Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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अस्म/अम्ह
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अस्सकण्ण खादथा ति दसमेन सद्देन, दी. नि. 2.128; - अस्निये चतुरस्समुग्गरेन पोथेत्वा ..., ध. प. अट्ठ. 1.73; 5. पु.. विधि., उ. पु., ए. व. - .... तस्मा अदत्वा उदकम्पि [अश्व], घोड़ा - हयो तुरङ्गो तुरगो वाहो अस्सो च सिन्धवो, नास्निये, जा. अट्ठ. 5.393; ... नास्निये न परि भुञ्जिस्सामीति अभि. प. 368; 1102; ... अस्सो भद्रो कसामिवाति, स. नि. इम वत समादिथि, जा. अट्ठ. 5.394; - 1(1).9; अस्सोव जिण्णो निब्भोगो, स. नि. 1(1).205; - असिस्सामि/असिस्सं भवि., उ. पु., ए. व. - नासिस्सं स्सा' प्र. वि., ब. व. -- अस्सा यथा सारथिना सुदन्ता, ध. न पिविस्सामि, थेरगा. 223; किंसू असिस्सामि कुवं वा प. 94; सेता सुदं अस्सा युत्ता होन्ति ..., स. नि. 3(1).4; असिस्सं. सु. नि. 976.
मधुरेनाकारेन अस्सा हसिंसु, उदा. अट्ठ. 119; - स्सा' अस्म/अम्ह पु.. [अश्मन्], पत्थर, चकमक पत्थर - थब्भ स्त्री., घोड़ी- वळवा स्सा, अभि. प. 371; - स्सं द्वि. वि., पासाण स्मोपलो सिला, अभि. प. 605; - स्मा प्र. वि., ए. ए. व. - तत्थ आजञ्जन्ति इमं आजानीयस्सञ्च मणिञ्चाति व. - अस्मा नून ते हदयं आयसं दळहबन्धनं, जा. अट्ठ. ..... अक्खधुत्तोति अस्सं दस्सेत्वा एवमाह, जा. अट्ठ. 7.165. 7.319; अस्मा नून ते हदयन्ति तात, मातापितून हदयं नाम अस्सक' पु.. [अश्मक], क. ब. व. में आन्ध्र-प्रदेश की एक पुत्तेसु मुदुक होति.... तव पन हदयं पासाणो विय मझे, जनजाति अथवा इस जनजाति का क्षेत्र, दक्षिण में एक देश जा. अट्ठ. 7.320; अस्मा कुम्भमिवाभिदाति पासाणो घटं विय. या उस देश के निवासी - कानं ष. वि., ब. व. - अङ्गानं, जा. अट्ठ. 3.25; - अस्मनि सप्त. वि., ए. व. - 'मा पादं मगधानं. ... अस्सकानं, अवन्तीनं, अ. नि. 1(1),242; ख. ए. खलि यस्मनी ति, जा. अट्ठ. 3.383.
व. में, अश्मक प्रजाति का राजा, अश्मक क्षेत्र का शासक अस्मपुष्फ नपुं., तत्पु. स. [अश्मपुष्प], शिलाजीत का पुष्प -- कस्स ष. वि., ए. व. - सो अस्सकस्स विसये, अळकस्स - सेलेय्य मरमपुप्फ च, अभि. प. 591.
समासने, सु. नि. 983; अस्सकस्स च अळकस्स चाति अस्मिमान पु., "मैं कुछ हूं", "मैं महत्वपूर्ण हूं इस रूप से द्विन्नम्पि राजूनं समासन्ने विसये आसन्ने रट्टे द्विन्नम्पि चित्त में “मैं” के सम्बन्ध में मनन या चिन्तन, आत्मदृष्टि - रहानं मज्झेति अधिप्पायो, सु. नि, अट्ठ. 2.271. स्स ष. वि., ए. व. - अस्मिमानस्स यो विनयो, उदा. 80; अस्सक' पु.. [अश्वक], छोटा घोड़ा, भाड़े का टट्ट, मामूली अस्मिमानस्स यो विनयोति इमिना पन अरहत्तं कथितं, घोड़ा - ... अस्सकस्थकादीहि बालकीळनकेहि कीळयमानो उदा. अट्ट, 80; महाव, अट्ठ. 231; - नो प्र. वि., ए. व. - ..., म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.207. अस्मिमानो समुच्छिन्नो, ..., स. नि. 2(1).77; अस्मिमानो अस्सक' त्रि., केवल स. उ. प. में ही प्राप्त [अम्रक/अश्रक], समुच्छिन्नोति नवविधो अस्मिमानो अरहत्तमग्गेन समुच्छिन्नो, कोना, किनारा, - चतुर. चार किनारों वाला, चौकोर - कं स. नि. अट्ठ. 2.250; - नं द्वि. वि., ए. व. - अनिच्चसआ, नपुं॰, प्र. वि., ए. व., क्रि. वि. - ... न चतुरस्सकं कारापेतब्बं ... भाविता... सब्बं अस्मिमानं समूहनति, स. नि. 2(1).139; ...., चूळव. 255. - समुग्घात पु., [अस्मिमानसमुद्घात], 'मैं सम्बन्धी मान्यता अस्सक त्रि., [अस्वक]. 1. दरिद्र, वह, जिसके पास अपनी का नाश - तं द्वि. वि., ए. व. - अनत्तसञी कोई धन-दौलत न हो- को पु., प्र. वि., ए. व. - पुरिसो अस्मिमानसमुग्घातं पापुणाति दिट्टेव धम्मे निब्बानान्ति, उदा. दलिदो अस्सको अनाळिहयो, म. नि. 2.123; अस्सकोति
निस्सको, म. नि. अट्ट. (म.प.) 2.119; 2. नहीं अपना, अस्स/स्स 1. इम (यह) सर्व., का पु., ष. वि., ए. व. बेगाना, सदा अपने साथ न रहने वाला - को पु., प्र. वि., [अस्स], इसका - नास्स कोसा धनं गण्हे, जा. अट्ट, 7.188; ए. व. - अस्सको लोको, सब्बं पहाय गमनीयन्ति, म. नि. यहिस्स, भिक्खवे, संवरं असंवतस्स विहरतो..... म. नि. 2.265; अस्सकोति निस्सको सकभण्डविरहितो, म. नि. 1.13; 2. Vअस (होना) का विधि., प्र. पु., ए. व. [स्यात्], अट्ठ. (म.प.) 2.216. हो, द्रष्ट., अत्थि के अन्त. (ऊपर); 3. नपुं.. [आस्य], मुख अस्सकजातक नपुं.. जा. अट्ठ. की एक कथा, जा. अट्ठ. - स्सं प्र. वि., ए. व. - ... मुखं अस्सञ्च आननं, सद्द. 2128-131. 2.386; 4. पु., स. उ. प. के रूप में प्रयुक्त [अम्र/अश], अस्सकण्ण पु.. [अश्वकर्ण]. 1. एक वृक्ष - ण्णो प्र. वि., ए. कोना, किनारा, प्रान्तभाग - स्सो प्र. वि., ए. व. - अथव, - नेव सालो न खदिरो, नास्सकण्णो कुतो धवो, जा. कोणो स्सो कोटि नारियं, अभि. प. 394; 1102; ... अट्ठ. 4.186; साळो स्सकण्णो सज्जोथ, अभि. प. 4.562; -
110.
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