Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 694
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 667 असक्यपुत्तिय असंकेत असक्यपुत्तिय त्रि., [अशाक्यपुत्रीय], बुद्धधर्म के अनुरूप - पोराणा असंकिण्णा असंकिण्णपुब्बा, अ. नि. 1(2).33; आचरण न करने वाला भिक्षु/भिक्षुणी - यो पु., प्र. वि., असंकिण्णा अविकिण्णा अनपनीता, अ. नि. अट्ठ. 2.269. ए. व. - ... पटिसेवित्वा अस्समणो होति असक्यपुत्तियो, ___ असंकित त्रि., [अशङ्कित], शङ्का से मुक्त, घबराहट या भय महाव. 123; यंनूनाहं अस्समणो... असक्यपुत्तियो अस्सन्ति से रहित - असंकितो अजयूथं उपेति, जा. अट्ठ. 5.230; वदति विज्ञआपेति, पारा. 26; - धम्म पु., निषे, तत्पु. स. कादम्बनदिया तीरे ठपेत्वान असङ्कितो, म. वं. 22.53. [अशाक्यपुत्रीयधर्म], शाक्यपुत्र बुद्ध के धर्म से इतर दूसरा असंकिय त्रि., (सङ्क के सं. कृ. का निषे. [अशक्य], शङ्का धर्म - म्मो पु., प्र. वि., ए. व. - धारेय्यासि अस्समणधम्मो नहीं करने योग्य, निर्भय, आशङ्काभाव से मुक्त - असतियोम्हि असक्यपुत्तियधम्मोति, स. नि. 2(2).311; - भाव पु., निषे०, गामम्हि, जा. अट्ठ. 1.319; ... अहं गामे वसन्तोपि ... तत्पु. स. [अशाक्यपुत्रीयभाव], बुद्ध के मार्ग का अनुगमन असडियो निब्भयो निरासोति दीपेति, तदे.. न करने की अवस्था, बौद्ध भिक्षु से भिन्न होने की स्थिति- असंकिलिट्ठ त्रि., सं. + किलिस के भू. क. कृ. का निषे० वं द्वि. वि., ए. व. - पत्थयमानो... पे.... असक्यपुत्तियभावं [असंक्लिष्ट], मलिन या अविशुद्ध नहीं किया गया, विशुद्ध, पत्थयमानो, पारा. 27; - वेवचन नपुं.. तत्पु. स., शाक्यपुत्र मलों से रहित (निर्वाण) - टुं नपुं., वि. वि., ए. व. - (बुद्ध) के प्रति श्रद्धावान न रहने की बात को प्रकाशित असंकिलिट्ठ अनुत्तरं योगक्खेमं निब्बानं परियेसति, अ. नि. करने वाले वचन का एक प्रकार - नानि प्र. वि, ब. व. 1(2).284; - हा पु., प्र. वि., ब. व. - असंकिलिट्ठा धम्मा - अस्समणवेवचनानि वा असक्यपुत्तियवेवचनानि वा, पारा. न वत्तब्बा किलेसा चेव संकिलिट्ठा चातिपि, ध. स. 1576; 30; - नेन पु./नपुं.. तृ. वि., ए. व. - एवमादि - चित्त त्रि., ब. स. [असंक्लिष्टचित्त], मलिनता से मुक्त असक्यपत्तियवेवचनेन सिक्खापच्चक्खानं होति, पारा. अट्ठ. विशुद्ध चित्त वाला - असंकिलिट्ठचितो ब्रह्मा ..., दी. नि. 1.202. 1.224; ... संकिलेसेहि असंकिलिट्ठचित्तो सुपरिसुद्धमानसो, असग्गुणविभावी त्रि., [असद्गुणविभाविन], दुर्गुणों को प्रकाशित दी. नि. अट्ट, 1.304. या प्रकट करने वाला - विनो पु., ष. वि., ए. व. - तस्स असंकिलेसक त्रि., संकिलेसिक का निषे. [असंक्लेशिक]. निल्लज्जराजस्स असग्गुणविभाविनो, सद्धम्मो. 382.. मलिनता से मुक्त, विशुद्ध - का पु., प्र. वि., ब. व. - असंकच्चिक/असंकच्चिका त्रि., संकच्चिक का निषे.. असंकिलेसिका धम्मा न वत्तब्बा, ध. स. 1574. तत्पु. स. [बौ. सं. असङ्कच्छिका], कटिपरिधान या कमर पर असंकुचितचित्त त्रि., ब. स. [असंकुचितचित्त], वह, जिसका लपेटी हुई पट्टी से रहित - का स्त्री., प्र. वि., ए. व. - चित्त सङ्कुचित या अनुदार न हो, उदार चित्त वाला - असङ्कच्चिका गाम पिण्डाय पाविसि. पाचि. 478. अनोलीनोति .... दाने असङ्कचितचित्तोति अत्थो चरिया. अट्ठ. 23 असङ्कमनिय/असंकमनीय त्रि., सं + ।कम के प्रेर. के सं. असंकुप्प त्रि., सं. + (कुप के सं. कृ. का निषे. [असंकम्प्य], कृ. का निषे. [असंक्रामणीय], एक स्थान से दूसरे स्थान इधर से उधर नहीं ले जाए जाने योग्य, अविचाल्य, स्थिर, पर नहीं हटाए जाने योग्य, अविचाल्य - यायो स्त्री., द्वि. दृढ़ - प्पं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - असंहीरं असंकुष्पं ..., वि., ब. व. - पादुका धुवट्ठानिया असङ्कमनियायो, महाव. थेरगा. 649. 264; असङ्कमनीयायोति भूमियं... असंहारिया, महाव, अट्ठ, 347. असंकुसकवुत्ति त्रि., ब. स. [असंकुसकवृत्ति], वह, जिसका असंकमान त्रि., (संक के वर्त. कृ. का निषे. [अशङ्कमान]. स्वभाव हठी या जिद्दी नहीं हो, अप्रतिकूल जीवन-वृत्ति वाला, शङ्का नहीं करने वाला, भय-रहित, - ना पु., प्र. वि., ब. व. अनुकूल प्रकृति वाला - असङ्कुसकवुत्तिस्स स राजवसतिं - असङ्कमाना अभिनिब्बुत्तता, जा. अट्ट, 2.315. वसे, जा. अट्ठ. 7.193; असङ्कसकवुत्तिस्साति अप्पटिलोमवृत्ति असंकर त्रि., ब. स., शा. अ. अमिश्रित, ला. अ. संभ्रम से अस्स, तदे.. रहित, सन्देहमुक्त - तो प. वि., ए. व. - असङ्करतो वा असंकेत पु., संकेत का निषे. [असङ्केत], अनिर्धारण, इशारा ठपेति, नेत्ति. अट्ठ. 247. या सुझाव का अभाव - तेन तृ. वि., ए. व., क्रि. विशे., असंकिण्ण त्रि., सं + किर के भू. क. कृ. का निषे. निर्धारण किए बिना - अनुपरिवेणियं पातिमोक्खं उदिसन्ति [असंकीर्ण], शा. अ. आपस में मिलावट से रहित, ला. असङ्केतेन, महाव. 134; असङ्केतेनाति सङ्केतं अकत्वा, महाव. अ. विशुद्ध, भ्रमरहित, अभ्रान्त - ण्णा पु., प्र. वि., ब. व. अट्ठ. 312. For Private and Personal Use Only

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