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अविरुहन
अविरुतिधम्मा इमस्मिं धम्मविनये, महाव. 110
स नपुं.
ताप.
भाव [अविरुद्धधर्मत्व] धर्म का सुदृढ़ न रहना वि. ए. व. अविरुब्धिमत्ता वा मत्थकच्छिन्नतालो विय कताति तालावत्सुकता, पारा. अड. 1.97 भाव पु.. उपरिवत्वं द्वि. वि. ए. व. अथस्स... पण्डुपलासस्स विय अविरुहिभावं दस्सेन्तो आरंभि. म. नि. अड. ( मू०प०) 1 ( 2 ).10.
अविरुहन त्रि, ब० स० [ अविरोह, पु० ], किसी प्रकार के अंकुरण अथवा उदय की प्रक्रिया से रहिता, ऐसा स्थान जहां कुछ भी न उग सके या न बढ़ सकेनं नपुं०, प्र. वि., ए. व. निब्बानं सब्बकिलेसानं अविरुहनं मि. प.
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294.
अविरोध पु. विरोध का निषे [ अविरोध ] शा. अ. विरोध या प्रतिकूलता का अभाव, अनुकूलता, सुसङ्गति, ला. अ. मैत्री भावना, अद्वेष घो प्र. वि. ए. व. अविरोधो दुष्यति मेत्ता म. नि. अ. (म.प.) 2.243 कर त्रि.. विरोध न करने वाला रेसु पु. सप्त वि. ब. व. - अविरोधकरेसु पाणिसु, पुथुसत्तेसु पदुट्टमानसो, पे. व. 480; अविरोधकरेसूति केनचि विरोधं अकरोन्तेसु मिगसकुणादीसु, पे. व. अड. 179, प्यसंसी त्रि. [अविरोधप्रशंसिन्]. शान्तिभावना की प्रशंसा करने वाला, मैत्रीभाव का प्रशंसक
2.282;
सिनं पु. ष. वि. ए. व. दिसा हि मे खन्तिवादानं, अविरोधप्पसंसिन, थेरगा. 875; ... अविरोधप्पसंसिनन्ति केनचि अविरोधभूताय मेत्ताय एव पसंसनसीलानं, थेरगा. अ लक्खण त्रि. ब. स. [अविरोधलक्षण], अविरोध या मैत्री भावना के लक्षणों से युक्त क्खणो पु.. प्र. वि.. ए. व. अविरोधलक्खणो वा अनुकुलमितो विय, अभि. अव. 21; अदोसो अचण्डिक्कलक्खणो, अविरोधलक्खणो वा अनुकूलमित्तो विय. ध. स. अड्ड. 172. अविरोधन नपुं उपरिवत् नं प्र. वि., ए. व. अक्कोध अविहिंसञ्च खन्तिञ्च अविरोधनं जा. अनु.
3.240.
645
अविरोधितापच्चुपद्वान त्रि. ब. स. [ अविरोधित्वप्रत्युपस्थान ]. विरोध के अभाव या मैत्रीभावना के रूप में प्रकाशित होने वाला / वाली - ना स्त्री. प्र. वि. ए. व. सब्बकिरियासु अविरोधितापच्चुपट्टाना, मुदुरुपपदद्वाना, अभि. अब 90. अविलङ्घनिय त्रि वि + √ल के सं. कृ. का निषे. [अविलङ्घनीय], अतिक्रमण नहीं करने योग्य, वह जिसे अभिभूत न किया जा सके या जिसका उल्लंघन न किया
अविवाद
जा सके या स्त्री. प्र. वि. ए. व. वोहारविसयरिमं हि लोकसम्मुति एवं पधाना अविलङ्घनिया, सर 1.72 अविलम्बित त्रि वि + √लम्ब के भू० क० कृ० का निषे... [ अविलम्बित ] विलम्ब न करने वाला, शीघ्रता से काम करने वाला तं नपुं. प्र. वि. ए. व. आसु तुण्णमर चाविलम्बितं तुवटं पि च, अभि. प. 40. अविलुत्त त्रि वि + √लुप के भू. क. कृ. का निषे [ अविलुप्त ]. नहीं लूटा हुआ, नहीं विलुप्त ते नपुं सप्त वि. ए. व.
अविलुत्ते विलुत्तसञ्ञी, पारा. 305; अविलुत्तेति एत्थ पन गव्यं भिन्दित्वा पराव्हावहारवसने अविलुत्तेति वेदित्तबं पारा.
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अड. 2.203.
अविलोपिय त्रि वि + √लुप के सं. कृ. का निषे [ अविलोप्य]. विलोपित या विनष्ट नहीं किए जाने योग्य नहीं लूटने योग्य यं नपुं. प्र. वि. ए. व. अविलोपियमहि अनन्तसुखदायक, सद्धम्मो० 311.
अविलोम नपुं० [अविलोमन् ], भेड़ का बाल - गोलोमाविलोमविसाण-दधितिलपिद्वादीनि च दुब्बा- सरभूतिणकादीन् विसुद्धि.
2.172.
म.
अविलोमेन्त त्रि., विलोम के ना. धा. के वर्त. कृ. का निषे. [अविलोमयत्] नहीं पलटता हुआ, विपरीत रूप में परिवर्तित नहीं कर रहा तो पु०, प्र. वि., ए. व. तस्मा... भगवतो देसनं अविलोमेन्तो लोकसम्मुतियं ठत्वाव चत्तारोमे..... नि. अट्ठ. ( मू०प.) 1(1).149. अविवट त्रि, विवट का निषे [ अविवृत], ढका हुआ, नहीं खुला हुआ, अनुद्घाटित टं नपुं. प्र. वि. ए. व. तस्स ते आयरमन्तो अविवटञ्चैव न विचरन्ति म. नि. 1.285. अविवदमान त्रि वि + √वद के वर्त. कृ. का निषे.. [ अविवदमान] विवाद या कलह न करता हुआ झगड़ा न करता हुआ नो पु.. प्र. वि. ए. क. समग्गो हि सहो सम्मोदमानो अविवदमानो एकुद्देसो फासु विहरतीति, पारा. 271; अविवदमानोति अयं धम्मो, नायं धम्मो ति एवं न विवदमानो, पारा. अट्ठ. 2.175.
अविवाद पु० [ अविवाद], विवाद या कलह का अभाव, सामञ्जस्य सहमति दंद्वि. वि. ए. व. विवाद भयतो - दिस्वा, अविवादञ्च खेमतो, अप. 1.7; दाय च. वि., ए. व.- अयम्पि... सङ्ग्रहाय अविवादाय सामग्गिया एकीभावाय संवत्तति दी. नि. 3.194 - भूमि स्त्री, निषे, स. [अविवादभूमि] विवादों या कलहों से रहित चित्त की अवस्था, निर्वाण की अवस्था मिं द्वि. वि. ए. व. एतम्पि
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