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असमत्थ
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असमवेक्खित्वा
असमत्थ त्रि, समत्थ का निषे, तत्पु. स. [असमर्थ], अक्षम, सामर्थ्य से रहित - त्थो पु., प्र. वि., ए. व. - मुट्ठस्सति उपायापरिच्चागे अनुपायापरिग्गहे च असमत्थो होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).254; यथा बलिबद्दस्स युगनङ्गलादीनि वहितुं असमत्थो एसोति.... ध. प. अट्ठ. 2.70; - ता स्त्री., भाव. [असमर्थता], अक्षमता, सामर्थ्य का अभाव - तं द्वि. वि., ए. व. - एतमत्थं विदित्वाति एतं ... केवलं तरितुं असमत्थतं ..., उदा. अट्ठ. 343; - पञ त्रि., ब. स. [असमर्थप्रज्ञ], क्षमता से रहित प्रज्ञा वाला, अविकसित बुद्धि वाला - नं पुद्वि. वि., ए. व. - दहरि कुमारिं असमत्थपञ्ज यं तानयिं आतिकुला सुगत्ते, जा. अट्ठ. 4.32, तत्थ असमत्थपञ्जन्ति कुटुम्ब विचारेतु अप्पटिबलपञ्ज
अतितरुणिजेव समानं तदे... असमधुर त्रि., निषे., ब. स. [असमधुर], अनुपम भार को ढोने वाला, दूसरों द्वारा नहीं ढोए जा सकने योग्य भार को ढोने वाला - रो पु., प्र. वि., ए. व. - तथागतो नाम असमधुरो, तथागतेन वुळ्हधुरं असो वहितुं समत्थो नाम नत्थि , जा. अट्ठ. 1.192; - रं पु., द्वि. वि., ए. व. - एवं असमधुरं पण्डितं नाहं दकरक्खस्स दस्सामीति, जा. अट्ठ. 6.309; - स्स पु., ष. वि., ए. व. - सोहं न सोस्सं
असमधुरस्स धम्म, सु. नि. 699. असमनुपस्सनलक्खण त्रि., ब. व. [असमानुपश्यनलक्षण]. गहराई या सूक्ष्मता के साथ अनुपश्यना न किए जाने के स्वभाव वाला, वह, जिसने सूक्ष्मता के साथ अनुपश्यना नहीं की है - क्खणा स्त्री., प्र. वि., ए. व. - सङ्घतलक्खणानं धम्मानं असमनुपस्सनलक्खणा निच्चसआ, नेत्ति. 25. असमन्नागत त्रि., समन्नागत का निषे. [असमन्वागत], पूरी तरह से अपने पास न रखने वाला, (से) रहित - तो पु., प्र. वि., ए. व. - अनुलोमिकाय खन्तिया असमन्नागतो सम्मत्तनियामं ओक्कमिस्सती ति नेतं ठानं विज्जति, अ. नि. 2(2).142. असमन्नाहार त्रि., ब. स. [असमन्वाहार], शा. अ. एक साथ नहीं लाना, ला. अ. चित्त की एकाग्रता का अभाव, एकाग्रता के साथ अनुचिन्तन का अभाव - तो प. वि., ए. व. - असमन्नाहारतोति पठवीधातु चेत्थ अहं पठवीधातूति वा... न जानाति, विसुद्धि. 1.360; - ता स्त्री., भाव., सूक्ष्म अनुचिन्तन के अभाव की दशा - ... एते धम्माति हेट्ठा धातूनं असमन्नाहारता दस्सिता एव .... विसुद्धि. महाटी. 1.425.
असमपेक्खण नपुं., निषे०, तत्पु. स. [असम्प्रेक्षण]. संप्रेक्षण
का अभाव, सूक्ष्मता के साथ या समभाव के साथ धर्मों को चित्त द्वारा ग्रहण न करना - णा स्त्री., प्र. वि., ए. व. - रूपे खो, ... असमपेक्खणा, वेदनासमुदये, .... स. नि. 2(1).260; न समं पेक्खतीति असमपेक्खणा, ध. स. अट्ठ. 294; - ने सप्त. वि., ए. व. - असमपेक्खने मोहो उप्पज्जति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).265; पाठा. असमपेक्खन, असमय पु., समय का निषे., तत्पु. स. [असमय]. अनुपयुक्त
समय, अनुपयुक्त काल - यो प्र. वि., ए. व. - अकालो .... भगवन्तं दस्सनाय.... मनोभावनियानम्पि भिक्खूनं असमयो दस्सनाय म. नि. 2.224; - या ब. व. - पश्चिमे भिक्खवे असमया पधानाय, अ. नि. 2(1).61; - येन तृ. वि., ए. व. - ... असमयेन भुत्तं अनोजवन्तं होति, अ. नि. 2(1),240; - प्पत्त त्रि., समयप्पत्त का निषे., तत्पु. स. [असमयप्राप्त], अपने निर्धारित समय को न पा सकने वाला, निर्धारित जीवनावधि तक न पहुंचने वाला - त्तो पु., प्र. वि., ए. व. - वातेन पटिपीळितो सो वलाहको असमयप्पत्तो येव विगतोति. मि. प. 280. असमयविमुत्त त्रि., तत्पु. स., हेतु-प्रत्ययों के बिना ही विमुक्ति को पाने वाला अर्हत्, सुनिश्चित विमुक्ति से विमुक्त, पूर्णरूप से निर्वाण को प्राप्त अर्हत् - त्तो पु., प्र. वि., ए. व. - भिक्खु असमयविमुत्तो करणीयं अत्तनो न समनुपस्सन्ति कतस्स वा पतिचयं, अ. नि. 3(2).303; असमयविमुत्तो ति असमयविमुत्तिया विमुत्तो खीणासवो, अ. नि. अट्ठ. 3.343. असमयविमुत्ति स्त्री., कर्म. स., सुनिश्चित विमुक्ति, अर्हत् द्वारा प्राप्त विमुक्ति - या प्र. वि., ए. व. - असमयविमोक्खं आराधेति, अट्ठानमेतं. ... यं सो भिक्खु ताय असमयविमुत्तिया परिहायेथ म. नि. 1.260. असमयविमोक्ख पु., कर्म. स., चार आर्य-मार्ग, श्रमणजीवन के चार फल एवं निर्वाण - क्खं द्वि. वि., ए. व. - असमयविमोक्खं आराधेतीति, कतमो असमयविमोक्खो? चत्तारो च अरियमग्गा, .... म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).130. - क्खो प्र. वि., ए. व. - चतारि च सामञ्जफलानि, निब्बानञ्च,
अयं असमयविमोक्खो ति, पटि. म. 226; असमवेक्खित्वा सं. + अव + (इक्ख के भू. क. कृ. का निषे. [असमवेक्ष्य], अच्छी तरह से अचिन्तित या अविचारित, ठीक से सोच-विचार न कर - असमवेक्खित्वा पारिमं तीर म. नि. 1.290.
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