Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 698
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असञ 671 असञी असञ्जातस्साति इदं अनुप्पन्नवेवचनमेव, स. नि. अट्ठ ... कम्मं करोन्तानं दुस्सीलानं, जा. अट्ठ. 2.102; - तं स्त्री., 1.244; - तं द्वि. वि., ए. व. - असञ्जातञ्च सजनी, अप. द्वि. वि., ए. व. - मह अयन्ति असतिं असतं. जा. अट्ठ. 2.240; - ता पु.. प्र. वि., ब. व. - ये धम्मा... असञ्जाता 3.467; - तासु स्त्री., सप्त. वि., ब. व. - अच्चन्तसीलासु अनिब्बत्ता, ध. स. 1042; - तं नपुं., प्र. वि., ए. व. - यं असञ्जतासु, जा. अट्ठ. 5.445; -- ता स्त्री., प्र. वि., ए. व. रूपं अजातं अभूतं असञ्जातं अनिब्बत्तं, विभ. 2. - मज्जमंसनिरता असञता, जा. अट्ठ. 5.450; - परिक्खार असञ त्रि., ब. स. [असंज्ञ], क संज्ञाहीन, होश-हवाश से त्रि., ब. स., जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं (चीवर, रहित, मूर्च्छित, बेहोश -- नं नपुं., प्र. वि., ए. व. - तत्थ । पिण्डपात, निवास एवं औषधि) के विषय में ध्यान न देने असञ्जा असझं करोति, दी. नि. अट्ठ. 2.143; ख. पु./नपुं... वाला अथवा इनके प्रयोग में संयम न बरतने वाला, चीवर अस्तित्व की वह कोटि जिसमें अन्तर्भूत प्राणी संज्ञाहीन रहते आदि के विषय में असंयत - रं पु., वि. वि., ए. व. - हैं, असंज्ञी-भव- ज प्र. वि., ए. व. - एतं सन्तं एतं पणीतं असञतपरिक्खारं भिक्खं आरभ कथेसिध. प. अट्ठ. 2.9; यदिदं असञन्ति , म. नि. 3.18; - ञ पु., प्र. वि., ब. - परिक्खारभिक्खुवत्थु नपुं.. ध. प. अट्ठ. का एक व. - असझे च अरूपिब्रह्मानो च ठपेत्वा .... ध. प. अट्ठ. कथानक, जिसमें चीवर आदि आवश्यक वस्तुओं के प्रयोग 2358; - क त्रि., ब. स. [असंज्ञक], संज्ञाहीन चित्त में असंयत एक भिक्षु की कहानी है, ध. प. अट्ठ. 2.9-10; वाला, असंज्ञीभाव में विद्यमान प्राणी - का पु., प्र. वि., ब. - वचन त्रि., ब. स. [असंयतवचन], बोलने में असंयत, व. - असञ्जका ... अचित्तका पातुभवन्ति, विभ. 491; - बेलगाम बातचीत करने वाला - ना पु., प्र. वि., ब. व. - कथा स्त्री., कथा. के एक खण्ड-विशेष का शीर्षक, जिसमें विकिण्णवाचाति असंयतवचना, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) असंज्ञी भव से सम्बन्धित मत का परीक्षण किया गया है, 1(1).161. कथा. 218-220; - काय पु., कर्म. स. [असंज्ञकाय], असञत्ति स्त्री., सञत्ति का निषे०, तत्पु. स. [असंज्ञप्ति], संज्ञाहीन या चित्तहीन शरीर - यं द्वि. वि., ए. व. - ठीक से जानकारी न देना, असंज्ञापन, सही-सही रूप में अनिन्द्रियबद्धमसञकायं जा. अट्ठ. 7.53; असञकायन्ति नहीं बतलाना - असञ्जत्तिबलाति असञ्जत्तियेव बलं एतेसन्ति अनिन्द्रियबद्ध अचित्तकायञ्च समानं एतं. जा. अट्ठ. 7.55%; असञ्जत्तिबला, अ. नि. अट्ठ. 2.47-48; - बल त्रि., ब. स. - भव पु., तत्पु. स. [असंज्ञीभव], असंज्ञी (संज्ञाहीन, [असंज्ञप्ति], असंज्ञापनरूपी बल से युक्त, वह, जो बातों चित्तरहित) प्राणियों का क्षेत्र - वे सप्त. वि., ए. व. - को ठीक तरह से नहीं बतला सके - ला पु., प्र. वि., ए. असजिनोति असञभवे निब्बत्ते अचित्तकसत्ते दस्सेति, जा. व. - असञ्जत्तिबला अनिज्झत्तिबला अप्पटिनिस्सग्गमन्तिनो, अट्ठ. 1.452; - सत्त पु., कर्म. स. [बौ. सं. असंज्ञिसत्त्व], अ. नि. 1(1).90. संज्ञा से रहित प्राणी, पञ्चम सत्त्वावास वाले अरूपी ब्रह्मा- असञा स्त्री., सजा का निषे, तत्पु. स. [असंज्ञा]. 1. शा. देवों का एक वर्ग - त्ता प्र. वि., ब. व. - असञिनो अ. संज्ञाहीनता, मूर्छा, बेहोशी, संज्ञा से शून्य होना, अज्ञान, वुच्चन्ति ... असञ्जसत्ता नपि सो निरोधसमापन्नो, नपि मोह - ञा प्र. वि., ए. व. - असा सम्मोहो, म. नि. 19; असञसत्तो, महानि. 204; सेय्यथापि देवा असञसत्ता, अ. असा सम्मोहोति निस्सञभावो नामेस सम्मोहद्वानं, म. नि. 3(1).211; - त्तेसु सप्त. वि., ब. व. - असञ्जसत्तेसु नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.12; 2. ला. अ. स्त्री., नौ प्रकार की सा अत्थीति? आमन्ता, कथा. 219. आकाशीय विद्युतों में से वह बिजली, जो अपनी गर्जना और असञत त्रि., सं. + Vयम के भू. क. कृ. का निषे. तीब्र जगमगाहट से प्राणियों को संज्ञाहीन बना देती है - [असंयत], नियन्त्रणरहित, नियन्त्रण के अधीन न रहने ञा प्र. वि., ए. व. - नवविधा हि असनियो असआ, वाला, असंयमी - तो पु., प्र. वि., ए. व. - परपाणरोधाय विचक्का, ... असा असझं करोति, दी. नि. अट्ठ. 2.143; गिही असञतो, सु. नि. 222; सो लुद्दको गिही - अं द्वि. वि., ए. व. - असझं करोति, यो तस्सा सद्देन, परपाणरोधाय ... असंयतो, सु. नि. अट्ठ. 1.228-229; - ता तेजसा च अज्झोत्थटो, लीन. (दी. नि. टी.) 2.152. ब. व. - ये इध कामेसु असञता जना, सु. नि. 246; - असञी त्रि., सञी का निषे.. तत्पु. स. [असंज्ञिन्], क. तानं पु., ष. वि., ब. व. - सहसा करोन्तानमसञतानं. संज्ञा से रहित, चेतना से रहित, बिना संज्ञा वाला, ख. जा. अट्ठ. 2.101; सहसा करोन्तानमसञतानन्ति सहसा असंज्ञी भव में उत्पन्न प्राणी, ग. संज्ञावेदयित् निरोध की For Private and Personal Use Only

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