Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 734
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असेत्वा 707 असोक वचन नपुं., कर्म. स. [अशेषवचन], सभी को अपने में अन्तर्गत करने वाला वचन, यथार्थ-वचन - नं प्र. वि., ए. व. - असेसवचनं इदं, निस्सेसवचनं इदं, निप्परियायवचनं इदं, ..., मि. प. 121; - विरागनिरोध पु., कर्म. स. [अशेषविरागनिरोध], पूरी तरह से बिलगाव और विनाश, विराग के मार्ग द्वारा पूर्ण निरोध - धा प. वि., ए. व. - अविज्जायत्वेव असेसविरागनिरोधा सङ्घारनिरोधो, म. नि. 1.334; असेसविरागनिरोधाति विरागसङ्घातेन मग्गेन असेसनिरोधा अनुप्पादनिरोधा, म. नि. अठ्ठ. (मू.प.) 1(2).204; असेसविरागनिरोधाति असेसं विरागेन निरोधा, असेसविरागसङ्घाता वा निरोधा, सु. नि. अठ्ठ. 2.201. असेत्वा ।सिस (बाकी बचा रहना) के पू. का. कृ. का निषे.. बाकी कुछ भी बचा हुआ न छोड़कर, अपने पीछे कुछ भी बचा हुआ न छोड़कर - एक सामणेरम्पि विहारे असेसेत्वा भिक्खं अधिवासेथाति, स. नि. अट्ठ. 2.160. असोक 1. त्रि., ब. स. [अशोक], शोक-रहित, शोक-मुक्त (व्यक्ति अथवा चित्त)- को पु., प्र. वि., ए. व. - असोको होति निब्बुतोति, सु. नि. 598; - कं नपुं., प्र. वि., ए. व. - असोकं विरजं सुद्ध, सु. नि. 641; ध. प. 412; तमहं वट्टमूलसोकेन असोक .... सु. नि. अट्ठ. 2.172; - का पु., प्र. वि., ब. व. - असोका ते विरजा अनुपायासाति वदामीति, उदा. 177; 2. पु., शोक का निषे., तत्पु. स. [अशोक], शोक का अभाव, शोक से मुक्त अवस्था, अशोकभाव, निर्वाण की अवस्था - कं द्वि. वि., ए. व. - तस्मा असोकं विरजं पत्थयानो, उदा. 177; ... असोकभावं... असोकं विरजन्ति लद्धनाम निब्बानं, ..., उदा. अट्ठ. 347; 3. पु., [अशोक], एक वृक्ष, लाल फूलों वाला एक प्रसिद्ध वृक्ष - असोको वजुलो चाथ, अभि. प. 573; - का प्र. वि., ब. व. - असोका मुदयन्ती च, वल्लिभो खुद्दपुफ्फियो, जा. अट्ठ. 7.304; अतिमुत्ता असोका च, पुफिता मम अस्समे, अप. 1.12; - कं द्वि. वि., ए. व. - असोकं पुष्फितं दिस्वा, अप. 1.206; 4. पु., एक पर्वत का नाम - को प्र. वि., ए. व. - हिमवन्तस्साविदूरे असोको नाम पब्बतो, अप. 1.376; 5. पु., अनेक व्यक्तियों का नाम, क. अनोमदस्सी बुद्ध का अग्रश्रावक - को प्र. वि., ए. व. - निसभो च अनोमो च अहेसुं अग्गसावका, बु. वं. 323; पाठा. अनोमो; ख. विपस्सी बुद्ध का उपट्ठाक (परिचारक) - विपस्सिस्स, भिक्खवे, भगवतो... असोको नाम भिक्ख उपट्ठाको अहोसि, दी. नि. 2.5; ग. कस्सपबुद्ध के समय का एक ब्राह्मण - कस्सपमुनिनो काले असोको नाम ब्राह्मणो, म. वं. 