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अव्यापज्झाराम/अब्यापज्झाराम
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अव्यापार/अब्यापार
अब्यापज्जाधिमुत्तस्स उपादानक्खयस्स च, महाव. 257. अव्यापज्झाराम/अब्यापज्झाराम त्रि., [अव्यापादाराम]. अव्यापाद या अद्वेष में आनन्द अनुभव करने वाला, दुःख से पूर्ण विमुक्ति की अवस्था में रमने वाला - मो पु., प्र. वि., ए. व. - अब्यापज्झारामो होति, अ. नि. 2(2).132; अब्यापज्झे निढुक्खभावे रमतीति अब्यापज्झारामो, अ. नि. अट्ठ. 3.141;
अब्यापज्झारामो... तथागतो अब्यापज्झरतो, इतिवु. 24. अव्यापन्न/अब्यापन्न त्रि., वि + आ + पद के भू. क. कृ. का निषे. [अव्यापन्न], क. वह, जो दुर्भाग्य, विपत्ति या दुख से पीड़ित नहीं है, वह, जो विक्षिप्त या अस्त-व्यस्त नहीं है, ख. द्वेष या हिंसा के भाव से मुक्त - न्नो पु., प्र. वि., ए. व. - अब्यापन्नो सदा सतो, अ. नि. 1(2).37; - न्नं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - चित्ते गहपति, अब्यापन्ने कायकम्मम्पि अब्यापन्न होति, अ. नि. 1(1).297; - चित्त त्रि., ब. स. [अव्यापन्नचित्त], व्यापाद या हिंसामयी वृत्ति से मुक्त शुद्ध चित्त वाला - त्तो पु., प्र. वि., ए. व. - व्यापादपदोसं पहाय अब्यापन्नचित्तो विहरति, दी. नि. 1.63; - चेतस त्रि., ब. स. [अव्यापन्नचेतस्], उपरिवत् - सो पु., प्र. वि., ए. व. - अप्पतिट्टितचित्तो अदीनमानसो अब्यापन्नचेतसो, ..., स. नि. 3(1).90; अब्यापन्नचेतसोति दोसवसेन अपूतिचित्तो, स. नि. अट्ठ. 3.182. अव्यापाद/ अब्यापाद पु., वि + आ + पद के क्रि. ना.
का निषे. [अव्यापाद], अद्वेष, अहिंसक मनोभाव, द्वेष या हिंसा के अकुशल मनोभावों का अभाव, मैत्री-भावना - दो प्र. वि., ए. व. - अदुस्सितत्तं अब्यापादो ..., ध. स. 33; अब्यापादो अविहिंसा, विवेको यस्स आवुधं, स. नि. 3.16; अब्यापादोति मेत्ता च मेत्तापुब्बभागो च, स. नि. अट्ठ. 3.158; - दं द्वि. वि., ए. व. - अब्यापादं... मनसिकरोतो अब्यापादे चित्तं... विमुच्चति, दी. नि. 3.191; - देन त. वि., ए. व. - अब्यापादेन मेत्तापि ..., अभि. अव. 18; - खन्ति स्त्री., तत्पु. स. [अव्यापादक्षान्ति], द्वेषभाव से मुक्त क्षान्ति या सहनशीलता का भाव - अब्यापादखन्ति ब्यापादेन सुआ, पटि. म. 358; - धातु स्त्री., तत्पु. स., अद्वेष या मैत्रीभावना से प्रतिसंयुक्त तर्क, वितर्क, संकल्प आदि - अब्यापादपटिसंयुत्तो तक्को वितक्को... सम्मासङ्कप्पो - अयं वुच्चति अब्यापादधातु, विभ. 97; - पच्चय पु., तत्पु. स. [अव्यापादप्रत्यय], अद्वेष का कारण - या प. वि., ए. व. - अब्यापादपच्चया च दुक्खं दोमनस्सं पटिसंवेदेति, म. नि.
