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असज्जन्त
देखा गया - तं नपुं. प्र. वि., ए. व. नत्थि किञ्चि ब्रह्मनो असच्छिकतन्ति, दी. नि. 1.202; अञ्ञातं ... असच्छिकतं अनभिसमेतं, अ. नि. 3 ( 1 ) . 199; ते सप्त. वि., ए. व. असच्छिकते सच्छिकतसज्ञिनो पारा 111 कत्वा पू का. कृ. साक्षात् न देखकर, प्रज्ञा की आंख से न देखकर पञ्ञाय असच्छिकत्वा सुद्धेन सद्धामत्तकेनेव... म.नि. अट्ठ. ( मू०प०) 1(2). 74. असज्जन्त त्रि. सज के वर्त कृ. का निषे [असज्यत्]. आसक्त या लगाव से भरपूर न रहने वाला, अनासक्त, निर्लिप्त, लगाव-रहित मन वाला न्तो पु०, प्र. वि., ए. व. अरज्जन्तो असज्जन्तो असोचन्तो भिक्खु नाम होती ति
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ध. प. अट्ठ. 2.339.
असज्जमानो त्रि. क. उपरिवत् नो पु०, प्र. वि., ए. व. - तिरोभावं तिरोकुट्ट - असज्जमानो गच्छति दी. नि. 1.89, वातोव जालम्हि असज्जमानो सु. नि. 71 ना पु. प्र. वि. ब. व. असज्जमाना विचरन्ति लोके, सु, नि. 470 नं पु. द्वि. वि. ए. व. तं नामरूपस्मिमसज्जमानं ध. प. 221 असज्जमानन्ति अलग्गमानं ध. प. अट्ट 2.174; ख. हिचकिचाहट से रहित, हकलाहट से मुक्त रहता हुआ नो पु०, प्र. वि., ए. व. थेरो पुच्छितपुच्छित पहें असज्जमानोव कथेसि विभ. अड. 462. असज्झायकत त्रि.. [अस्वाध्यायकृत] आवृत्ति नहीं किया हुआ, नहीं दुहराया गया, पूर्व में अभ्यास नहीं किया हुआ - ता पु. प्र. वि. ब. व. सज्झायकतापि मन्ता... पगेव असज्झायकता, स० नि० 3 (1).142. असज्झायमल त्रि०, ब० स०, ( स्वाध्याय या पुनः पुनः ) आवृत्ति न किए जाने के कारण अपवित्र या मलिन बन जाने वाला ला पु०, प्र० वि०, ब० व. असज्झायमला मन्ता, ध. प. 241; याकाचि परियत्ति वा सिप्पं वा यस्मा असज्झायन्तरस .... विनस्सति ... तस्मा असज्झायमला मन्ता'ति वृत्तं ध० प० अट्ठ. 2.201. असञ्चरण त्रि., नहीं चलने-फिरने योग्य, व्यवहार में न लाए जाने योग्य णं पु. द्वि. वि. ए. व. तथागतो सन्तं येव मग्गं लुग्गं.. असञ्चरणं सम्पस्समानो उप्पादेसि मि.
प. 207.
असञ्चरणकारण नपुं तत्पु, स. नहीं जा पहुंचने का कारण, सञ्चरण न करने का कारण किं नु खो इमस्स मोरराजस्स पादे पासस्स असञ्चरणकारण न्ति, जा. अट्ठ.
4.298.
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असञ्जात
असञ्चरणकपास पु., कर्म, स., सञ्चरण न करने वाला पाश या बन्धन, पास न जाने वाला बन्धन सत्त वस्ससतानि असञ्चरणकपासो.... जा. अड. 4.299. असञ्चरणभाव पु., कर्म. स. पास नहीं पहुंच पाना, सञ्चरण सो गन्त्वा बोधिसत्तेन अक्कन्तद्वानेपि
न कर सकना
पासस्स असञ्चरणभावं ..... जा. अट्ठ. 2.29.
असञ्चालित त्रि. सं. + √चल के भू० क० कृ० का निषे.
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[असञ्चलित ]. नहीं हिल-डुल रहा, नहीं कांप रहा, दृढ़तं नपुं. प्र. वि. ए. व. अकम्पितं असञ्चालित सुसण्ठित मि. प. 211. असञ्चारिम त्रि., सञ्चारिम का निषे, नहीं हिलाए डुलाए जाने योग्य, अविचाल्य, दृढ़, दूर तक फेंक कर नहीं चलाए जाने योग्य मेन नपुं. तृ. वि. ए. व. असञ्चारिमेन उपकरणेन मारेतुकामस्स पारा. अड. 2.37. असञ्चारिमुपाय पु.. कर्म. स. असञ्चरणशील (जाल या गड्डा जैसे ) उपाय येन तृ. वि. ए. व. असञ्चारिमुपायेन मारणत्थं परस्स च, विन. वि. 247.
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असञ्चिच्च 1. अ. सं. + √चिन्त के पू. का. कृ. का निषे. [असंचिन्त्य ] सोच-विचार न करके किसी निश्चित अभिप्राय के बिना, चेतना के बिना अनापति असञ्चिच्च..... पाचि. 168; पारा 125; 2. त्रि. पू. का. कृ. का ही अनियमित रूपान्तरण, चेतना से असम्प्रयुक्त, विशेष अभिप्राय न रखने वालाच्चो पु. प्र. वि. ए. व. असञ्चिच्च अहं पारा. 95; असञ्चिच्चोति अवधकचेतनो विरद्धपयोगो हि सो, पारा. अट्ठ. 2.56 कथा स्त्री कथा. के एक खण्ड विशेष का शीर्षक, कथा 477-79. असञ्चेतनिक त्रि., [असञ्चेतनिक ], क. चेतना के बिना या मन में सोचे विचारे बिना ही हो जाने वाला कर्म, एक प्रकार का कर्मविपाक कं नपुं. प्र. वि. ए. व. असञ्चेतनिक, भन्ते, निगण्ठो नाटपुतो नो महासावज्जं पञ्ञपेतीति म. नि. 2.45; ख चेतना के द्वारा सोच कर कर्म न करने वाला / वाली, बिना चेतना के ही कर्म करने वाला / वाली का स्त्री. प्र. वि., ब. व. ता पठमं असञ्चेतनिका हुत्वा कम्मुना न बांसु, ध. प. अड.
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1.128.
असञ्जात त्रि, सं + √जन के भू० क० कृ० का निषे. [असंजात], वह जिसे अभी तक उत्पन्न नहीं किया गया है, अनुत्पन्न, अप्रकटीकृत, अप्रादुर्भूत स्स पु.. ष. वि. ए. असञ्जातस्स मग्गस्स सञ्जनेता, स. नि. 1 (1).221;
व.
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