Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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असन्निधिभक्ख
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वाला - गिना पु., तृ. वि., ए. व. - योगिना योगावचरेन
असन्निधिकारपरिभोगिना भवितब्बं मि. प. 372. असन्निधिभक्ख त्रि., संग्रह न करके भोग करने वाला - क्खो पु., प्र. वि., ए. व. - सीहो असन्निधिभक्खो, मि. प. 372. असन्निपात पु., सन्निपात का निषे., तत्पु. स. [असन्निपात]. एक साथ इकट्ठा न होना, संपर्क, संगम या मेल-जोल का न होना - तो प्र. वि., ए. व. - ततो एतस्सापि गेहद्वारा ब्राह्मणानं असन्निपातो भविस्सति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.293. असपत्त पु./नपुं., ब. स. [असपत्न], वैरी-रहित, शत्रु- रहित, बाधा या विरोध रहित - त्ता पु., प्र. वि., ब. व. - अवेरा अदण्डा असपत्ता अब्यापज्जा विहरेमु अवेरिनो ति .... दी. नि. 2.203; असपत्ताति अपच्चत्थिका, दी. नि. अट्ठ. 2.278; - त्तं नपुं., द्वि. वि., ए. व. - असपत्तन्ति विगतपच्चत्थिक, सु. नि. अट्ठ. 1.166. असपत्ति/असपत्ती स्त्री., विशे. [असपत्नीका], सौत-रहित, बिना-सौतों वाली - त्ति/त्ती प्र. वि., ए. व. - असपत्ति अगारं अज्झावसन्ती पुत्तवती अस्सन्ति, स. नि. 2(2).243; असपत्ती हुत्वा एकिकाव घरे वसेय्यन्ति एवमस्सा चित्तं
अभिनिविसतीति असपत्तीभिनिवेसा, अ. नि. अट्ठ. 3.122. असपत्तीभिनिवेसा स्त्री., ब. स., सौत-रहित होने की प्रबल इच्छा से जुड़ी हुई नारी - सा प्र. वि., ए. व. - इत्थी ... पुरिसाधिप्पाया... असपत्तीभिनिवेसा इस्सरियपरियोसानाति, अ. नि. 2(2).76; असपत्ती हुत्वा एकिकाव घरे वसेय्यन्ति एवमस्सा चित्तं अभिनिविसतीति असपत्तीभिनिवेसा, अ. नि. अट्ठ. 3.122. असप्पथ पु., कर्म. स. [असत्पथ], अनुचित मार्ग, गलत रास्ता - थं द्वि. वि., ए. व. - तस्मा असप्पथं अनोतरित्वा भो पुरिसा इति वचनेन दूरहस्स च अदूरद्वस्स च पुरिसस्सालपनं भवति, सद्द. 1.91. असप्पाय त्रि., सप्पाय का निषे., व्यु. संदिग्ध [बौ. सं. असाम्प्रेय], विषम, अकुशल, अनुपयुक्त, अपथ्यकर (भोजन आदि के रूप में) अहितकर, अवृद्धिकर, अस्वस्थता लाने वाला - यो पु., प्र. वि., ए. व. - अयं असप्पायो, विसुद्धि. 1.124; - यानि नपुं., वि. वि., ब. व. - मा ते असप्पायानि भोजनानि भुजतो वणो अस्सावी अस्स, म. नि. 3.42; असप्पायानीति अवडिकरानि आरम्मणानि, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.36; - यं नपुं, द्वि. वि., ए. व. - अलुद्धो हि
असप्पुरिस लोभनीयम्पि असप्पायं न सेवति, तेन खो अरोगो होति, ध. स. अट्ठ, 173; अहितन्ति यं एतं तव कटुकभण्डसवातं पिप्फलि, एतं मय्ह अहितं असप्पायन्ति, जा. अट्ठ. 3.74; गारव्हं, आवुसो, धम्म आपज्जि असप्पायं पाटिदेसनीयं, पाचि. 232; - कारी त्रि., [बौ. सं. असाम्प्रेयकारिन्], अपथ्यकारी या हानिकारक भोजन लेने वाला - री पु., प्र. वि., ए. व. - असप्पायकारी होति, महाव. 394; - किरिया स्त्री., तत्पु. स. [बौ. सं. असाम्प्रेयक्रिया], स्वास्थ्यलाभ के लिए अहितकर उपचार, अस्वास्थ्यकर जीवनवृत्ति - या प्र. वि., ए. व. - असप्पायकिरिया आरोग्यस्स परिपन्थो, अ.नि. 3(2).112. असप्पुरिस त्रि., कर्म. स. [असत्पुरुष], असज्जन पुरुष, निम्न श्रेणी का पुरुष, दुर्जन, अनार्य - सो पु.. प्र. वि., ए. व. - जानेय्य ..., असप्पुरिसो असप्पुरिसं- असप्पुरिसो अयं भवन्ति , म. नि. 3.69; - स्स पु., ष. वि., ए. व. - खम देव असप्पुरिसस्स...., जा. अट्ठ. 4.38; एतस्स असप्पुरिसस्स खमथाति अत्थो, तदे.; - सा पु., प्र. वि., ब. व. - एते असप्पुरिसा लोके. ..., जा. अट्ठ. 5.229; - कम्मन्त त्रि., ब. स., असज्जन जैसा काम करने वाला, दुष्टजनों द्वारा किए जाने वाले अनुचित कर्मों को करने वाला - तो पु., प्र. वि., ए. व. - असप्पुरिसभत्ति होति.... असप्पुरिसकम्मन्तो होति असप्पुरिसदिट्टि होति, असप्पुरिसदानं देति, म. नि. 3.69; - चिन्ती त्रि., असज्जनों जैसा विचार रखने वाला - न्ती पु..
प्र. वि., ए. व. - असप्पुरिसो... असप्परिसचिन्ती होति ...., म. नि. 3.69; - तर त्रि., तुल. विशे. [असत्पुरुषतर], दूसरे दुर्जनों से बढ़-चढ़ कर दुष्ट - रो पु., प्र. वि., ए. व. - अयं वुच्चति, भिक्खवे, असप्परिसेन असप्पुरिसतरो, अ. नि. 1(2).247; - दान नपुं., तत्पु. स. [असत्पुरुषदान], असज्जन की तरह दान, असज्जन द्वारा किया गया दान - असप्पुरिसो, ... असप्पुरिसदिट्टि होति, असप्पुरिसदानं देति, म. नि. 3.69; - दिट्ठि त्रि., ब. स. [असत्पुरुषदृष्टि], दुष्ट या अनार्य पुरुष द्वारा गृहीत मिथ्या-दृष्टि से युक्त - ट्ठि पु., प्र. वि., ए. व. - असप्पुरिसो ... असप्पुरिसदिष्टि होति .... म. नि. 3.69; - धम्म क. पु., तत्पु. स. [असत्पुरुषधर्म], असज्जन का धर्म या अनैतिक व्यवहार - म्मो प्र. वि., ए. व. - कतमो च, भिक्खवे, असप्पुरिसधम्मो, म. नि. 3.85; ख. त्रि., ब. स., अनार्यजनों के स्वभाव वाला - म्मो पु., प्र. वि., ए. व. - असप्पुरिसधम्मो सो. .... जा. अट्ठ, 5.221; - भत्ति त्रि., ब. स. [असत्पुरुषभक्तिक],
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