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असितव्हय
ए. द. असितळ्याभवित्र्य पन सुद्द सन्धनं अतिमज्ञमानो अकिच्चकारी होति, म० नि० 2.397; असितव्याभङ्गिन्ति तिणलायन असितञ्चैव काजञ्च, म. नि. अट्ठ० (म.प.) 2.300. असितव्याभाति भिक्खवे कुलपुत्तो ओहाय अगारस्या अनगारियं पब्बजितो होति, अ. नि. 2 (1).5; असितव्याभङ्गिन्ति तिणलापनअसितञ्चेव तिणवहनकाजञ्च, अ. नि. अड्ड 3.3 : ... असन्ति लुनन्ति तेनाति असितं दात्तं, विविधा आभञ्जन्ति भारे ओलम्बेन्ति तेनाति व्याभट्टी अ. नि. टी. 3.2: ता स्त्री. भाव, हंसिया एवं घास ढोने वाली बंहगी या बोरी को धारण कर चलने वाले शूद्र की स्थिति, घास काटने एवं घास ढोने की क्रिया करने वाले दास की अवस्था तृ.वि., ए. व. कसिगोरक्खादिना वेस्सो अहं असितव्यामङ्गिताय सुदो अहं विभ. अड्ड. 484 असितव्याभङ्गितायाति दात्तेन काजेन चाति एतेन परिक्खारेन लवनवहनकिरिया वा "असितव्याभङ्गीति वुत्ता, विभ. मू. टी. 233.
असितव्य त्रि. ब. स. [ असिताह्वय] असित नाम वाला स्सष. वि., ए. व. समागते असिताव्हयस्स सासनेति, सु. नि. 703. असितातिग त्रि., [असितातिग] कृष्णपक्ष को पार कर चुका शुक्लपक्ष का चन्द्रमा, कालिमा से मुक्त चन्द्रमा, स्वच्छ एवं धवल चन्द्र गं पु० द्वि. वि. ए. व. दक्खेमोघतरं नाग, चन्दव असितालिग, दी. नि. 2.192 असितातिगन्ति काळकभावातीत चन्द्रव सिरिया विरोचमानं ..... दी.. गो प्र. वि., ए. व. 31. 2.255; असितातिगो काळकभावातीताय सिरिया चन्दो लीन. (दी. नि. टी.) 2.225 असितापङ्ग त्रि. ब. स. [असितापाङ्ग], वह जिसकी आंखों के किनारे कृष्ण-वर्ण के हों, काजल से कजरारे नेत्रों वाला, काले कजरारे नेत्र - कोर वाला ङ्गि स्त्री, संबो. ए. व. तया मं असितापङ्गि, सितानि भणितानि च, जा. अट्ठ. 3.371; असितापनीति तया में असिता अपनि, अक्खिकोटितो अञ्जनसलाकाय नीहरित्या अभिसङ्गतअसितापनि..... जा. 31. 3.371.
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असिताभू स्त्री. व्य. सं. [असितभ्रू] वाराणसी की राजवधू का नाम, जिसकी कहानी 234वीं जातक कथा में वर्णित है। मुं द्वि. वि. ए. व. सो असिताभुं नाम अत्तनो देविं आदाय हिमवन्तं पविसित्या... निवास कप्पेसि, जा. अड. 2.192 भुया तृ. वि. ए. व. एवं हायति अत्थम्हा, अहंव असिताभुयाति, जा. अड. 2.193
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जातक नपुं. 234 वें
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695
असिद्ध
जातक का शीर्षक, जिसमें वाराणसी की राजपुत्री असिताभू का कथानक दिया गया है, जा. अट्ठ. 2.192-193. असितासन त्रि. व. स. [अशिताशन] भोजन खा चुका, भोजन समाप्त कर चुका व्यक्ति नो पु०, प्र. वि., ए. व. असितोति असितासनो परिभुत्तफलो, जा. अट्ठ.
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7.328.
असितुण्ड नपुं., तत्पु० स० [असितुण्ड ], तलवार की नोक, तलवार का अग्रभाग - ण्डेन तृ. वि., ए. व. आकासे खिपित्वा असितुण्डेन सम्पटिच्छित्वा... जा. अड. 3.155, असित्वा अस (खाना) का पू. का. कृ. (अशित्वा), भोजन या पान ग्रहणकर, खाकर, पीकर ते तं अमतं असित्वा अरोगा दीघायुका सब्बीतितो परिमुच्चेय्यु, मि. प. 164. असिधरु पु तत्पु. स. [ असित्सरु ] तलवार की मूठ सं द्वि. वि., ए. व. चोरस्स हत्थे अस्थि ठपेत्वा
ध. प. अट्ठ. 2.318. असिथिल त्रि, निषे, तत्पु० स० [अशिथिल ], शिथिलता से रहित दृढ स्थिर प्रकृति वाला - लं नपुं. प्र. वि. ए. व.
यथा च ईसापटिबद्ध युगनङ्गलं किच्चकर होति अचलं असिथिल, सु. नि. अ. 1.116 परक्कमता स्त्री भाव. [ अशिथिलपराक्रमत्व], सुदृढ़ पराक्रम से परिपूर्ण रहना, वीरता ता प्र. वि., ए. व. असिथिलपरक्कमता अनिविखतछन्दता अनिक्खितपुरता धुरसम्पग्गाहो वीरियं वीरिविन्दियं विरियबलं सम्मावायामो ध. स. 13:22:289, 571; - पूरको पु०, प्र. वि., ए. व., अपने कर्तव्य को दृढ़ता के साथ निभाने वाला असिथिलपुरको तिब्बच्छन्दो बहलपत्थनो हुत्वाव करोति, म० नि० अट्ठ० (मू.प.) 1(2).295.
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असिद्ध त्रि / साध के भू० क० कृ० का निषे [ असिद्ध], 1.
कच्चा, नहीं पका हुआ - असिद्धदुसिद्धानं डाकादीनं गन्धो आमकगन्धो, ध. स. अट्ठ 352; 2 तर्क द्वारा प्रमाणित न किया हुआ त नपुं भाव [असिद्धत्व], तर्क द्वारा ठीक से स्थापित न हो पाना अस्तित्व की असिद्धि
त्ताप. वि. ए. व.न. अणुआदीनं असिद्धत्ता, विसुद्धि. 2.138 भोजन त्र ब. स. [असिद्धभोजन ]. वह जिसके लिए भोजन तैयार नहीं किया गया है नो पु. प्र. कि.. ए. व. अभिन्नकट्टोसि अनाभतोदको अहापितग्गीसि असिद्धभोजनो, जा. अट्ठ. 5.192; असिद्धभोजनोति न ते किञ्चि अम्हाकं कन्दमूले वा पण्णं वा सेदितं तदे..