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असम्बुद्ध / असम्बुद्धन्त
असम्बुद्ध / असम्बुद्धन्त त्रि.. क. सं. + √बुध के वर्त. कृ. का निषे [असम्बुध्यत्] नहीं जानने वाला, नहीं ग्रहण करने वाला, अज्ञानी पु. प्र. / द्वि. वि. ए. व. - सुमितो च असम्बुद्ध जा. अड. 5.73 असम्बुद्धन्ति असम्बुद्धन्तो अजानन्तो अप्पञ्ञति अत्थो, जा. अड. 5.73; असम्बुध बुद्धनिसेवितं यं ... पारा. अट्ठ. 1.1; ख. सं. + √बुध के सं. कृ. का निषे. [असंबुध्य]. नहीं जानने योग्य, अग्राह्य, समझ के बाहर का गुरहमत्थं असम्बुद्ध सम्बोधयति यो नरो जा. अट्ठ. 5.76; तत्र असम्बुद्धन्ति परेहि अञ्ञातं... परेसं बोधेतुं अयुत्तन्ति अत्यो सद. 2.482. असम्बोध पु०, सम्बोध का निषे, तत्पु० स० [असम्बोध], अज्ञान धो प्रतिव अञ्ञाणं अदस्सनं अनभिसमयो अननुबोध जम्बोधो अप्पटिवेधो
घ. स.
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390; 1067; 1168.
असम्भजन्त त्रि. सं. + भज के वर्त. कृ. का निषे. [असंभजत्] सेवन नहीं कर रहा, साथ सङ्ग न करने वाला तं पु.द्वि. वि., ए. व. असम्भजन्तम्पि न सम्भजेच्य
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जा. अड. 2.172.
असम्भव पु. सम्भव का निषे, तत्पु. स. [असंभव], वह, जो सम्भव न हो, असम्भावना, असंभाव्यता तो प.वि., ए. व. तस्सीलरसत्थस्स असंभवतो. स. 195 वा उपरिवत् तं भुम्मत्थासम्भवा न युज्जति, खु, पा. अह. 134. असम्भावनेय्य त्रि. सं + √भू(प्रेर) के सं. कृ. का निषे [असंभावनीय] संभव है इस रूप में अचिन्तनीय, असंभाव्य रूप में चिन्तित य्या पु०, प्र. वि., ब.व.
अरूपावचरा पन भुञ्जेय्यन्ति असम्भावनेय्या, सु. नि.
अदु. 1.121.
असम्मिन्न त्रि. सं. मिद का भू. क. कृ. का निषे. [असंम्भिन्न] क नहीं मिटाया हुआ, नहीं हटाया गया, नष्ट नहीं किया हुआ न्नेन नपुं. तृ. वि. ए. व. कालस्सेव असम्भिन्नेन विलेपनेन येन भगवा तेनुपसङ्कमि, पाचि. 158; असम्भिन्नेनाति अमक्खितेन, अनङ्गेनाति अत्यो, सारत्थ, टी. 3.73 ख. 1. अमिश्रित, आपसी मिलावट से रहित, विशुद्ध न्नं नपुं द्वि. वि. ए. व. आमिसेन असम्भिन्न सन्धाय वृत्तं पाचि. अट्ट, 145
असम्भिन्नपायासं पचेत्वा जा. अट्ठ. 1.66, ख. 2. अमिश्रित रक्त वाला, वर्णसाङ्कर्य से रहित, शुद्ध नस्ल वाला, शुद्ध (वंश) - न्ने पु०, सप्त. वि., ए. व. महासम्मतवंसम्हि असम्भिन्ने महामुनि म. वं. 2.23:- न्नाय स्त्री० सप्त. वि. ए. व. सोहि असम्भिन्नाय
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असम्भोग
महासम्मतपवेणिया ओक्काकवंसे जातत्ता जातिकुलपुत्तो, म.नि. अ. (मू.प.) 1 ( 2 ). 130 नङ्ग नपुं. कर्म. स. पांच प्रकार के धुतङ्ग, भेद-प्रभेद रहित धुतङ्गङ्गानि प्र. वि., ब. य. समासतो तीणि सीसङ्गानि पञ्च असम्भिन्नानीति अद्वेव होन्ति, विसुद्धि. 1.81; असम्भिन्नङ्गानीति के हिचि सम्भेदरहितानि, विसुंयेव अङ्गानीति, विसुद्धि. महाटी. 1.98 ;
- रस बि. स. अमिश्रित स्वभाव वाला, मिलावट से रहित सं हि. वि. ए. व. आमिसेन असम्भिन्न-रसं - द्वि० सन्धाय भासित, विन, वि. 1837 वत्थुक त्रि. ब. स. [असम्भिन्नवस्तुक], अविनष्ट या निरोध को अप्राप्त वस्तु (आधार) वाला का पु. प्र. वि. ब. व. असम्भिन्नवत्युका असम्भिनारम्मणाति असम्भिन्नस्मिं वत्थुस्मिं असम्भिन्ने आरम्मणे उप्यज्जन्ति विभ, 362: असम्भिन्नवत्धुकाति अनिरुद्धवत्युका विभ. अड. 381; - न्नारम्मण त्रि. ब. स. [असम्भिन्नालम्बन], निरोध को अप्राप्त आलम्बन वालापु. प्र. वि., ब. व. असम्भिन्नारम्भणाति असम्भिन्नस्मिं वत्थस्मिं असम्भिन्ने आरम्मणे उप्यज्जन्ति विभ 362
णताय स्त्री. भाव, तृ. वि. ए. व., आलम्बनों के निरुद्ध न होने से असम्भिन्नारम्भणतायपि एसेव नयो, विभ. अड. 381.
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असम्भीत त्रि. सं. नी के भू. क. कृ. का निषे [असम्भीत]. भय से मुक्त नहीं डरा हुआ तो फु. प्र. वि. ए. व. असम्भीतो भयातीतो, अप. 1.351; ता ब. व. सीहराजावराम्भीता, गजराजाय धामवा अप. 1.16: तं पु.. द्वि. वि. ए. व. असम्भीत अनुत्तासिं, मिगराजंव केसरिं
अप. 1.356.
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असम्भुणन्तो त्रि. सं.
भू के वर्त. कृ. का निषे. [ असम्भवत्], सक्षम या समर्थ न होने वाला, अक्षम, असमर्थ न्तो पु., प्र. वि., ए. व. असम्भुणन्तो पन ब्रह्मचरिय सु. नि. 398; तत्व असम्गुणन्तोति असक्कोन्तो, सु. नि.
अड. 2.97.
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असम्भूत त्रि., सं. + √भू के भू० क० कृ० का निषे. [असम्भूत], अस्तित्व में नहीं आया हुआ, नहीं उत्पन्न, अजात तं नपुं. प्र. वि., ए. व. अन्तयन्तानि भूतानि असम्भूत अनन्तकं, म. नि. अट्ठ. ( मू०प०) 1 ( 2 ) .306. असम्भोग' पु. सम्भोग का निषे, तत्पु. स. [असम्भोग ], शा. अ. समूह में भोग का अभाव, ला. अ. सामाजिक जीवन से निष्कासन, सामाजिक बहिष्कार गं द्वि. वि., ए. क. सहो छन्नस्स भिक्खुनो, उखेपनीय कम्म करोतु असम्भोगं सङ्खेन चूळव. 45.