Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 706
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असब्मि 679 असमत्त ध, प. अट्ठ. 1.311; - माहि स्त्री., तृ. वि., ब. व. - ... -- का पु., प्र. वि., ए. व. - ... अगारवा अप्पतिस्सा असमाहि फरुसाहि वाचाहि अक्कोसन्ति परिभासन्ति, .... असभागवुत्तिका विहरन्ति, चूळव. 290. उदा. 82; तत्थ असब्भाहीति असभायोग्गाहि सभायं असभायोग्ग त्रि., सभायोग्ग का निषे., तत्पु. स. [असभायोग्य]. साधुजनसमूहे वत्तुं अयुत्ताहि, दुवल्लाहीति अत्थो, उदा. सभा में न कहे जाने योग्य, सभा में सम्मिलित न होने अट्ठ. 89. योग्य, असभ्य - ग्गाहि स्त्री., तृ. वि., ब. व. - तत्थ असब्मि व्यु. संदिग्ध क. असन्त का पु., तृ. वि., ब. व. असभाहीति असभायोग्गाहि सभायं साधुजनसमूहे वत्तुं [असद्भिः ], असज्जनों द्वारा - नासभि बहु सङ्गमो, जा. अयुत्ताहि, उदा. अट्ठ. 89. अट्ठ. 5.478; नासब्भीति असप्पुरिसेहि पन ..., तदे.; असब्भि असम' त्रि., [असभ्], क. ऊबड़-खाबड़, असमतल, कहीं हेतं..., उपञातं यदिदं अकतञ्जता अकतवेदिता, अ. नि. ऊंचा तो कहीं निचला - मं पु.. वि. वि., ए. व. - अन्धोव 1(1).78; यो पन अम्हहि पदमालाय सब्भीति अयं सद्दो विसमं मग्गं, न जानाति समासमं, जा. अट्ठ. 4.170; ख. ततिया-पञ्चमीबहुवचनवसेन योजितो, सो च खो सन्त इति अनूठा, बेजोड़, अनुपम, अतुलनीय, भिन्न - मो पु.. प्र. वि., अकारन्तपकतिवसेन, सद्द. 1.174-75; ख. त्रि., संभवतः ए. व. - यं तथागतो बोधिसत्तो समानो असमो लोकेन असब्भ/असभिय का परिवर्तित रूप [असभ्य], अशिष्ट, ...... मि. प. 125; मेत्ताय असमो होहि बु. वं. 2.157; - मा अनुत्तम, असत्पुरुष - अञत्थ पन सभी ति ब. व. - असमा उभोदूरविहाखुत्तिनो .... सु. नि. 222; - मं इकारन्तपकतिवसेन योजेतब्बो, तत्थ हि सभी ति सप्पुरिसो नपुं.. प्र. वि., ए. व. - तस्सापि असमं सील, बु. वं. 10.2; निब्बानञ्च सुन्दराधिवचनं वा, .... सद्द. 1.175 - ब्मि पु., तत्थ असमं सीलन्ति अजेसं सीलेन असदिसंबु. वं. अट्ठ. संबो. ए. व. - बहुम्पेतं असभि जातवेद, जा. अट्ठ. 1.471; 204; - ता स्त्री., भाव. [असमता], विषमता, अन्तर, प्रभेद असभीति असप्पुरिस, असाधुजातिक, जा. अट्ठ. 1.472; - - तं द्वि. वि., ए. व. - अजेहि धम्मेहि असमतं वत्वा इदानि ब्मं स्त्री.. वि. वि., ए. व. - ... वाचं अभासि फरुसं असमें तेसं सत्तानं ..., खु. पा. अट्ठ. 1.143. पे. व. 460; - कारण नपुं.. कर्म. स., अनुपयुक्त कारण असम पु., ब. व. में प्रयुक्त होने पर, क, देवताओं का विशेष - णं प्र. वि., ए. व. - असब्मिकारणं, यं पुत्तदार याचन्ते वर्ग - मा प्र. वि., ब. व. - वेण्ड्दे वा सहलि च, असमा च अत्तानं ददेय्य, मि. प. 260; - जातिक त्रि., ब. स. दुवे यमा, दी. नि. 2.191; असमा च दुवे यमाति असमदेवता [असभ्यजातिक], अशिष्ट स्वभाव वाला - को पु., प्र. वि., च द्वे च यमका देवा, दी. नि. अट्ठ. 2.254; ख. पु., प्र. वि., ए. व. - सो नरदेवयक्खाबाधो असभिजातिको लामको, ए. व. में प्रयुक्त होने पर, असम देव-वर्ग का एक देव - . जा. अट्ठ. 6.217; - रूप त्रि.. ब. स. [असभ्यरूप], अशिष्ट ... असमो च सहलि च नीको च अकोटको वेगभरि च या अज्ञानी प्रकृति वाला - पो पु.. प्र. वि., ए. व. - ...... स. नि. 1(1).80. अनरियरूपो पुरिसो जनिन्द, असम्मोदको थद्धो असभिरूपो, असम पु.. एक चक्रवर्ती राजा - मो प्र. वि., ए. व. - इतो जा. अट्ठ. 6.241; 217; तत्थ असभिरूपोति तेसहिमे कप्पे, असमो नाम खत्तियो, सत्तरतनसम्पन्नो, अपण्डितजातिको, तदे.; - वाद पु., तत्पु. स. [असभ्यवाद]. चक्कवत्ती महब्बलो, अप. 1.249. अशिष्ट जनों या अज्ञानी लोगों का सिद्धान्त, अनुपयुक्त असम पु., सोभित बुद्ध का अग्रश्रावक या अग्रसेवक - मो सिद्धान्त - दं द्वि. वि, ए. व. - कितवोपमं आहरित्वा उपरिवत् - भिय्यो चेव असमो च, अहेसु अग्गुपट्ठका, बु. वं. नानप्पकारक असभिवादं वदमाना वाचाय घट्टयिंस. स. नि. 10.23. अट्ठ. 1.60. असमत्त त्रि., सं. + आप के भू, क. कृ. का निषे. असमाप्त]. असभाग त्रि., ब. स. [असभाग], असमान, असदृश, भिन्न समाप्त नहीं किया गया, पूरा न किया गया, आधा अधूरा, प्रकृति का, एक ही श्रेणी के अन्दर न आने वाला - गाय अपूर्ण - त्ता पु., प्र. वि., ब. व. - ... अकेवली ते, असमत्ता स्त्री., तृ. वि., ए. व. - ततियस्स पठमे असभागवत्तिकोति ते, महानि. 220; - त्ते पु., द्वि. वि., ब. व. - ... ते, भगवा असभागाय विसदिसाय जीवितवुत्तिया समन्नागतो, अ. नि. असमत्ते ओवदति, यथा पुण्णञ्च गोवतिक अचेलञ्च अट्ठ. 3.6-7; - दुत्तिक त्रि., ब. स. [असभागवृत्तिक], कुक्कुरवतिक नेत्ति. 81; असमत्तेति कम्मे असम्पुण्णे, ते आपस में प्रेमभाव या शिष्टाचार-परायणता न रखने वाला असम्पुण्णे वा, नेत्ति. अट्ठ. 289. For Private and Personal Use Only

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