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असाधिय
प्रकार का विनय-नियम सभी भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों के लिए सामान्य रूप में लागू न होने वाला नियम - सब्बत्थपञ्ञति, असाधारणपञ्ञतीति ?... उभतोपज्ञ्जति परि. 2 - भाव पु., कर्म. स. [असाधारणभाव], विशिष्टता, असामान्यता वं द्वि. वि. ए. व. असाधारणभावं तु गमितानि महसिना, उत्त वि. 811; 823. असाधिवत्र साथ के सं. कृ. का निषे [असाध्य]. उपचार द्वारा ठीक न होने योग्य, लाइलाज़ - यो पु०, प्र. वि. ए. व. सधिकुम्भसतेनापि व्याधिजातो असाधियो म. वं. 5.218.
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असाधु त्रि, साधु का निषे, तत्पु० स० [असाधु], असज्जन, दुष्ट, दुर्जन, बुरा, गलत घु पु. प्र. वि. व. व. साधूपि हुत्वा न असाधु होन्ति ... थेरगा. 1008 - धूनि नपुं. प्र. वि., ब. व. - सुकरानि असाधूनि अत्तनो अहितानि च, ध॰ प॰ 163; यानि कम्मानि असाधूनि सावज्जानि अपायसंवत्तनिकत्तायेव... ध. प. अट्ठ. 2.86 - धुं पु.द्वि. वि. ए. व. असाधुं साधुना जिने, ध. प. 223 कम्मी त्रि.. [असाधुकर्मिन् ] बुरे काम करने वाला म्मिनो पु.. प्र. वि. ब. व. ये जीवलोकरिणं असाधुकम्पिनो,... जा. अड. 6.133: जातिक त्रि. ब. स. [असाधुजातिक]. असज्जन स्वभाव वाला, दुष्ट प्रकृति वाला क संबो०, व. असभीति असप्पुरिस असाधुजातिक, जा. अड. 1.472; कं नपुं०, द्वि० वि०, ए. व. तत्थ असम्भिरूपन्ति असाधुजातिक लाभकं अकुसलकम्म अकासि जा. अड. 6.216; सन्निवास पु तत्पु, स. [असाधुसन्निवास]. दुष्ट लोगों का साथ-सङ्ग सो प्र. वि., ए. व. असाधुसन्निवासो नाम पापो अनत्थकरो, जा० अट्ठ
ए.
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2.83.
असामग्गिय नपुं, समग्ग के भाव का निषे. [असामग्रय], सहमति का अभाव, असहमति, असामञ्जस्य यं प्र. वि., ए. व. असम्मोदियन्ति असामग्गियं, जा. अड. 7.277. असामञ्ञत्रि समण के भाव का निषे. [अश्रामण्य]. श्रमणों के प्रति अवज्ञापूर्ण या अपमानपूर्ण, श्रमणों के लिए अनुपयुक्त ज्ञ पु. प्र. वि. ए. व. पुरिसो अमतेच्यो अपेत्तेय्यो असामञ्ञ अब्रहाञ्ञ, अ. नि. 1 (1).163 ता स्त्री. भाव. [अश्राम्यत्व, नपुं.], श्रमणों के प्रति तिरस्कारपूर्ण होना, श्रमणों के लिए अनुपयुक्त होना ता प्र. वि., ए. व. - अमतेय्यता अपेत्तेय्यता असामञ्ञता अब्रह्मञ्ञता न कुले जेनापचायिता दी. नि. 3.51.
असार
व.
असामन्तपञ्ञ त्रि., ब० स० [सं०], अनुपम या बेजोड़ प्रज्ञा वालाज्ञो पु. प्र. वि. ए. व. अनभिसम्भवनीयो च सो अज्ञेहीति असामन्तपञ्ञ, अ. नि. अ. 1.400 ता स्त्री. भाव, बेजोड़ प्रज्ञा से युक्त रहना यतृ. वि. ए. गम्भीरपञ्ञताय... असामन्तपञ्ञताय संवत्तति, अ. नि. 1(1).60. असामन्तपञ्ञा स्त्री.. कर्म. स. [सं.] अनुपम प्रज्ञा, बेजोड़ प्रज्ञा, दूसरों में अविद्यमान प्रज्ञा ञ्ञा प्र. वि., ए. व. असामन्तपञ्ञताय संवत्तन्तीति कतमा असामन्तपञ्ञा?, पटि. म. 367; अ. नि. अट्ठ. 1.400.
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असामपाक त्रि. [अस्वयंपाक], स्वयं नहीं पकाने वाला (तापसों का एक वर्ग ) का पु. प्र. वि. ब. व. ये पन किं पब्बजितस्स पविसित्वा पक्कभिक्खमेव गण्हन्ति ते असामपाका नाम, दी. नि. अट्ठ. 1.218; असामपाकाति असयंपाचका, लीन. (दी. नि. टी.) 1.271. असामयिक / असामायिक सामयिक का निषे, तत्पु, स. [बौ. सं. असामयिक], वह जो अस्थायी न हो, स्थायी, निर्धारित समय की सीमा में नहीं बंधा हुआ, लोकोत्तर कं स्त्री. वि. वि. ए. व. उपसम्पज्ज विहरिस्सति असामायिकं वा अकुप्पन्ति म. नि. 3.154; असामायिकन्ति न समयवसेन किलेसेहि विमुत्तं, म. नि. अट्ठ. (उप. प.) 3. 116. असामी पु.. अस्सामिक के अन्त द्रष्ट...
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असार त्रि, ब. स. [असार] सारहीन, मूल्यहीन, बेकार, तुच्छ, खोखला रंनपुं. प्र. वि. ए. व. अथा सारं च फेग्गु च अभि. प. 698; क. खोखला या सारहीन (वृक्ष, पौधा आदि) से पु. प्र. कि.. ए. व. यथा नको असारो - निस्सारो सारापगतो, विसुद्धि. 2291
रेन पु.. तृ. वि. ए. क. कायकलिना असारेन थेरीगा. 72; ख. सारहीन (लोक), सारहीन पांच स्कन्ध, सारहीन धन, सारहीन धारणा, आत्मा एवं आत्मीय जैसे परिकल्पित सारतत्त्व से रहित रं नपुं. प्र. वि. ए. व. रूप असार निस्सारं सरापगतं वेदना... विज्ञाणं... जरामरणं असारं निस्सार विसुद्धि2.290-91 से पु. प्र. वि. ए. व. निरयलोको असारो निसारो... महानि, 303 पच्चया दसवत्थुका मिच्छादिद्वि. तस्सा उपनिस्सयभूता धम्मदेसनाति अयं असारो नाम ध. प. अ. 1.66; रा स्त्री० प्र० वि०, ए. व. असारा निस्सारा सारापगता विसुद्धि. 2291 क त्रि.. ब. स० [असारक], उपरिवत् 1. खोखला, सारहीन ( वृक्ष आदि) केसु पु. सप्त. वि. ब. व.- कट्टरुक्खेसु
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यथा माया
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