अस्साजानीये देसेस्सामि, अस्सादनीय त्रि., आ + स्वद का सं. कृ. [आस्वादनीय]. अ. नि. 1(1).326; अस्साजानीयेति कारणाकारणं जाननके स्वाद प्राप्त करने योग्य, अच्छे स्वाद के पाने योग्य, अस्से, अ. नि. अट्ट, 2.236. स्वादिष्ट, खाने-पीने में अच्छा लगने योग्य - तो प. वि., अस्साद पु., [आस्वाद]. 1. vचक्ख (चखना), रस (स्वाद ए. व. - सा कथं छसुद्वारेसु तण्हाय पच्चयो होतीति चे? लेना) तथा लिह (चाटना) आदि धातुओं के अर्थों का अस्सादनीयतो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).229. सूचक, खाद्य एवं पेय आदि का रसास्वादन - अस्सादत्थो अस्सादपरियेसना स्त्री., तत्पु. स. [आस्वादपर्येषण], स्वाद पि चक्खुसद्दो भवति, सद्द. 2.332; रस अस्सादसिनेहेसु. सद्द. की तलाश, विषयभोगों में आनन्दमयी अनुभूति का अन्वेषण 2.443; 2. अनुकूल रूप में संवेदनीय रूप, शब्द, गन्ध, रस - नं द्वि. वि., ए. व. - अस्सादपरियेसनं अचरि स. नि. एवं स्पृष्टव्य जैसे इन्द्रिय-विषयों में आनन्द का अनुभव या 1(2).155. उसका उपभोग - दो प्र. वि., ए. व. - एवमेव खो, अस्सादबद्धचित्तता स्त्री॰, भाव. [आस्वादबद्धचित्तता], भोगों महाराज, योगिना... सब्बभवपटिसन्धीसु मानसं उब्बेजयितब्ब, में स्वाद पाने के लिए चित्त का बंधा हुआ रहना - य तृ. अस्सादो न कातब्बो, मि. प. 356; - देन तृ. वि., ए. व. वि., ए. व. - ... ओवदितोपि अस्सादबद्धचित्तताय सचे - पियरूपेसु अस्सादेन गिद्धा ... अत्थो. उदा. अट्ठ. 95; - वृत्तप्पकारो आदीनवो भविस्सति, स. नि. अट्ठ. 2,106. दं द्वि. वि., ए. व. - अलद्धा तत्थ अस्सादं वायसेत्तो अस्सादमत्ता स्त्री.. [आस्वादमात्रा], बहुत थोड़ा सा स्वाद, अपक्कमे, स. नि. 1(1).145; 3. सुख या मौजमस्ती भरी स्वल्प स्वाद, बहुत हल्का मजा - त्ता प्र. वि., ए. व. - होति अवस्था, रसपरिपूर्णता - दो पु.. प्र. वि., ए. व. - सङ्गो एसो चेव काचि सातमत्ता अस्सादमत्ता - यदिदं वणमुखानं परित्तमेत्थ सोख्य, अप्पस्सादो दुक्खमेत्थ भिय्यो, सु. नि. कण्डूवनहेतु, म. नि. 2.185; एवमस्स काचि अस्सादमत्ता 61; अप्पस्सादो दुक्खमेत्थ भिय्योति एत्थ च वायं यं खो, होति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.156. भिक्खवे, इमे पञ्च कामगुणे पटिच्च उप्पज्जति सुखं अस्सादरहित त्रि., तत्पु. स. [आस्वादरहित], बेस्वाद, बिना सोमनस्सं. अयं कामानं अस्सादो ति वृत्तो, सु. नि. अट्ट. स्वाद का - तं नपुं., प्र. वि., ए. व. - इदहि कसिरञ्च 1.90; यं खो लोकं पटिच्च उप्पज्जति सुखं सोमनस्सं, अयं दुक्खं अस्सादरहितं, जा. अट्ठ. 4.101. लोके अस्सादो, अ. नि. 1(1).292; - चेतना स्त्री., तत्पु. अस्सादसञा स्त्री., तत्पु. स. [आस्वादसंज्ञा, संसार के स. [आस्वादचेतना], विषयभोगों में आनन्दानुभूति की चेतना, विषय-भोगों के आनन्दमय होने का विचार - य तृ. वि., ए. सोलह प्रकार की दृष्टियों में से एक - ना प्र. वि., ए. व. व. - आदीनवदस्सनेन अस्सादसाय पहाणं, म. नि. - सुपिनन्ते अस्सादचेतना अस्थि उपलब्मति, पारा. अट्ठ. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).26. 2.96; - दिट्टि स्त्री., तत्पु. स. [आस्वाददृष्टि]. विषयभोगों अस्सादानुपस्सी त्रि., [आस्वादानुपश्यिन], भोग आनन्द से में सुख एवं सौमनस्य समझने वाली मिथ्याधारणा - ट्ठि प्र. परिपूर्ण या स्वाद से भरे हैं, इस प्रकार की अनुपश्यना या वि., ए. व. - अरसाददिद्धि, अत्तानुदिष्टि, मिच्छादिहि, अ. अनुचिन्तन करने वाला, विषयभोगों को आनन्दमय रूप में For Private and Personal Use Only

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