Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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असक्कच्चं
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असक्यधीतु
lo 3.47.
असक्कच्चं अ, सत + Vकर के पू. का. कृ. का निषे. [असत्कृत्य], ठीक से न करके, असावधानी, उपेक्षा या अवज्ञा के साथ, बिना सोचे विचारे, तिरस्कारभाव के साथ, अनुचित रूप में - सक्कच्च व पहारं देति नो असक्कच्चं, अ. नि. 2(1).114; सक्कच्च व देति नो असक्कच्चन्ति अनवआय अविरज्झित्वाव देति, नो अवआय विरज्झित्वा, अ. नि. अट्ठ. 3.42; असक्कच्चं देति ... अनागमनदिट्टिको देति, अ. नि. 2(1).161; असक्कच्चं देतीति न सक्करित्वा सुचिं कत्वा देति, अ. नि. अट्ठ. 3.54; असक्कच्चन्ति अनादरं कत्वा देय्यधम्मस्स असक्कच्चकरणं... न सक्करित्वा सुचिं कत्वा देती, अ. नि. टी. 3.47. असक्कच्चकारी त्रि., बिना सोचे-विचारे ही काम करने वाला, अविवेक के साथ काम करने वाला - न समाधिस्स वुट्ठानकुसलो होति असक्कच्चकारी च होति... असप्पायकारी च, अ. नि. 2(2).129. असक्कच्चकिरियता स्त्री., भाव., विवेकसङ्गत व्यवहार या आचरण का अभाव, सोचे-विचारे बिना ही कार्य करने की प्रवृत्ति - कुसलानं वा धम्मानं भावनाय असक्कच्चकिरियता ... अनासेवना अभावना अबहुलीकम्मं अनधिट्टानं अननुयोगो पमादो, विभ. 401; असक्कच्चकिरियताति एतेसं दानादीनं कुसलधम्मानं भावनाय पुग्गलस्स वा देय्यधम्मस्स वा असक्कच्चकरणवसेन असक्कच्चकिरिया, विभ. अट्ठ. 443. असक्कच्चदान नपुं., अविवेक या असावधानी के साथ दिया गया दान - असक्कच्चदानपच्चवेक्खणधम्मसवनादीसु ....
पवत्तिकाले परित्तारम्मणा, ध. स. अट्ठ. 430. असक्कत त्रि., सक्कत का निषे.. तत्पु. स. [असत्कृत], अपूजित, असम्मानित, उचित रूप में अविचारित - ता पु.. प्र. वि., ब. व. - असक्कता चस्म धनञ्जयाया ति, जा. अट्ठ. 3.84; असक्कता चस्माति अन्नपानं न लभाम, तदे; परिब्बाजका असक्कता होन्ति अगरुकता ... अनपचिता, उदा. 81. असक्करियमान त्रि., सत + (कर, कर्म. वा. के वर्त. कृ. का निषे. [असक्रियमाण], असम्मानित, अपूजित - ना पु., प्र. वि., ब. व. - अम्हेहि असक्करियमाना ... अपूजियमाना असक्कारपकता पक्कमिस्सन्ति वा ... भगवन्तं वा पसादेस्सन्तीति, महाव. 475. असक्कार पु.. सक्कार का निषे., तत्पु. स. [असत्कार]. असम्मान, सत्कार का अभाव - रेन तृ. वि., ए. व. - यस्स
सक्करियमानस्स असक्कारेन चूभयं ..., इतिवु. 54; - पकत त्रि., ब. स. [असत्कारप्रकृत], असम्मान के प्रभाव से प्रभावित - ता पु., प्र. वि., ब. व. - एवं इमे अम्हेहि असक्करियमाना... असक्कारपकता पक्कमिस्सन्ति वा... पसादेस्सन्ती'ति, महाव. 475. असक्कुणेय्य त्रि., Vसक से व्यु., सं. कृ. का निषे. [अशक्य], नहीं किये जाने योग्य, असंभव - य्यो पु., प्र. वि., ए. व. -हितपटिपत्तिया वा दुन्नयो होति नेतुं असक्कुणेय्यो, जा. अट्ठ. 4.217; - य्ये पु., सप्त. वि., ए. व. - बोधेतुं असक्कुणेय्ये अरूपभवे निब्बत्तिस्सामी ति दिस्वा ..., जा. अट्ठ. 1.65; असक्कुणेय्ये हदयब्भन्तरे मम खन्ति पतिहिता, जा. अट्ठ. 3.35; - त्त नपुं., भाव. [अशक्यत्व], असंभव होना, कर सकने योग्य न रहना - त्ता प. वि., ए. व. - मतस्स पुन जीवापेतुं असक्कुणेय्यत्ता इद्धिमतो. जा. अट्ट. 3.144; - ता स्त्री., भाव., उपरिवत् - य तृ./प्र. वि., ए. व. - वसे वत्तेतुं असक्कुणेय्यताय ... निष्फादेतीति अत्थो, उदा. अट्ठ. 169; भोजनेन ओनमितुं असक्कुणेय्यताय अनोनमनदण्डो, अ. नि. टी. 1.203; - भाव पु.. उपरिवत् - वं द्वि. वि., ए. व. - पूजनीयवानस्स सक्कुणेय्यभावं
जानाथाति, जा. अट्ठ. 4.204. असक्कोन्त त्रि., सक के वर्त. कृ. का निषे. [असक्नुवत्], सक्षम न होता हुआ, अक्षम, कर सकने में असमर्थ - न्तो पु., प्र. वि., ए. व. - असम्भुणन्तोति असक्कोन्तो, सु. नि. अट्ठ. 2.97. असक्खर त्रि., ब. स. [अशर्कर], कंकड़ों-पत्थरों से रहित, मृदु - रा स्त्री., प्र. वि., ए. व. - असक्खरा चेव मुदू सुभा च, जा. अट्ठ. 5.162; असक्खराति ... पासाणसक्खररहिता मुदु सुभा, तदे; - रो पु., प्र. वि., ए. व. - असक्ख रो ति
आदिना नयेन ... मग्गकथं कथेसंधप. अट्ठ. 2.231. असक्खिक त्रि., ब. स. [असाक्षिक], बिना साक्षी वाला, बिन गवाह का - कं पु., द्वि. वि., ए. व. - असक्खिक अडे करोन्तो विय च, ध. स. अट्ठ. 32. असक्य त्रि., Vसक के सं. कृ. का निषे. [अशक्य], नहीं किए जा सकने योग्य, असंभव - क्यो पु., प्र. वि., ए. व.
- अफलो च असक्यो च वायामो, सु. नि. अट्ठ. 1.7. असक्यधीतु स्त्री., कर्म. स. [अशाक्यदुहित], अननुरूप बौद्ध भिक्षुणी, ऐसी भिक्षुणी, जो बुद्धधर्म के अनुरूप आचरण न करती हो - ता प्र. वि., ए. व. - अस्समणी होति असक्यधीता, पाचि. 288.
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