27.11; घ. एक भिक्षु - असोको नाम, भन्ते, भिक्खु कालङ्कतो. स. नि. 3.424; ङ, मौर्यवंश का एक प्रसिद्ध राजा, जो पहले चण्डाशोक तथा बाद में धर्माशोक कहलाया - चण्डासोको ति आयित्थ पुरे पापेन कम्मुना, धम्मासोको तिञायित्थ पच्छा पुओन कम्मना, म. वं. 5.189; अनागते पियदासो नाम कुमारो ... असोको धम्मराजा भविस्सति, दी. नि. अट्ठ. 2.182; - कत्रज पु., तत्पु. स. [अशोकात्मज], सम्राट अशोक का पुत्र (महेन्द्र) - जं द्वि. वि., ए. व. - परिपुण्णवीसति वस्सो महिन्दो अशोकत्रजो, दी. वं. 7.21; - कणिका स्त्री., तत्पु. स. [अशोककर्णिका], कानों के आभूषण के रूप में प्रयुक्त अशोक वृक्ष के फूलों का गुच्छा - कं द्वि. वि., ए. व. - अप्पिळयह मञ्जरिन्ति सपल्लवं असोककणिक कण्णे पिळन्धित्वाति वुत्तं होति, जा. अट्ठ. 5.396; - कछुर नपुं०, तत्पु. स. [अशोकाकुर], अशोक के वृक्ष का अङ्कर - रं प्र. वि., ए. व. - असोकडरहि आदितोव तनुरतं होति, विसुद्धि. 2259; -चित्त नपुं.. ब. स. [अशोकचित्त], शोक से रहित चित्त - त्तं प्र. वि., ए. व. - एवं इमिस्सा गाथाय अवलोकधम्मेहि अकम्पितचित्तं, असोकचित्तं, निरजचित्तं, खेमचित्तन्ति चत्तारि मङ्गलानि वुत्तानि, खु. पा. अट्ठ. 124;-धम्मराज पु., कर्म. स. [अशोकधर्मराजन्], मौर्य सम्राट धर्माशोक, धर्मराजा अशोक - रो ष. वि., ए. व. - अनच्छरियञ्चेतं थेरस्स .... सतसहस्सकप्पे पूरितपारमिस्स, असोकधम्मरओ कुलूपको निग्रोधत्थेरो दिवसस्स निक्खत्तुं चीवरं परिवत्तेसि, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.141; - पिण्डी स्त्री., तत्पु. स., अशोक वृक्ष के फूलों की कलियों का गुच्छा - ण्डिया तृ. वि., ए. व. - पुप्फपच्छिकतालपण्णगुळकादीनं पन छिद्दे सु असोकपिण्डिया वा अन्तरेसु पुप्फानि पवेसेतुं न दोसो, पारा. अट्ठ. 2.184; - पुष्फ नपुं., तत्पु. स. [अशोकपुष्प], अशोक वृक्ष का पुष्प - प्फानि द्वि. वि., ए. व. - ... पिण्डीकतानि बहूनि असोकपुप्फानि गहेत्वा आगच्छन्ती.... वि. व. अट्ठ. 143; - पूजक पु.. एक स्थविर, एक भिक्खु - को प्र. वि., ए. व. - इत्थं सुदं आयस्मा असोकपूजको थेरो इमा गाथायो अभासित्थाति, अप. 1.206; - भाव पु.. [अशोकभाव], शोक का अभाव - वं द्वि. वि., ए. व. - तस्मा अत्तनो यथावृत्तसोकाभावेन च असोकं असोकभावं रागरजादिविगमनेन विरजं विरजभावं अरहत्तं ..., उदा. अट्ठ. 347; - मालक/माळक पु., अनुराधपुर महाविहार के बत्तीस क्षेत्रों में से एक क्षेत्र - के सप्त. वि., ए. व. - असोकमाळकति For Private and Personal Use Only

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