Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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असमसम
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असमान
असमसम त्रि., ब. स., अनुपम, बेजोड़, अतुलनीय, अनुपमेय बुद्धों जैसा, वह, जिसके जैसा कोई और न हो - मो पु.. प्र. वि., ए. व. - ... अप्पटिपुग्गलो असमो असमसमो द्विपदानं अग्गो ति, अ. नि. 1(1).29; असमसमोति असमा वुच्चन्ति अतीतानागता सब्ब बुद्धा, तेहि असमेहि समोति असमसमो, अ. नि. अट्ठ. 1.94; - मं पु., द्वि. वि., ए. व. - तदापाहं असमसम, ससई, सपरिज्जनं, बु. वं. 11.14. असमा स्त्री., 1. पदुम बुद्ध की माता - मा प्र. वि., ए. व. - चम्पकं नाम नगरं, असमो नाम खत्तियो, असमा नाम जनिका, पद्मस्स महेसिनो, बु. वं. 10.16: 2. पदुमुत्तर बुद्ध की दो अग्रशिष्याओं में से एक - मा प्र. वि., ए. व. -
अमिता च असमा च, अहेसं अग्गसाविका, बु. वं. 12.25. असमादानचार पु., भिक्षु के लिए निर्धारित तीन चीवरों को बिना लिए ही भिक्षाटन के लिए विचरना - रो प्र. वि., ए. व. - ... अनामन्तचारो, असमादानचारो, गणभोजनं, ..., महाव. 331; असमादानचारोति तिचीवरं असमादाय चरणं, चीवरविष्पवासो कप्पिस्सतीति अत्थो, महाव. अट्ठ. 366. असमाधि स्त्री., समाधि का निषे०, तत्पु. स. [असमाधि]. चित्त में समभाव एवं एकाग्रता का अभाव - धि प्र. वि., ए. व. - इति खो, भिक्खवे, समाधि मग्गो, असमाधि कम्मग्गो ति, अ. नि. 2(2),123; - संवत्तनिक त्रि., समाधि या चित्तसमता एवं चित्त की एकाग्रता की ओर न ले जाने वाला/वाली - का स्त्री, प्र. वि., ए. व. - या सा वाचा अण्डका ... असमाधिसंवत्तनिका, म. नि. 1.360; असमाधिसंवत्तनिकाति अप्पनासमाधिस्स वा उपचारसमाधिस्स वा असंवत्तनिका, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).227; - सुख नपुं.. निषे., तत्पु. स., समाधि में अनुभूत सुख से भिन्न दूसरा सुख- खं प्र. वि., ए. व. - द्वेमानि, भिक्खवे, सुखानि, कतमानि वे?
समाधिसुखञ्च असमाधिसुखञ्च, अ. नि. 1(1).97. असमान त्रि.. ब. स. [असमान], भिन्न, दूसरा, जन्य, असदृश - ने पु., सप्त. वि., ए. व. - असमाने कत्तरि पयोगो, सद्द. 1.312; - कत्तुक त्रि., ब. स. [असमानकर्तृक], भिन्न कर्ता वाला - कानं पु. प. वि., ब. क. - असमानकत्तुकानं त्वादिसदप्पयोगो, सद्द. 1.313; - कालिक त्रि., समानकालिक का निषे० [असमानकालिक], भिन्न-भिन्न कालों से जुड़ा हुआ - का पु., प्र. वि., ब. व. - सासनस्मि हि केचि सद्दा ... असमानकालिका असमानपदजातिका च भवन्ति, सद्द. 1.31; - गतिकत्त नपुं., भाव. [असमानगतिकत्व], एक
समान स्थिति का न रहना - त्ता प. वि., ए. व. - तेहि असमानगतिकत्ताति कारणं दस्सितं होति, सद्द. 1.182; - जातिक त्रि., ब. स. [असमानजातिक]. भिन्न वर्ग या समूह वाला, भिन्न प्रकृति वाला - को पु०, प्र. वि., ए. व. - इत्तरजच्चोति अञजातिको, मया सद्धिं असमानजातिको लामकजातिकोति अत्थो, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.200; - तता स्त्री॰, भाव. [असमानात्मता], पक्षपात से रहित न होना - य तृ. वि., ए. व. -- कतेन अदानेन वा अप्पियवचनेन वा अनत्थचरियाय वा असमानत्तताय वा यतो कुतोचि चरियं ... न सुतपुब्बं मि. प. 159; - नत्थ त्रि., ब. स. [असमानार्थ]. भिन्न अर्थ वाला - त्था पु.. प्र. वि., ब. व. - समानसुतिका पि असमानत्था चेव होन्ति असमानविभत्तिका च, सद्द. 1.31; - न्त त्रि., ब. स. [असमानान्त], भिन्न-भिन्न प्रत्ययों में अन्त होने वाला, अलग अलग विभक्तिचिह्नों वाला - न्ता पु., प्र. वि., ब. व. - ... केचि सद्दा ... असमानन्ता ... भवन्ति, सद्द. 1.31; - न्तिक त्रि., ब. स., उपरिवत् - न्तिका पु., प्र. वि., ब. व. - काचि असमानसुतिका काचि असमानन्तिका, सद्द. 2.461; - पदजातिक त्रि., ब. स. [असमानपदजातिक], भिन्न भिन्न पद-प्रभेद वाला - का पु., प्र. वि., ब. व. - ... केचि सद्दा... असमानपदजातिका ... भवन्ति, सद्द, 1.31; - प्पवत्तिनिमित्त त्रि., ब. स., भिन्न भिन्न रूप से व्युत्पन्न श्रुतिसम या समध्वनिक पद - त्ता पु., प्र. वि., ब. व. - ... केचि सद्दा... असमानप्पवत्तिनिमित्ता .... भवन्ति, सद्द. 1.31; - लिङ्ग त्रि., ब. स. [असमानलिङ्गिन]. भिन्न भिन्न लिङ्गों के साथ सम्बद्ध - ङ्गा पु., प्र. वि., ब. व. - ... केचि सद्दा... असमानलिङ्गा... भवन्ति, सद्द. 1.31; - वचनक त्रि.. ब. स. [असमानवचनक]. भिन्न भिन्न वचनों का सूचक - का पु., प्र. वि., ब. व. - ... केचि सद्दा ... असमानवचनका... भवन्ति, सद्द. 1.31; - विभत्तिक त्रि., ब. स. [असमानविभक्तिक], भिन्न भिन्न विभक्तियों में प्रयुक्त - का पु.. प्र. वि., ब. व. - ... केचि सद्दा ... असमानविभत्तिका ... भवन्ति, सद्द. 1.31; - सुतिक त्रि., ब. स. [असमानश्रुतिक], असमान या भिन्न भिन्न ध्वनियों से युक्त, असमश्रुति - का स्त्री., प्र. वि., ब. व. - ... काचि असमानसुतिका काचि असमानन्तिका, सद्द. 2.461; - नासनिक त्रि., ब. स. [असमानासनिक], भिन्न प्रकार के आसन (मञ्च या पीठ) रखने वाला - केहि पु., तृ. वि., ब. व. - तेन खो पन समयेन भिक्ख असमानासनिकेहि सह दीघासने निसीदितुं कुक्कुच्चायन्ति, चूळव. 299.
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