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अवीत
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अवीतिक्कमन
जाने वाला - न्तं नपुं., क्रि. वि., द्वि. वि., ए. व. - तत्थ ब. स. [अवीतद्वेष], द्वेष से अमुक्त, द्वेषयुक्त - सो पु., प्र. इदं रूपं नाम हेट्ठा अवीचिपरियन्तं कत्वा उपरि वि., ए. व. - अज्जापि नून समणो गोतमो अवीतरागो अकनिद्वब्रह्मलोक ... वत्तति, स. नि. अट्ठ. 3.106; - अवीतदोसो अवीतमोहो, म. नि. 1.29; - सा ब. व. - महानिरय पु०, कर्म. स. [बौ. सं. अवीचिमहानिरय], मयम्पि हि चक्खुविजेय्येसु रूपेसु अवीतरागा अवीतदोसा अवीचि नामक महान नरक - तथा असुरभवन अवीतमोहा, म. नि. 3.353-54; - परिळाह त्रि., ब. स. अवीचिमहानिरयो जम्बुदीपो च, सु. नि. अट्ठ. 2.150; - स्स [अवीतपरिदाह], चित्त में जल रही अग्नि से अमुक्त, चित्त ष. वि., ए. व. - जालरोरुवोति पन अवीचिमहानिरयस्सेपेतं की व्याकुलता से युक्त - हो पु.. प्र. वि., ए. व. - ... नाम, स. नि. अट्ठ. 1.73; -- तो प. वि., ए. व. - तावदेव अवीतरागो होति... अविगत परिळाहो अविगततण्हो, अ. नि. अवीचिमहानिरयतो अग्गिजाला निक्खमित्वा तं ... गहि, 3(1).265; - मोह त्रि.. ब. स., मोह से ग्रस्त चित्त वाला जा. अट्ठ. 1.308; - ये सप्त. वि., ए. व. - उण्हेन रुप्पन - मयम्पि हि चक्खुविज्ञेय्येसु रूपेस अवीतरागा अवीतदोसा अवीचिमहानिरये पाकट होति. स. नि. अट्ठ. 2.258; - अवीतमोहा, म. नि. 3.353-54; - राग त्रि., ब. स. युप्पत्तिसंवत्तनिक त्रि., [बौ. सं. [अवीतराग], राग से अविनिर्मुक्त, राग से ग्रस्त चित्त वाला अवीचिनिरयुत्पत्तिसंवर्तनिक]. अवीचि-नामक नरक में उत्पत्ति - गो पु०. प्र. वि., ए. व. - अवीतरागो कामेसु. यस्स दिलाने वाला, अवीचि नरक की ओर ले जाने वाला - पञ्चिन्द्रिया मुद्, अ. नि. 2(2).84; गं द्वि. वि., ए. व. - एतमत्थं विदित्वाति एतं अवीचिमहानिरयुप्पत्तिसंवत्तनिय यहि ... अवीतरागं इमिना उपक्कमेन उपक्कमेय्याम हदयं कप्पट्टियं अतेकिच्छ ... विदित्वा .... उदा. अट्ठ. 259; - वास्स फलेय्य, स. नि. 1(1).147; -- गा पु., प्र. वि., ब. व. सन्ताप पु., तत्पु. स. [अवीचिमहानिरयसन्ताप], अवीचि- - परिनिब्बुते... अवीतरागा अप्पेकच्चे बाहा परगरह कन्दन्ति, नामक महानरक की गर्मी या तपिश - पो प्र. वि., ए. व. दी. नि. 2.118; अवीतरागाति पुथज्जना चे व - जीवन्तस्सेव अवीचिमहानिरयसन्तापो उपट्टहि, ध. प. सोतापन्नसकदागामिनो च, दी. नि. अट्ट. 2.168; - गे द्वि. अट्ठ. 1.74; - संपत्त त्रि., तत्प. स. [अवीचिसंप्राप्त]. वि., ब. व. - सो अञ सत्ते पस्सामि कामेसु अवीतरागे अवीचि-नामक महानरक में पहुंचा हुआ - तस्मिं खणे । कामतहाहि खज्जमाने ... पटिसेवन्ते, म. नि. 2.184. दक्खिणचक्कवाळं ओसीदित्वा हेट्टा अवीचिसम्पत्तं विय अहोसि. अवीतिक्कन्तपुब्ब त्रि., ब. स., वीतिक्कन्तपुब्ब का निषे. जा. अट्ट. 1.80.
