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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असमसम 681 असमान असमसम त्रि., ब. स., अनुपम, बेजोड़, अतुलनीय, अनुपमेय बुद्धों जैसा, वह, जिसके जैसा कोई और न हो - मो पु.. प्र. वि., ए. व. - ... अप्पटिपुग्गलो असमो असमसमो द्विपदानं अग्गो ति, अ. नि. 1(1).29; असमसमोति असमा वुच्चन्ति अतीतानागता सब्ब बुद्धा, तेहि असमेहि समोति असमसमो, अ. नि. अट्ठ. 1.94; - मं पु., द्वि. वि., ए. व. - तदापाहं असमसम, ससई, सपरिज्जनं, बु. वं. 11.14. असमा स्त्री., 1. पदुम बुद्ध की माता - मा प्र. वि., ए. व. - चम्पकं नाम नगरं, असमो नाम खत्तियो, असमा नाम जनिका, पद्मस्स महेसिनो, बु. वं. 10.16: 2. पदुमुत्तर बुद्ध की दो अग्रशिष्याओं में से एक - मा प्र. वि., ए. व. - अमिता च असमा च, अहेसं अग्गसाविका, बु. वं. 12.25. असमादानचार पु., भिक्षु के लिए निर्धारित तीन चीवरों को बिना लिए ही भिक्षाटन के लिए विचरना - रो प्र. वि., ए. व. - ... अनामन्तचारो, असमादानचारो, गणभोजनं, ..., महाव. 331; असमादानचारोति तिचीवरं असमादाय चरणं, चीवरविष्पवासो कप्पिस्सतीति अत्थो, महाव. अट्ठ. 366. असमाधि स्त्री., समाधि का निषे०, तत्पु. स. [असमाधि]. चित्त में समभाव एवं एकाग्रता का अभाव - धि प्र. वि., ए. व. - इति खो, भिक्खवे, समाधि मग्गो, असमाधि कम्मग्गो ति, अ. नि. 2(2),123; - संवत्तनिक त्रि., समाधि या चित्तसमता एवं चित्त की एकाग्रता की ओर न ले जाने वाला/वाली - का स्त्री, प्र. वि., ए. व. - या सा वाचा अण्डका ... असमाधिसंवत्तनिका, म. नि. 1.360; असमाधिसंवत्तनिकाति अप्पनासमाधिस्स वा उपचारसमाधिस्स वा असंवत्तनिका, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).227; - सुख नपुं.. निषे., तत्पु. स., समाधि में अनुभूत सुख से भिन्न दूसरा सुख- खं प्र. वि., ए. व. - द्वेमानि, भिक्खवे, सुखानि, कतमानि वे? समाधिसुखञ्च असमाधिसुखञ्च, अ. नि. 1(1).97. असमान त्रि.. ब. स. [असमान], भिन्न, दूसरा, जन्य, असदृश - ने पु., सप्त. वि., ए. व. - असमाने कत्तरि पयोगो, सद्द. 1.312; - कत्तुक त्रि., ब. स. [असमानकर्तृक], भिन्न कर्ता वाला - कानं पु. प. वि., ब. क. - असमानकत्तुकानं त्वादिसदप्पयोगो, सद्द. 1.313; - कालिक त्रि., समानकालिक का निषे० [असमानकालिक], भिन्न-भिन्न कालों से जुड़ा हुआ - का पु., प्र. वि., ब. व. - सासनस्मि हि केचि सद्दा ... असमानकालिका असमानपदजातिका च भवन्ति, सद्द. 1.31; - गतिकत्त नपुं., भाव. [असमानगतिकत्व], एक समान स्थिति का न रहना - त्ता प. वि., ए. व. - तेहि असमानगतिकत्ताति कारणं दस्सितं होति, सद्द. 1.182; - जातिक त्रि., ब. स. [असमानजातिक]. भिन्न वर्ग या समूह वाला, भिन्न प्रकृति वाला - को पु०, प्र. वि., ए. व. - इत्तरजच्चोति अञजातिको, मया सद्धिं असमानजातिको लामकजातिकोति अत्थो, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.200; - तता स्त्री॰, भाव. [असमानात्मता], पक्षपात से रहित न होना - य तृ. वि., ए. व. -- कतेन अदानेन वा अप्पियवचनेन वा अनत्थचरियाय वा असमानत्तताय वा यतो कुतोचि चरियं ... न सुतपुब्बं मि. प. 159; - नत्थ त्रि., ब. स. [असमानार्थ]. भिन्न अर्थ वाला - त्था पु.. प्र. वि., ब. व. - समानसुतिका पि असमानत्था चेव होन्ति असमानविभत्तिका च, सद्द. 1.31; - न्त त्रि., ब. स. [असमानान्त], भिन्न-भिन्न प्रत्ययों में अन्त होने वाला, अलग अलग विभक्तिचिह्नों वाला - न्ता पु., प्र. वि., ब. व. - ... केचि सद्दा ... असमानन्ता ... भवन्ति, सद्द. 1.31; - न्तिक त्रि., ब. स., उपरिवत् - न्तिका पु., प्र. वि., ब. व. - काचि असमानसुतिका काचि असमानन्तिका, सद्द. 2.461; - पदजातिक त्रि., ब. स. [असमानपदजातिक], भिन्न भिन्न पद-प्रभेद वाला - का पु., प्र. वि., ब. व. - ... केचि सद्दा... असमानपदजातिका ... भवन्ति, सद्द, 1.31; - प्पवत्तिनिमित्त त्रि., ब. स., भिन्न भिन्न रूप से व्युत्पन्न श्रुतिसम या समध्वनिक पद - त्ता पु., प्र. वि., ब. व. - ... केचि सद्दा... असमानप्पवत्तिनिमित्ता .... भवन्ति, सद्द. 1.31; - लिङ्ग त्रि., ब. स. [असमानलिङ्गिन]. भिन्न भिन्न लिङ्गों के साथ सम्बद्ध - ङ्गा पु., प्र. वि., ब. व. - ... केचि सद्दा... असमानलिङ्गा... भवन्ति, सद्द. 1.31; - वचनक त्रि.. ब. स. [असमानवचनक]. भिन्न भिन्न वचनों का सूचक - का पु., प्र. वि., ब. व. - ... केचि सद्दा ... असमानवचनका... भवन्ति, सद्द. 1.31; - विभत्तिक त्रि., ब. स. [असमानविभक्तिक], भिन्न भिन्न विभक्तियों में प्रयुक्त - का पु.. प्र. वि., ब. व. - ... केचि सद्दा ... असमानविभत्तिका ... भवन्ति, सद्द. 1.31; - सुतिक त्रि., ब. स. [असमानश्रुतिक], असमान या भिन्न भिन्न ध्वनियों से युक्त, असमश्रुति - का स्त्री., प्र. वि., ब. व. - ... काचि असमानसुतिका काचि असमानन्तिका, सद्द. 2.461; - नासनिक त्रि., ब. स. [असमानासनिक], भिन्न प्रकार के आसन (मञ्च या पीठ) रखने वाला - केहि पु., तृ. वि., ब. व. - तेन खो पन समयेन भिक्ख असमानासनिकेहि सह दीघासने निसीदितुं कुक्कुच्चायन्ति, चूळव. 299. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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