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अविस्सज्जनिय 649
अविहत हाथ से न छोड़ता हुआ - जं पु., प्र. वि., ए. व. - अददं अविस्सासिक त्रि., विस्सासिक का निषे., आत्मविश्वास से
अविस्सजे भोग, सन्धि तेनस्स जीरति, जा. अट्ठ. 3.221. रहित, दूसरों पर विश्वास न करने वाला - को पु., प्र. वि., अविस्सज्जनिय त्रि., वि + सज के सं. कृ. का निषे. ए. व. - यो कोचि अविस्सासिको अत्तनो पटिविरुद्धो पिच [अविसर्जनीय], नहीं त्यागने योग्य, समाधान न करने मित्तो नाम भवेय्य, सद्द. 2.494; - केन पु., तृ. वि., ए. व. योग्य, अचिन्तनीय - यो पु., प्र. वि., ए. व. - बुद्धविसयो - ... अविस्सासिकेन दिन्नकम्पि मारेतियेव, जा. अट्ठ. अविसज्जनीयो, नेत्ति. 150; - या स्त्री., प्र. वि., ए. व. - 1.370. पुग्गलपरोपर ता अविसज्जनीया, नेत्ति. 150.
अविस्सासिय त्रि., [अविश्वास्य], विश्वास न करने योग्य - अविस्सज्जित त्रि०, वि + vसज के भू. क. कृ. का निषे.. यो पु०, प्र. वि., ए. व. - एवं ... अविस्सासियो परित्तो [अविसृष्ट]. नहीं छोड़ा हुआ नहीं त्यागा हुआ, नहीं दान जीवितस्स अद्धाति ... अनुरसरितब्ब, विसुद्धि. 1.229, दिया किया हुआ, समाधान न किया हुआ, अचिन्तित - अविस्सासियो अविस्सासनीयो, विसुद्धि. महाटी. 1.278. तानि नपुं.. प्र. वि., ब. व. - विस्सज्जितानिपि अविह पु., [बौ. सं. अवृह, क. देवताओं का एक विशेष वर्ग अविस्सज्जितानि होन्ति, चूळव. 301.
- हा प्र. वि., ब. व. - अविहा, अतप्पा, सुदस्सा, सुदस्सी, अविस्सज्जित्वा वि + सज के पू. का. कृ. का निषे. अकनिट्ठा, दी. नि. 3.189; अविहा देवा .... म. नि. 3.145; [अविसृज्य], नहीं छोड़कर, अन्तर्भूत कर - नामरूपं -- हेहि त. वि. ब. व. - अविहेहि देवेहि सद्धि येन अतप्पा अविस्सज्जित्वाव नेसं धम्म देसेतुं वदृतीति, ध. प. अट्ठ. देवा तेनुपसङ्कमि, दी. नि. 2.40; - हानं ष. वि., ब. व. - 2.339;
अविहानं देवानं ..., कथा. 176; - हेसु सप्त. वि., ब. व. अविस्सट्ठ त्रि., वि + सज के भू. क. कृ. का निषे. - अयं वुच्चतीति अयं एवरूपो पुग्गलो अविहेसु ताव [अविसृष्ट], क नहीं छोड़ दिया गया, तिलाञ्जलि नहीं कप्पसहस्सप्पमाणस्स आयुनो .... पु. प. अट्ठ. 48; ख. दिया गया, नहीं भेज दिया गया, जाने हेतु अनुमति नहीं नपुं./पु., अवृह नामक देववर्ग का लोक - हं द्वि. वि., ए. दिया गया - टो पु., प्र. वि., ए. व. - परलोक न्ति एवं व. - तिण्णं धम्मानं अतित्तो, हत्थको अविहंगतो ति, अ. नि. अम्हेहि अविस्सटो, पे. व. अट्ठ. 54: ख, अस्पष्ट, अव्यक्त __ 1(1).314; अविहं उपपन्नासे, विमत्ता सत्त भिक्खवो, स. नि. - टुं नपुं., प्र. वि., ए. व. - अविसट्टम्पि होति अविद्येय्यं 1(1).40; - तो प. वि., ए. व. -- तत्थ यो अविहतो पट्ठाय तरमानस्स भासितं. म. नि. 3.283; --कम्मट्ठान त्रि., ब. स. चत्तारो देवलोके सोधेत्वा... अकनिहगामी नाम, पु. प. अठ्ठ [अविसृष्टकर्मस्थान], ध्यान के कर्मस्थान को नहीं छोड़ने 49; - हा प्र.वि., ए. व. - अविहा चुतो अतप्पंगच्छतीतिआदीस वाला, कर्मस्थान को नहीं त्यागने वाला - द्वानो पु., प्र. वि., अविहे कप्पसहस्सं वसन्तो... गच्छति, पु. प. अट्ठ. 48; - ए. व. - एको किर ... पटिपन्नको योगावचरो हाब्रह्मलोक पु.. [अवृहब्रह्मलोक], अवह देववर्ग का लोक
अविस्सडकम्मट्ठानो हुत्वा... चरन्तो... चलि. जा. अट्ठ. 1.290. - के सप्त. वि., ए. व.- कालङ्कतो च पन अविहाब्रह्मलोके अविस्सत्थ/अविस्सह त्रि., विस्सत्थ (विश्वास) का निषे. निब्बत्ति, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.226. [अविश्वस्त], विश्वास न करने योग्य, संदिग्ध आचरण । अविहञ्जमान त्रि., वि + हन, कर्म. वा., वर्त. कृ. का निषे. वाला- त्थे पु., सप्त. वि., ए. व. - न विस्ससे अविस्सत्थे, [अविहन्यमान], मानसिक बेचैनी से पीड़ित न रहने वाला, विस्सत्थेपि न विस्ससे, जा. अट्ठ. 1.371; - त्थो पु.. प्र. वि., मानसिक पीड़ा से मुक्त - नो पु.. प्र. वि., ए. व. - ता सुद ए. व. - यो पुब्बे सभयो अत्तनि अविस्सत्थो अहोसि, तस्मि .... सम्पजानो अधिवासेसि अविहञमानो, दी. नि. 2.77; अविस्सत्थे, जा. अट्ठ 1.371; - स्सट्ठा ब. व. - भिक्खू अविहञमानोहि वेदनानुवत्तनवसेन अपरापरं परिवत्तन अविस्सट्ठा परिभुञ्जन्ति, महाव. 288.
अकरोन्तो अपीळियमानो अदुक्खियमानोव अधिवासेसि, दी. अविस्सासनीय त्रि., वि + Vसस के सं. कृ. का निषे. नि. अट्ठ. 2.122. [अविश्वसनीय], विश्वास न करने योग्य -- यो पु., प्र. वि., अविहत त्रि., वि + Vहन या इहर के भू. क. कृ. का निषे. ए. व. - ... अकत मित्तदुभी अविस्सासनीयो, जा. अठ्ठ. [अविहत, अविहत], क. वह, जिस पर प्रहार नहीं किया 3.418; चारो मे पुराणसहायोति अविस्सासनीयो. म. नि. गया है या जिसे मारा नहीं गया है, ख. वह, जिसे दूर नहीं अट्ठ. (म.प.) 2.236.
ले जाया गया है या जिसे हटाया नहीं गया है - खाणुकण्टक
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