Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 674
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अविसद 647 अविसार टं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अविसारीति अविसटो, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.278. अविसद त्रि., [अविशद], क. अस्पष्ट, अप्रकट, अविशुद्ध, असुन्दर, अभव्य - दो पु., प्र. वि., ए. व. - इत्थीनहि ...., उपरिमकायो अविसदो, ध, स. अट्ठ. 353; - दा स्त्री., प्र. वि., ब. व. - इत्थियो हि गच्छमाना अविसदा गच्छन्ति, ध, स. अट्ठ, 353;-दं पु., द्वि. वि., ए. व. - पुरिसम्पि हि अविसदं दिस्वा मातगामो विय गच्छति तिट्ठत्ति ... वदन्ति, ध. स. अट्ठ. 354; - दानि नपुं.. प्र. वि., ब. व. - सुखुमम्पि .... इन्द्रियानि जरं पत्तस्स परिपक्कानि आलुळितानि अविसदानि, ध. स. अठ्ठ, 360; ख. अचतुर, मूर्ख, कुशलता या प्रवीणता से रहित - दो पु., प्र. वि., ए. व. - अब्यत्तोति अविसदो अछेको, दी. नि. अट्ठ. 2.361; - ता स्त्री., भाव. [अविशदता], विशेषज्ञता का अभाव, निपुणता का अभाव - य तृ. वि., ए. व. - ... अञआणभावेन मन्दो अविसदताय मोमूहो, पु. प. अट्ठ. 94; - त्त नपुं., भाव. [अविशदत्व]. उपरिवत् - तं द्वि. वि., ए. व. - अविसदत्तं अक्खातुं नयो दिन्नो तिनो रुचि, सद्द. 1.210; - दाकार त्रि., ब. स. [अविशदाकार], अभव्य आकार वाला/वाली - रा स्त्री., प्र. वि., ब. व. - इति यथा इत्थियो येभय्येन अविसदाकारा, ..., सद्द. 1.224; - दाकारवोहार पु., कर्म. स. [अविशदाकारव्यवहार], अभव्य स्वरूप की व्यवहार में अभिव्यक्ति - रो प्र. वि., ए. व. - अविसदाकारवोहारो इथिलिङ्ग, सद्द. 1.216; - ता स्त्री., भाव., असुस्पष्ट स्वरूप का व्यवहार में प्रकाशन - तं द्वि. वि., ए. व. - यथा वा गोसद्दस्स अविसदाकारवोहारतं पटिच्च इथिलिङ्गभावो उप्पज्जति, सद्द. 1.112. अविसम त्रि., विसम का निषे. [अविषम], अकठिन, बराबर, समान, सम - मेन पु., तृ. वि., ए. व. - समेन वत्तेय्याति अविसमेन ... आयेन पवत्तेय्य, पे. व अट्ठ. 114-15, अविसय पु., [अविषय], अपने विशेष क्षेत्र से बाहर वाला, अनुपयुक्त, पहुंच या पकड़ से बाहर का, अगोचर, अदृश्य - यो पु.. प्र. वि., ए. व. - अविसयो एस मय्ह पे. व. अट्ठ. 107; अजेसं अविसयो, बुद्धानमेव विसयोति, ध. स. अट्ठ. 13; - स्मि/ये पु., सप्त. वि., ए. व. - यथा तं, भिक्खवे, अविसयस्मिन्ति, स. नि. 2(2).14; अविसयस्मिन्ति एत्थ तन्ति निपातमत्तं. स. नि. अट्ठ. 3.5; अञत्र पन धातूनं अविसये तद्धितवसेन, सद्द. 2.506; - भूत त्रि., [अविषयभूत]. अपनी शक्ति, पकड़ या पहुंच से बाहर का हो चुका, अगोचर या अग्राह्य हो चुका - तं स्त्री., द्वि. वि., ए. व. - ... अजेसं अविसयभूतं कथं... ब्याकासी ति, पे. व. अट्ठ. 171; ... तित्थियानं अविसयभूतं बुद्धगोचरं ... दस्सेन्तो, उदा. अट्ठ. 173. अविसय्ह त्रि., वि + Vसह के सं. कृ. का निषे. [अविसह्य], असहनीय, असाध्य, अत्यधिक भारी, न उठाने योग्य - यह नपुं.. प्र. वि., ए. व. - सचस्स होति अविसव्ह, म. नि. 1.271; अविसरहन्ति उक्खिपितुं असक्कुणेय्यं, अतिभारियं, म. नि. अठ्ठ. (मू.प.) 1(2).141; सचे च जआ अविसरहमत्तनो, न ते हि महं सुखागमाय, जा. अट्ट, 4.202; सचेति यदि अत्तनो दुक्खं अविसयह अत्तनो वा... जानेय्य, जा. अट्ठ 4.203; - साही त्रि., असहनीय को सहन करने वाला - हि पु., संबो., प्र. वि., ए. व. - अज्ञातमेतं अविसय्हसाहि अत्तानमम्बञ्च ददामि ते तं, जा. अट्ठ, 5.8; अविसरहसाहीति राजानो नाम दुस्सहं सहन्ति, तेन नं आलपन्ती एवमाह, जा. अट्ठ. 5.9. अविसहन्त त्रि., वि + Vसह के वर्त. कृ. का निषे. [अविसहत्]. सक्षम नहीं हो रहा, सहन करने में अक्षम - न्तो पु., प्र. वि., ए. व. - ... बह्मचरियं चरितुं सो अविसहन्तो सिक्खं ..... हीनायावत्तो ति, दी. नि. 3.4; ... अद्धा अविसहन्तो असक्कोन्तो ब्रह्मचरियं चरितुं दी. नि. अट्ठ. 3.3; - न्ती स्त्री. प्र. वि., ए. व. - ... भिक्खुसङ्घस्स पत्ते पतिद्वापेतुं अविसहन्ती अट्ठासि, वि. व. अट्ठ. 54. अविसहन नपुं, वि + /सह से व्यु., क्रि. ना., सक्षम या समर्थ न होना, सहन न कर पाना - तस्मिं दुक्खसासनारोचने वत्तुं अविसहनवसेन किलमन्तं मं... अस्सासेन्त, सद्द. 1.21. अविसहमान त्रि., वि + Vसह के वर्त. कृ. का निषे. [असहमान], सहन नहीं कर पा रहा, सक्षम या समर्थ नहीं हो रहा - नो पु., प्र. वि., ए. व. - सोपि... पत्तं गण्हथाति वत्तुं अविसहमानो विहारंयेव अगमासि, जा. अट्ठ. 1.100. अविसार पु., विसार का निषे. [अविसार], फैलाव का अभाव, बिखराव का न रहना, अप्रसार अविक्षेप - रो पु०, प्र. वि., ए. व. - अविसारो अत्तनो एव अविसरणसभावो, विसुद्धि. महाटी. 2.132; - रट्ठ पु.. तत्पु. स., अप्रसार या अविक्षेप का अर्थ - @ो प्र. वि., ए. व. - अविसारट्ठो अभिज्ञेय्यो, पटि. म. 15; - द्वेन तृ. वि., ए. व. - अविसारठून समाधि, पटि. म. 43; - लक्ख ण त्रि., ब. स. [अविसारलक्षण], बिखराव या विक्षेप के अभाव वाले लक्षण से युक्त (समाधि) - णो पु., प्र. वि., ए. व. - सो For Private and Personal Use Only

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