1.396; - पटिलाभ पु., तत्पु. स. [अव्यापादप्रतिलाभ]. अद्वेषभाव की प्राप्ति या लाभ - भो प्र. वि., ए. व. - अब्यापादपटिलाभो ब्यापादेन सुओ, पटि. म. 357; - पटिवेध पु., तत्पु. स. [अव्यापादप्रतिवेध], अद्वेष के विषय में अन्तर्दृष्टि - धो प्र. वि., ए. व. - अब्यापादप्पटिवेधो ब्यापादेन सुओ, पटि. म. 357; - परिग्गहो पु., तत्पु. स., प्र. वि., ए. व. [अव्यापादपरिग्रह], अद्वेष-भाव का पूर्ण रूप से ग्रहण - अब्यापादपरिग्गहो ब्यापादेन सुओ, पटि. म. 357; - परियोगाहण नपुं., तत्पु. स. [अव्यापादपर्यवगाहन], अद्वेषभाव में पूर्ण रूप से निमग्न होना या उसमें डूब जाना - णं प्र. वि., ए. व. - अब्यापादपरियोगाहणं ब्यापादेन सुज, पटि. म. 358; - वितक्क पु., तत्पु. स. [अव्यापादवितर्क], अद्वेष के विषय में मानसिक चिन्तन - क्को प्र. वि., ए. व. - अब्यापादवितक्को... निब्बानसंवत्तनिको, इतिवु. 60; - संकप्प पु., तत्पु. स. [अव्यापादसङ्कल्प]. अद्वेष या मैत्रीभाव के लिए लिया गया दृढ़-संकल्प - प्पो प्र. वि., ए. व. - ब्यापादतो निस्सटोति अब्यापादसङ्कप्पो, विभ. अट्ठ. 110; - सज्ञा स्त्री., तत्पु. स. [अव्यापादसंज्ञा], अद्वेष के विषय में संज्ञास्तरीय ज्ञान - अब्यापादधातुं भिक्खवे, पटिच्च उप्पज्जति अब्यापादसा , स. नि. 1(2).134; - सहगत त्रि., तत्पु. स., अद्वेष के साथ जुड़ा हुआ - तेन नपुं.. तृ. वि., ए. व. - अब्यापादसहगतेन
चेतसा विहरति, म. नि. 3.98; - दाधिट्ठान नपुं., तत्पु. स. [अव्यापादाधिष्ठान], अद्वेष के विषय में चेतना, अद्वेष या मैत्री-भावना के विषय में दृढ़-संकल्प - नं प्र. वि., ए. व. - अब्यापादाधिट्टानं ब्यापादेन सुझं पटि. म. 358; - दाधिपतत्त नपुं.. भाव. [अव्यापादाधिपतित्व], अद्वेष-भाव द्वारा सुनिर्धारित या नियन्त्रित होना, अद्वेष-भाव की प्रधानता - तत्ता प. वि., ए.व.- अब्यापादाधिपतत्ता पञआ ब्यापादतो सञआय विवद्वतीति... पटि. म.99; - देसना स्त्री., तत्पु. स. [अव्यापादेषणा], अद्वेष-भाव की तलाश - अब्यापादेसना ब्यापादेन सुआ, पटि. म. 357. अव्यापार/अब्यापार त्रि., ब. स. [अव्यापार], बिना काम काज वाला, बेकार, निरर्थक, काम में न आने योग्य - रो पु., प्र. वि., ए. व. - कायदण्डो निरीहो अब्यापारो, तथा वची दण्डो, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.41; - नय पु., तत्पु. स., चार प्रकार के अर्थनयों (अर्थ-निश्चायक पद्धतियों) में से तृतीय नय - यो प्र. वि., ए. व. - यस्मा पनेत्थ एकत्तनयों नानत्तनयो अब्यापारनयो, विभ. अट्ठ, 188; -
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