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अव्यञ्जन / अब्यञ्जन
अब्यग्गमनसोति एकग्गचितो स. नि. अड. 1.144: मानस त्रि.. ब. स. उपरिवत् सो पु. प्र. वि. ए. व. अव्यग्गमानसो नरो, अ. नि. 1 (1).155. अव्यञ्जन / अव्यञ्जन त्रि.. ब. स. [अव्यञ्जन] ध्वनियों के कारण अस्पष्ट, असुस्पष्ट ना स्त्री. प्र. वि., ए. व. अभावतो अब्यञ्जना नाम देसना, म. नि. अट्ठ. ( मू.प.) 1(2).104.
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1.33;
बालस्स अब्यत्तस्स
अव्यत्त / अब्यत्त त्रि वि + √अञ्ज के भू० क० कृ० का नि.. [अव्यक्त ]. क. मूर्ख, अकुशल, अज्ञानी, अविवेकी त्तो पु. प्र. वि. ए. व. बालो होति अब्यत्तो.... अनपदानो, महाव. 419: तेन पु. तृ. वि. ए. व. अव्यत्तेन च साम स. नि. 1(1).9: अव्यतेनाति बालेन स. नि. अड्ड तस पु, ष. वि., ए. व. भणितेन, पु, प. 141 सा स्त्री. प्र. वि. ए. व. त्ता' उपासिका बाला अब्यत्ता... अम्मकसञ्ञा, अ. नि. 2 (2).63; - त्ता' पु०, प्र. वि., ब.व. बाला अब्यत्ता... परेसं वण्णं वा.म.नि. 2.323 ता स्त्री. भाव [अव्यक्तता] मूर्खता. अकुशलता ताथ तृ. वि. ए. व. त्वं अत्तनो अव्यत्तताय बालभावेन जा. अड. 1.473 ख अस्पष्ट, धूमिल सद पु.. कर्म. स. [अव्यक्तशब्द] अस्पष्ट अर्थ वाला शब्द, निरर्थक शब्द दो प्र. वि. ए. व. हिक्क अव्यत्तसदे अव्यत्तरादो अविभावितत्थसदो निरत्थकसो च सद. 2326 - हे सप्त वि. ए. व. सळ अव्यत्तरादे सळति साळिको द्दे साठिका सद. 2461 तक्खर त्रि. ब. स. [अव्यक्ताक्षरक]. असुस्पष्ट अक्षरों या ध्वनियों वाला क्खरं द्वि. वि. ए. व. - अव्यत्तक्खरं तिक्खतु... गज्जि उदा. अड्ड. 54. राग त्रि. ब. स. [ अव्यक्तराग], रक्तिम, रक्ताभ, ललछौंहा गे पु., सप्त. वि., ए. व. अरुणो रसिदे चाव्यत्तरागे थ लोहिते, अभि. प. 980 - विलाप पु.. कर्म. स. [अव्यक्तविलाप ] अस्पष्ट स्वर में विलाप या रोना-धोनापं द्वि. वि. ए. व. अव्ययतं विलपसीति त्वं अव्यत्तविलापं विलपसि, जा. अट्ठ 1.473.
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अव्यथ / अन्यथ फु. [अव्यथ. त्रि.] पीड़ा, विपत्ति या थकावट का अभाव, अनुत्पीड़न थो प्र. वि. ए. व. अत्थब्यापत्ति अव्यथोति जा. अड्ड. 3.411 तदा अव्यथो अकिलमन चतुत्थं साधु, तदे... अव्यभिचारवोहार / अव्यभिचारवोहार' पु.. कर्म. स. [अव्यभिचारव्यवहार] सर्वथा युक्तिसङ्गत व्यावहारिक वचन प्रयोग या अभिव्यक्ति प्र. वि., ए. व. धम्मे
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अव्ययीभाव / अव्ययीभाव च सभावनिरुत्ति अव्यभिचारवोहारो अभिलापो, उदा. अड.
109.
अव्यमिचारिवोहार / अव्यमिचारिवोहार पु. कर्म. स. [अव्यभिचारिव्यवहार] निर्दुष्ट या युक्तियुक्त तार्किक स्थापना, दोषरहित लक्षण रो प्र. वि., ए. व. धम्मे च या सभावनिरुत्ति अव्यभिचारिवोहारो, पटि. म. अड्ड. 14. अव्यय'त्रि. ब. स. [अव्यय ]. शा. अ. अपरिवर्तनशील, अविनाशी, अखण्डित. ला. अ. (व्याकरण में). ऐसा शब्द जिसके मूल स्वरूप में लिंग, विभक्ति या वचन के कारण कोई विकार या परिवर्तन नहीं होता यं नपुं. प्र. वि., सदिसं तीसु लिनेसु सब्बासु च विभत्तिसु वचनेसु च सब्बेसु यन्न व्येति तदव्ययं सद. 1.299 में उदधृत या पु०, प्र. वि., ब.व. तानि वुच्चन्ति अव्यया, सद्द. 3.746; त्त नपुं., भाव. [अव्ययत्व], अव्यय अथवा विकार-रहित त्ते सप्त वि. ए. व. अव्ययत्ते पन्
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ए.
व.
होना
सद्द०
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2.451.
अव्यय' / अव्यय पु. व्यय का निषे, तत्पु. स. [अव्यय ]. व्यय या हानि का अभाव, अविकार, अविनाश येन तू. वि. ए. व.. क्रि. विशे. मुधाति अव्ययेन काकणिकमत्तम्पि व्ययं अकत्वा खु. पा. अड. 146 सु. नि. अड. 1.247 - पद नपुं. कर्म, स. [अव्ययपद] अव्यय के रूप में प्रयुक्त पद, ऐसा पद, (शब्द) जिसका प्रयोग यदा-कदा 'अव्यय' के रूप में किया जाता हो दं नपुं. प्र. वि. ए. व.. एत्थ अत्थी ति अव्ययपदमिव सद्द. 2.451; - दानि ब. व. एवं अव्ययपदानि सर 3.321 पदसदिस त्रि. तत्पु. स. [अव्ययपदसदृक] उपरिवत् सं नपुं. प्र. वि. ए. व. एको एकाया ति इदं अव्ययपदसदिसं, सद्द० 1.264; पुब्बक त्रि. ब. स. [अव्ययपूर्वक]. ऐसा समास, जिसके पूर्वपद में कोई अव्ययपद रहेको पु. प्र. वि. ए. व. अव्ययपुब्बको अव्ययीभावो अव्ययपुरेचरो अव्ययप्पधानो .... होति, सद्द. 3.746.
अव्ययत नपुं. भाव [अव्यक्तत्व], अस्पष्ट, अविशद तं द्वि. वि. ए. व. क्रि. वि. असुस्पष्ट रूप से अव्ययतं विलपसि जा. अड. 1.473: अव्ययतं विलपसीति त्वं अब्यत्तविलापं विलपसि, तदे, पाठा. अब्ययतं. अव्ययीभाव / अब्ययीभाव पु० [ अव्ययीभाव], वह समास, जिसका समास से पूर्व का अव्ययभिन्न पद भी समास होने पर अव्यय बना दिया जाए, चार प्रमुख समास-भेदों में से एक समास सज्ञो पु. ब. स. प्र. वि. ए. व.
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