Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 728
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org असुद्ध असुद्ध त्रि, सुद्ध का निषे, तत्पु० स० [ अशुद्ध ], अस्वच्छ, मलिन, गन्दा, नैतिक दृष्टि से अकुशल, आचारहीन - न पु. / नपुं. तृ. वि. ए. व. कथं सुद्धं असुद्धेन समं करेय्या ति सु. नि. 90: कथहि सुतवा... सुद्धं समणत्तयमेवं अपरिसुद्धकायसमाचारतादीहि असुद्धेन ... समं करेय्य ...... सु. नि. अड. 1.131 दो पु. प्र. वि. ए. व. असुद्धो होति पुग्गलो अञ्ञतरं पाराजिक धम्मं अज्झापन्नो, पारा, 259 डाव व अन्तो असुद्धा यहि सोभमानाति स. नि. 1 ( 1 ) 96 अन्तो असुद्धाति अब्भन्तरतो रागादीहि अपरिसुद्धा महानि. अड. 358; कम्म त्रि. ब. स. [अशुद्धकर्मन्]. मलिन कर्मों को करने वाला, अकुशल कर्मों को करने वाला म्मा पु०, प्र. वि. ब. व. ये सुद्धा..... असुद्ध कम्मा कथिनो ददन्ति, जा. अड. 6.132 असुद्धकम्माति किलिहकायवचीमनोकम्मा जा. अड. 6.133 धम्मत नपुं. भाव. [ अकुशलधर्मत्व], पापमय या अकुशल धर्मों से युक्त होना त्ताप. वि. ए. व. असुद्धधम्मता " अनरियधम्मेसु केराटिकत्ता सर्वसु नस्सति जा. अड्ड. 3.9 मक्ख त्रि. [ अशुद्धभक्षिन्] अशुद्ध पदार्थों को खाने वाला, गन्दी चीजों को खा लेने वाला क्खो पु. प्र. वि.. ए. व. असुद्धभक्खसि खणानुपाती, किच्छेन ते लब्भति अन्नपानं, जा. अड. 3.461. असुद्धि स्त्री, सुद्धि का निषे, तत्पु० स० प्र. वि., ए. व. [ अशुद्धि] शुद्धि का अभाव, आचरण में पवित्रता का अभाव, अकुशलता सुद्धी असुद्धि पच्चत्तं, ध. प. 165; अकुसलकम्मसद्वाता च असुद्धि... ध. प. अ. 2.89; द्धिं द्वि. वि., ए. व. सुद्धिं असुद्धिन्ति अपत्थयानो. सु. नि. 906 असुद्धिन्ति असुद्धिं पत्थेन्ति, अकुसले धम्मे पत्थेन्ति, महानि. 230. धम्म त्रि०, ब० स० [ अशुद्धिधर्मन् ], विशुद्धि या निर्वाण को प्राप्त न करने योग्य, स्वभाव से ही विशुद्धि-रहित चित्त वाला म्मं पु. हि. वि. ए. व. सयमेव ..... परं वद बालमसुद्धिधम्मं सु. नि. 899 म्मो प्र. वि. ए. व. बालमसुद्धिधम्मन्ति परो बालो हीनो निहीनों ओमको लामको ... असुद्धिधम्मो अविसुद्धिधम्मो ... महानि. - - 222. असुन्दर त्रि.. सुन्दर का निषे तत्पु, स. [असुन्दर] बुरा. प्रतिकूल, मन द्वारा प्रतिकूल रूप में संवेदनीय रो फु.. प्र. वि., ए. व. - असुन्दरो गन्धो यस्स सो दुग्गन्धि, क. व्या. 339 पु.द्वि. वि. ए. क. इध भिक्खु चीवरं लभति, - रं सुन्दरं या असुन्दरं वा दी. नि. अड. 1.166. 701 असुभ - . असुभ त्रि. सुभ का निषे तत्पु, स. [अशुभ ], शा. अ. अमङ्गलों को लाने वाला, अमङ्गलकारी, अपवित्र ला. अ. क. क्लेशों के मलों से परिपूर्ण, घिनौना (शरीर एवं सांसारिक सुख आदि) मं' नपुं. प्र. वि. ए. व. सङ्घतमसुभन्ति किलेसासुचिपग्धरणेन असुभन्ति अत्या.... थेरीगा. अड. 280; - मं नपुं., द्वि. वि., ए. व. - असुभं असुभतद्दसु. अ. नि. 1(2):60: तो प. वि. ए. व. असुभतदसुन्ति असुभं असुभतोयेव अद्दसंसु, अ. नि. अट्ठ. 2.299 - भे पु० / नपुं०, सप्त. वि. ए. व. असुभे असुभसज्जिनो, अ. नि. 1 ( 2 ) 60: ला. अ. खत्रि, अशुभ या अपवित्र माने गए दस प्रकार के आलम्बनों पर उपचार-ध्यान अथवा उनकी स्मृति या अनुपश्यना मं द्वि. वि. ए. व. असुभ राहुल भावनं भावेहि म. नि. 2.95; असुभन्ति उद्घुमातकादिसु उपचारप्पन म. नि. अड्ड. (म.प.) 2101 भा स्त्री. प्र. वि. ए. व. रागस्स पहानाय असुभा भावेतब्बा अ. नि. 2 ( 2 ) 145 - य च. वि. ए. क. असुभाय चितं भावेहि सु. नि. 343 असुभाय चित्तं भावेहीति यथा सविञ्ञाणके अविज्ञाणके या कार्य असुभभावना सम्पज्जति, एवं चित्तं भावेहि सु. नि. अट्ठ. 2.69 ला. अ. ग. पु०, अशुभ- भावना के दस प्रकार अथवा चित्त की एकाग्रता के दस अशुभ आलम्बन भा प्र० वि. ब. व. उद्धमातक, विनीलकं, विपुष्बकं विच्छिदक, विक्खायितक, विक्खित्तकं, हतविक्खित्तकं, लोहितकं, पुळुवक, अद्विकन्ति इमे दस असुभा विसुद्धि. 1.108 अभि. ध. स. 62; - भेद्वि. वि., ब. व. - उग्गण्हेय्यासुभे कथं, ना० रु. परि 1069; कथा स्त्री, तत्पु. स. [ अशुभकथा]. शा. अ. अमङ्गल भरी चीजों के बारे में कथन या उपदेश, शरीर एवं विषय-भोगों आदि के अशुभ होने के विषय में उपदेश थं द्वि. वि. ए. व. भगवा भिक्खूनं अनेकपरियायेन असुभकथं कथेति पारा 81 स. नि. 3.390 ला. अ. बुद्धवचन से बाहर की पांच प्रकार की कथावस्तुओं में से एक तिस्सो पन सङ्गीतियो अनारुळ्हं धातुकथा आरम्मणकथा असुभकथा आणवत्थुकथा विज्जाकरण्डकोति स. नि. अनु. 2.177; कम्मट्ठान नपुं, कर्म, स. [बौ. सं. अशुभकर्मस्थान ], ध्यान के चालीस कर्मस्थानों (आलम्बनों) में से एक के रूप में अशुभ नं द्वि. वि., ए. व. रामपरिपक्खं असुभकम्मट्टानं गत्वा म. नि. अड (मू.प.) 1(1).72; तरस रागपटिघाताय असुभकम्गद्वानं अदासि ध. प. अ. 2.243 कम्मट्ठाननिदेस पु. विसुद्धि. के उस खण्ड का शीर्षक, जिसमें फूले हुए मृत शरीर जैसे 3. For Private and Personal Use Only - - www Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -

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