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असुरिन्दकभारद्वाज 704
असूर राज पु., तत्पु. स. [असुरराज], असुरों का राजा, असुरों असुरोप/अस्सुरोप पु., 1. द्वेष या क्रोध से भरा चित्त, का अधिपति - जो प्र. वि., ए. व. - असुराधिपोति यथा जिसमें बोले गए वचन आधे-अधूरे ही रह जाते हैं, परिपूर्ण तावतिंसेहि परिवारितं इन्दं असुरराजा नप्पसहति, जा. नहीं हो पाते, चित्त में उत्तेजना या क्रोध का भाव - ... दोसो अट्ठ. 4.124; - वग्ग पु., अ. नि. के एक वर्ग का शीर्षक, दुस्सना... चण्डिक्कं असुरोपो अनत्तमनता चित्तस्स, ध. स. अ. नि. 1(2),106-116; - वत नपुं.. तत्पु. स. [असुरद्रत], 418; न एतेन सुरोपितं वचनं होति, दुरुत्तं अपरिपुण्णमेव असुरों का व्रत, असुरों द्वारा ग्रहण किया गया व्यवहार - होतीति असुरोपो, ध. स. अट्ट, 297; 2. आंसुओं से भरपूर तं प्र. वि., ए. व. - वतानीति हत्थिवतं वा... यक्खवतं वा क्रोध या उत्तेजना की अवस्था - अपरे पन अस्सुजननतुन असुरवतं वा..., महानि. 66; - वतिक त्रि., [असुरव्रतिक], अस्सुरोपनतो अस्सुरोपोति वदन्ति, ध, स. अट्ठ. 297. असुरों के व्रतों या विधि विधानों का अनुसरण करने असुलभ त्रि., सुलभ का निषे., तत्पु. स. [असुलभ], सरलता वाला, असुरों के कार्यकलापों को ग्रहण करने वाला - का से प्राप्त न होने वाला - भं पु./नपुं., द्वि. वि., ए. व. - पु., प्र. वि., ए. व. - सन्तेके समणब्राह्मणा असुलभमभुतमतुलं निच्च नीरुज असोकमतिसन्तं सद्धम्मो. वतसुद्धिका, ... यक्खवतिका वा होन्ति, असुरवतिका वा 496. होन्ति, ..., महानि. 63-64; - विमान नपुं, तत्पु. स. असुवण्ण 1. त्रि., सुवण्ण का निषे. [असुवर्ण], सोना से [असुरविमान], असुरों का लोक, असुरों का निवासस्थान- भिन्न वह वस्तु, जो सोना से भिन्न हो, रहित हो - ण्णो पु., नं प्र. वि., ए. व. - अथ नेसं पुञानुभावेन सिनेरुनो प्र. वि., ए. व. - इमस्मि करीसमत्ते पदेसे आमलकमत्तोपि हेद्विमतले असुरविमानं नाम निब्बत्ति, ध. प. अट्ठ. 1.1544; - पंसपिण्डो असुवण्णो नाम नत्थी ति, अ. नि. अट्ठ. 1.330; 2. सासन पु., तत्पु. स. [असुरशासन]. शक्र (इन्द्र) की एक नपुं., सुवण्ण का निषे., तत्पु. स., सोना के अतिरिक्त कुछ उपाधि - नो प्र. वि., ए. व. - जम्बारिचेव वजिरहत्थो । अन्य - ण्णं द्वि. वि., ए. व. - सा असुवण्णमेव सुवण्णन्ति असुरसासनो, सद्द. 2.378; - राधिप पु., तत्पु. स. ... दत्वा , जा. अट्ट, 4.12. [असुराधिप], असुरों का स्वामी - पो प्र. वि., ए. व, - असुसानट्ठान नपुं.. सुसानट्ठान का निषे. [अश्मशानस्थान], अमित्ता नप्पसहन्ति, इन्दंव असुराधिपो ति, जा. अट्ठ. 4.123; ऐसा स्थान, जहां श्मशान न हो या जहां कोई मृत व्यक्ति असुराधिपोति यथा तावतिंसेहि परिवारितं इन्दं । की दाहक्रिया न की गयी हो - नं प्र. वि., ए. व. - असुरराजा नप्पसहति, जा. अट्ठ. 4.124; - राधिपति पथवियहि अझापितट्टानं वा असुसानहानं वा ... लर्द्धन पु., उपरिवत् - तिं द्वि. वि., ए. व. - ये मादिसं सक्का ..., जा. अट्ठ. 2.45... असुराधिपतिं नवगूथसूकर विय कण्ठपञ्चमेहि बन्धनेहि असुसिर त्रि., [असुषिर], नहीं खोखला, ठोस - रो पु., प्र. बन्धित्वा निसीदापेन्ति, स. नि. अट्ठ. 3.110; - राभिभू पु., वि., ए. व. - यथा हि एकघनो असुसिरो..., ध. प. अट्ट. शक्र (इन्द्र) की एक उपाधि - गन्धब्बराजा देविन्दो सरिन्दो 1.330. असुराभिभूति, सद्द. 2.378; - रिन्द पु., तत्पु. स. [असुरेन्द], असुस्सूसन्त त्रि., vसु (सुनना) के इच्छा. के वर्त. कृ. का असुरों का राजा या स्वामी - न्देन तृ. वि., ए. व. - निषे. [अशुश्रूषत्], सुनने की इच्छा न रखने वाला - स्सं सकलनगरं बोधिसत्तस्स रूपदस्सनेन धनपालकेन पु., प्र. वि., ए. व. - पञञ्च खो असुस्सूसं, न कोचि पविट्ठराजगहं विय असुरिन्देन पविट्ठदेवनगरं विय च सोभ अधिगच्छति, जा. अट्ठ. 5.117; असुस्सूसन्ति पण्डितपुग्गले अगमासि, जा. अट्ठ. 1.75.
अपयिरुपासन्तो अस्सुणन्तो, जा. अट्ट. 5.118. असुरिन्दकभारद्वाज पु., अक्कोसकभारद्वाज का अनुज - असुस्सूसा स्त्री., सुस्सूसा का निषे., तत्पु. स. [अशुश्रूषा].
जो प्र. वि., ए. व. - असुरिन्दकभारद्वाजो ब्राह्मणो भगवन्तं सुनने की इच्छा का अभाव - सा प्र. वि., ए. व. - एतदवाच-स. नि. 1(1).191; तातय असुरिन्दकभारद्वाजोति असुस्सूसा अपरिपुच्छा पञआय पटिपन्थी, अ. नि. 3(2).113.
अक्कोसकभारद्वाजस्स कनिट्ठो, स. नि. अट्ठ. 1.202. असूयित्थ सु (सुनना) के कर्म. वा. का अद्य., म. पु., ब. असुरियंपस्स त्रि., [असूर्यम्पश्य], सूर्य को न देखने व., सुना गया था- असूयित्था ति वा सुतं. सद्द. 2.491. वाला/वाली - स्सानि नपुं. प्र. वि., ब. क. - असुरियंपस्सानि असूर पु., निषे. तत्पु. स. [अशूर], शूरता एवं वीरता से मुखानि, सद्द. 3.744.
रहित, साहसहीन, कायर, डरपोक - रो प्र. वि., ए. व. -
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