Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

View full book text
Previous | Next

Page 731
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असुरिन्दकभारद्वाज 704 असूर राज पु., तत्पु. स. [असुरराज], असुरों का राजा, असुरों असुरोप/अस्सुरोप पु., 1. द्वेष या क्रोध से भरा चित्त, का अधिपति - जो प्र. वि., ए. व. - असुराधिपोति यथा जिसमें बोले गए वचन आधे-अधूरे ही रह जाते हैं, परिपूर्ण तावतिंसेहि परिवारितं इन्दं असुरराजा नप्पसहति, जा. नहीं हो पाते, चित्त में उत्तेजना या क्रोध का भाव - ... दोसो अट्ठ. 4.124; - वग्ग पु., अ. नि. के एक वर्ग का शीर्षक, दुस्सना... चण्डिक्कं असुरोपो अनत्तमनता चित्तस्स, ध. स. अ. नि. 1(2),106-116; - वत नपुं.. तत्पु. स. [असुरद्रत], 418; न एतेन सुरोपितं वचनं होति, दुरुत्तं अपरिपुण्णमेव असुरों का व्रत, असुरों द्वारा ग्रहण किया गया व्यवहार - होतीति असुरोपो, ध. स. अट्ट, 297; 2. आंसुओं से भरपूर तं प्र. वि., ए. व. - वतानीति हत्थिवतं वा... यक्खवतं वा क्रोध या उत्तेजना की अवस्था - अपरे पन अस्सुजननतुन असुरवतं वा..., महानि. 66; - वतिक त्रि., [असुरव्रतिक], अस्सुरोपनतो अस्सुरोपोति वदन्ति, ध, स. अट्ठ. 297. असुरों के व्रतों या विधि विधानों का अनुसरण करने असुलभ त्रि., सुलभ का निषे., तत्पु. स. [असुलभ], सरलता वाला, असुरों के कार्यकलापों को ग्रहण करने वाला - का से प्राप्त न होने वाला - भं पु./नपुं., द्वि. वि., ए. व. - पु., प्र. वि., ए. व. - सन्तेके समणब्राह्मणा असुलभमभुतमतुलं निच्च नीरुज असोकमतिसन्तं सद्धम्मो. वतसुद्धिका, ... यक्खवतिका वा होन्ति, असुरवतिका वा 496. होन्ति, ..., महानि. 63-64; - विमान नपुं, तत्पु. स. असुवण्ण 1. त्रि., सुवण्ण का निषे. [असुवर्ण], सोना से [असुरविमान], असुरों का लोक, असुरों का निवासस्थान- भिन्न वह वस्तु, जो सोना से भिन्न हो, रहित हो - ण्णो पु., नं प्र. वि., ए. व. - अथ नेसं पुञानुभावेन सिनेरुनो प्र. वि., ए. व. - इमस्मि करीसमत्ते पदेसे आमलकमत्तोपि हेद्विमतले असुरविमानं नाम निब्बत्ति, ध. प. अट्ठ. 1.1544; - पंसपिण्डो असुवण्णो नाम नत्थी ति, अ. नि. अट्ठ. 1.330; 2. सासन पु., तत्पु. स. [असुरशासन]. शक्र (इन्द्र) की एक नपुं., सुवण्ण का निषे., तत्पु. स., सोना के अतिरिक्त कुछ उपाधि - नो प्र. वि., ए. व. - जम्बारिचेव वजिरहत्थो । अन्य - ण्णं द्वि. वि., ए. व. - सा असुवण्णमेव सुवण्णन्ति असुरसासनो, सद्द. 2.378; - राधिप पु., तत्पु. स. ... दत्वा , जा. अट्ट, 4.12. [असुराधिप], असुरों का स्वामी - पो प्र. वि., ए. व, - असुसानट्ठान नपुं.. सुसानट्ठान का निषे. [अश्मशानस्थान], अमित्ता नप्पसहन्ति, इन्दंव असुराधिपो ति, जा. अट्ठ. 4.123; ऐसा स्थान, जहां श्मशान न हो या जहां कोई मृत व्यक्ति असुराधिपोति यथा तावतिंसेहि परिवारितं इन्दं । की दाहक्रिया न की गयी हो - नं प्र. वि., ए. व. - असुरराजा नप्पसहति, जा. अट्ठ. 4.124; - राधिपति पथवियहि अझापितट्टानं वा असुसानहानं वा ... लर्द्धन पु., उपरिवत् - तिं द्वि. वि., ए. व. - ये मादिसं सक्का ..., जा. अट्ठ. 2.45... असुराधिपतिं नवगूथसूकर विय कण्ठपञ्चमेहि बन्धनेहि असुसिर त्रि., [असुषिर], नहीं खोखला, ठोस - रो पु., प्र. बन्धित्वा निसीदापेन्ति, स. नि. अट्ठ. 3.110; - राभिभू पु., वि., ए. व. - यथा हि एकघनो असुसिरो..., ध. प. अट्ट. शक्र (इन्द्र) की एक उपाधि - गन्धब्बराजा देविन्दो सरिन्दो 1.330. असुराभिभूति, सद्द. 2.378; - रिन्द पु., तत्पु. स. [असुरेन्द], असुस्सूसन्त त्रि., vसु (सुनना) के इच्छा. के वर्त. कृ. का असुरों का राजा या स्वामी - न्देन तृ. वि., ए. व. - निषे. [अशुश्रूषत्], सुनने की इच्छा न रखने वाला - स्सं सकलनगरं बोधिसत्तस्स रूपदस्सनेन धनपालकेन पु., प्र. वि., ए. व. - पञञ्च खो असुस्सूसं, न कोचि पविट्ठराजगहं विय असुरिन्देन पविट्ठदेवनगरं विय च सोभ अधिगच्छति, जा. अट्ठ. 5.117; असुस्सूसन्ति पण्डितपुग्गले अगमासि, जा. अट्ठ. 1.75. अपयिरुपासन्तो अस्सुणन्तो, जा. अट्ट. 5.118. असुरिन्दकभारद्वाज पु., अक्कोसकभारद्वाज का अनुज - असुस्सूसा स्त्री., सुस्सूसा का निषे., तत्पु. स. [अशुश्रूषा]. जो प्र. वि., ए. व. - असुरिन्दकभारद्वाजो ब्राह्मणो भगवन्तं सुनने की इच्छा का अभाव - सा प्र. वि., ए. व. - एतदवाच-स. नि. 1(1).191; तातय असुरिन्दकभारद्वाजोति असुस्सूसा अपरिपुच्छा पञआय पटिपन्थी, अ. नि. 3(2).113. अक्कोसकभारद्वाजस्स कनिट्ठो, स. नि. अट्ठ. 1.202. असूयित्थ सु (सुनना) के कर्म. वा. का अद्य., म. पु., ब. असुरियंपस्स त्रि., [असूर्यम्पश्य], सूर्य को न देखने व., सुना गया था- असूयित्था ति वा सुतं. सद्द. 2.491. वाला/वाली - स्सानि नपुं. प्र. वि., ब. क. - असुरियंपस्सानि असूर पु., निषे. तत्पु. स. [अशूर], शूरता एवं वीरता से मुखानि, सद्द. 3.744. रहित, साहसहीन, कायर, डरपोक - रो प्र. वि., ए. व. - For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761