Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 692
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असंसह 665 1(2).139; असंसग्गेन छिज्जतीति एकतो ठाननिसज्जनादीनि अकरोन्तस्स असंसग्गेन अदस्सनेन छिज्जति, स. नि. अट्ट 2.126; - ग्गस्स ष. वि., ए. व. - असंसग्गरस च वण्णवादी, म. नि. 1.278; - ग्गो प्र. वि., ए. व. - अलोभो अनभिसङ्गो अपरिग्गहलक्खणो मुत्तप्पवत्तनरसो असंसग्गोति गरहति, ना. रु. प. 91; - कथा स्त्री., तत्पु. स. [असंसर्गकथा], अनासक्ति-भाव या विराग के विषय में कथन, विराग-विषयक संलाप - अप्पिच्छकथा... असंसग्गकथा ... सीलकथा, अ. नि. 3(1).172; - ग्गरामता स्त्री., भाव., अनासक्तिभाव के प्रति अभिरुचि होना - कतमे अट्ठ ... इन्द्रियेसु गुत्तद्वारता ... असंसग्गारामता निप्पपञ्चारामता, अ. नि. 3(1).152. असंसट्ठ त्रि., सं+सिज के भू. क. कृ. का निषे. [असंसृष्ट], नहीं घुला-मिला हुआ, अलिप्त, संसर्ग-रहित, अलग-थलग, अमिश्रित - टुं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - असंसर्ट गहडेहि, सु. नि. 633; असंसट्ठन्ति... अभावेन असंसट्ठ उभयन्ति गिहीहि च अनगारेहि ... असंसट्ट, सु. नि. अट्ठ. 2.171; - 8ो पु. प्र. वि., ए. व. -- असंसट्ठो कुले गणे, अप. 2.16; असंसट्ठो गहढहि, थेरगा. 581; असंसट्ठोति दस्सनसवनसमुल्लपन- सम्भोगकायसंसग्गानं अभावेन असंसट्ठो यथावृत्तसंसग्गरहितो, थेरगा. अट्ठ. 2.175. असंसप्प पु., [असंसर्पण, नपुं.], शा. अ. फिसलन या स्खलन का अभाव, ला. अ. हिचकिचाहट का अभाव, दृढ़संकल्प - प्पो प्र. वि., ए. व. - अधिमोक्खो असंसप्पो ..., ना. रू. प. 83. असंसप्पनरस त्रि., ब. स., अविचलित बनाने का कृत्य करने वाला, हिचकिचाहट से रहित कर देने वाला (अधिमोक्ष) - सो पु.. प्र. वि., ए. व. - सन्निट्ठानलक्खणो असंसप्पनरसो .... सन्निट्ठातब्बधम्मपदट्ठानो, ध. स. अट्ठ. 178. असंसय क. त्रि., ब. स. [असंशय], सन्देह से मुक्त, संशय से रहित - स्स पु., ष. वि., ए. व. - असंसयस्स कुसलस्स ..., म. नि. 2.54; - या स्त्री., प्र. वि., ए. व. - असंसया बहुजनपूजिता अहं वि. व. 146; असंसयाति... विचिकिच्छाय पहीनत्ता अपगतसंसया ... असंसिया ति केचि पठन्ति, वि. व. अट्ठ. 67; ख. नपुं., संशय का अभाव, निश्चय - ये पु.. - चर असंसये चरेति चरयति, सद्द. 2.559; - यं द्वि. वि., ए. व., क्रि. वि., निश्चित रूप से- असंसयं जातिखयन्तदस्सी, जा. अट्ठ. 3.384; असंसयं सो निरयं उपेति, जा. अट्ठ. 4.43 असकिं असंहारिम त्रि., संहारिम का निषे०, नहीं हिलाने-डुलाने योग्य, स्थिर, अचल, दृढ़ - मे पु., सप्त. वि., ए. व. - एवं खाणके बन्धित्वा ठपितमञ्चादिम्हि असंहारिमे फलके वा पासाणे वा न रूहतियेव, पाचि. अट्ठ. 100; अनापत्ति आपुच्छा गच्छति असंहारिमे गिलानाय... आदिकम्मिकायाति, पाचि. 373; असंहारिमेति थाममज्झिमेन पुरिसेन असंहारिये, सारत्थ. टी. 3.63. असंहारिय त्रि., सं + हर, प्रेर. के सं. कृ. का निषे. [असंहार्य], किसी के भी द्वारा नहीं हिलाने-डुलाने योग्य, अचल, अत्यन्त दृढ़ - या स्त्री॰, प्र. वि., ए. व. - ... तथागते सद्धा निविट्ठा मूलजाता पतिट्टिता दळहा असंहारिया समणेन वा ब्राह्मणेन वा... केनचि वा लोकस्मि, दी. नि. 3.62; असंहारियाति सुनिखातइन्दखीलो विय केनचि चालेतुं असक्कुणेय्या, दी. नि. अट्ठ. 3.44; - यो पु., प्र. वि., ए. व. - असंहारियो नाम च होति पण्डितो, थेरगा. 372; ... सो तादिसो पुग्गलो किलेसेहि देवपुत्तमारादिसु वा केनचि असंहारियताय असंहारियो नाम होति, थेरगा. अट्ठ. 2.66; - ये पु., सप्त. वि., ए. व. - असंहारिमेति थाममज्झिमेन पुरिसेन असंहारिये, सारत्थ. टी. 3.63. असंहीर त्रि., सं + Vहर, कर्म. वा. के सं. कृ. का निषे. [असंहिय], नहीं हिला-डुला सकने योग्य, अकम्प्य, दृढ़, स्थिर - रा स्त्री., प्र. वि., ए. व. - यावजीवं असंहीरा, इतिवु. 56; - रो पु., प्र. वि., ए. व. - विनये ... ठितो होति असंहीरो, अ. नि. 2(2).269; विनये... विनयलक्खणे पतिद्वितो होति, असंहीरोति न सक्का होति गहितग्गहणं विस्सज्जापेतं अ. नि. अट्ठ. 3.190; - रा पु., प्र. वि., ब. व. - धम्मदसा ठिता असंहीरा, थेरगा. 1252; असंहीराति केनचि असंहारिया हुत्वा पतिहिता, थेरगा. अट्ठ. 2.445; - रं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - असंहीरं असंकुष्पं, थेरगा. 649; असंहीरन्ति न संहीर .... रागेन अनाकड्डनियं, थेरगा. अट्ठ. 2.204; - चित्त त्रि., ब. स. [असंहियचित्त], अविकम्प्य चित्त वाला, दृढ़ चित्त वाला - त्ता स्त्री., प्र. वि., ए. व. - अत्तभावे मयि ससिनेहा असंहीरचित्ता ... भवेय्य, जा. अट्ठ. 4.252. असक त्रि., ब. स. [अस्वक], वह, जो अपना नहीं है, पराया - कट्ठ पु., तत्पु. स., अपने से भिन्न का अर्थ - द्वेन तृ. वि., ए. व. - असकद्वेन परतो..., म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.105. असकिं अ., निपा. [असकृत्], अनेक बार, बार-बार - सरूपानं पदब्यञ्जनानं एकसेसो होति असकि, क. व्या. 390. For Private and Personal Use Only

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