[अव्यतिक्रान्तपूर्व], वह, जिसने पहले या पूर्वकाल में पार अवीत त्रि., वि + Vइ के पू. का. कृ. का निषे०, केवल स. नहीं किया है, अब से पहले पार न किया हुआ, उल्लंघन पू. प. के रूप में ही प्राप्त [अवीत]. दूर नहीं गया हुआ, न किया हुआ- ब्बं नपुं., प्र. वि., ए. व. - अतिण्णपुब्बन्ति तिरोहित नहीं हो चुका - गन्ध त्रि., ब. स. [अवीतगन्ध], इमिना दीघेन अद्धना सुपिनन्तेनपि अवीतिक्कन्तपुब्ब, सु. वह, जिसकी सुगन्ध नष्ट नहीं हुई है, सुगन्ध से युक्त - नि. अट्ठ. 2.37. धं नपुं॰, प्र. वि., ए. व. - पदुमं यथा कोकनदं सुगन्धं पातो अवीतिक्कमन्त त्रि., वि + अति + किम के वर्त. कृ. का सिया फुल्लमवीतगन्धं स. नि. 1(1).99; यथा कोकनदसवातं निषे. [अव्यतिक्रान्त], उल्लघंन नहीं करता हुआ, अतिक्रमण पदुमं पातोव फुल्लं, अवीतगन्धं सिया, स. नि. अट्ठ. 1.134; नहीं करता हुआ - न्तो पु., प्र. वि., ए. व. - तस्मिञ्च -- च्छन्द त्रि., ब. स. [अवीतछन्दस्]. वह, जिसकी इच्छा सिक्खापदे अवीतिक्कमन्तो सिक्खतीति, पारा, अट्ठ. 1.193.
या तृष्णा समाप्त नहीं हुई है - न्दो पु., प्र. वि., ए. व. - अवीतिक्कम पु., [अव्यतिक्रम]. अनुल्लंघन, अतिक्रमण या .... अवीतरागो होति अविगतच्छन्दो..., अ. नि. 3(1).265; - अनाचार का अभाव, सदाचार - सोरच्चनिद्देसे कायिको तण्ह त्रि., ब. स. [अवीततृष्ण], वह, जिसके मन की तृष्णा अवीतिक्कमोति तिविधं कायसुचरितं, ध. स. अट्ट, 1.417; का निरोध या क्षय नहीं हुआ है - हो पु., प्र. वि., ए. व. ... कायिको अवीतिक्कमो वाचसिको अवीतिक्कमोति सीलमेव - अवीततण्हो हि पापिच्छो..., उदा. अट्ठ. 51; - ण्हा ब. सोरच्च न्ति वुत्तं, स. नि. अट्ठ. 1.224. व. - राजा च अखे च बहू मनुस्सा, अवीततण्हा मरणं अवीतिक्कमन नपुं.. [अव्यतिक्रमण], अनुल्लंघन, अनाचार उपेन्ति, थेरगा. 778; - ण्हासे ब. व. - हीना नरा मच्चुमुखे का व्यवहार में अप्रयोग - नं प्र. वि., ए. व. - पाणातिपातस्स लपन्ति, अवीततण्हासे भवाभवेसु, सु. नि. 782; - दोस त्रि., अवीतिक्कमनं अवीतिक्कमो सील, विसुद्धि, महाटी, 1.72.
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