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अविमन
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अविरागी
अविमन त्रि., ब. स. [अविमनस्], अव्यग्र या शान्त मन वाला, मन की बेचैनी से मुक्त - ना स्त्री., प्र. वि., ए. व. - त्वं... इमस्मिं गेहे अविमना अभिरमस्सूति, पे. व. अट्ठ. 239. अविमुख त्रि., विमुख का निषे., तत्पु. स. [अविमुख, अप्रतिकूल, अनुकूल, अविपरीत, काम से मुंह न मोड़ने वाला - खा पु., प्र. वि., ब. व. - दासकम्मकरपोरिसा
अविमुखा कम्मं करोन्ति, अ. नि. 2(1).240. अविमुत्त त्रि., विमुत्त का निषे. [अविमुक्त], विमुक्ति नहीं पाया हुआ, छुटकारा नहीं पाया हुआ - त्तो पु., प्र. वि., ए. व. - उपयो, भिक्खवे, अविमुत्तो, अनुपयो, विमुत्तो, स. नि. 2(1).49; - स्स ष, वि., ए. व. - पुब्बे अविमुत्तस्स विमुत्तासा सा पटिप्पस्सद्धा, अ. नि. 1(1).132; - त्तं नपुं., प्र. वि., ए. व. - ... अविमुत्तञ्चेव चित्तं विमुच्चति, म. नि. 2.12. अविम्हापक त्रि., विम्हापक का निषे. [अविस्मापक], विस्मय में न डाल देने वाला, भौचक्का न कर देने वाला, धोखा- धड़ी न करने वाला - को पु., प्र. वि., ए. व. - अकुहकोति
अविम्हापको तीहि कुहनवत्थूहि, सु. नि. अट्ठ. 2.241. अवियग्गता स्त्री., वियग्ग के भाव. का निषे. [अव्यग्रता], समरसता, समरूप में क्रियाशीलता, सन्तुलन, सङ्गति - कच्चि यापनियं, भन्ते, वातानमवियग्गता, जा. अट्ठ. 7.106; वातानमवियग्गताति कच्चि ते सरीरे धातुयो समप्पवत्ता, वातानं व्यग्गता नत्थि, तत्थ तत्थ ... अत्थो, जा. अट्ठ. 7.107. अवियत्त त्रि., वियत्त का निषे. [अव्यक्त], अस्पष्ट, स्पष्ट रूप से प्रकाशित न किया गया/की गई - त्तायं स्त्री., सप्त. वि., ए. व. - मिलेछ अवियत्तायं वाचायं सद्द. 2.342. अवियोग पु.. [अवियोग], संयोग, पार्थक्य का अभाव, किसी के साथ जुड़ा रहना या किसी के साथ विद्यमान रहना - गे सप्त. वि., ए. व. - सन्तेपि च नेसं कत्थचि अवियोगे ओळारिकतुन पुब्बङ्गमद्वेन च... चेतसो... वितक्को, ध. स.. अट्ठ. 160. अवियोजित त्रि., वि + Vयुज के प्रेर, के भू, क. कृ. का निषे. [अवियोजित], (किसी से) अलग न किया हुआ, (किसी के साथ) जुड़ा या उसमें मौजूद - तं नपुं., प्र. वि., ए. व. - रुक्खतो पन अवियोजितं असुक्खं भूतगामो ति वुच्चति, दी. नि. अट्ट, 1.75. अविरज्झनवेधिता स्त्री., भाव. [अविराध्यनवेधित्व], बिना किसी चूक के लक्ष्य को बेध देना, अचूक निशानेबाजी -
ताय तृ. वि., ए. व. - कतहत्थेति अविरज्झनवेधिताय सम्पन्नहत्थे, जा. अट्ठ. 6.277. अविरज्झित्वा वि + Vराध के पू. का. कृ. का निषे. [अविराध्य], कोई चूक किए बिना, बिना त्रुटि के- यथा हि मग्गानन्तरं अविरज्झित्वाव फलं निब्बत्तति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).345. अविरत त्रि., वि + Vरम के भू. क. कृ. विरत का निषे. [अविरत], (से) बिलग न होने वाला, नहीं त्यागने वाला, निरन्तर जारी रखने वाला - तं अ., क्रि. वि., निरन्तर रूप में, लगातार - सततं निच्चमविरतानारतसन्ततमनवरतं च धुवं, अभि. प. 41; कायो रतो अविरतं व्यसनं परेति, तेल. 53; - त्त नपुं॰, भाव. [अविरतत्व], लगातारपन, किसी से बिलग न होना या उसे छोड़ न देना- त्ता प. वि., ए. व. - हत्थगते दण्डे ... पहारदानतो अविरतत्ता अत्तदण्डेस जनेसु निब्बुतं निक्खित्तदण्डं सु. नि. अट्ठ. 2.171. अविरति स्त्री., विरति का निषे. [अविरति]. बिलगाव का अभाव, लगाव - विरतिअविरतिवसेन, विसुद्धि. 1.11; विरमणं वा विरति, न विरतीति अविरति, विसुद्धि. टी. 1.30. अविरद्ध त्रि., वि+vराध के भू. क. कृ. का निषे. [अविराद्ध], नहीं चूक रहा, नहीं छोड़ रहा, नहीं त्यागा हुआ - द्धो पु., प्र. वि., ए. व. - मं विरज्झन्तोपि... सोळस च उस्सदनिरये अविरद्धोयेवाति वत्वा पक्कामि, जा. अह. 1.468; - द्धं नपुं., प्र. वि., ए. व. - तत्थ अपण्णकन्ति एकसिकं अविरद्धं निय्यानिक, जा. अह. 1.111; - कारण नपुं, कर्म. स. [अविराद्धकारण], सही कारण, दोषरहित तर्क - णं प्र. वि., ए. व. - ... पण्डितेहि पटिपन्नं एकांसिककारणं अविरद्धकारणं निय्यानिककारणं जा. अट्ठ. 1.111; - गाह पु., कर्म, स. [अविराद्धग्राह]. अनुकूल रूप में ग्रहण, पूर्ण रूप में ग्रहण - हं द्वि. वि., ए. व. - अपण्णकग्गाहं पन एकसिकग्गाहं अविरद्धग्गाहं गहितमनुस्सा ..., जा. अट्ठ. 1.107; - वेधी त्रि., [अविराद्धवेधिन्], बिना चूके लक्ष्य का वेध करने वाला, अचूक निशानेबाज - नो पु., प्र. वि., ब. व. - अक्खणवेधिनोति अविरद्धवेधिनो, जा. अट्ठ. 4.450. अविरलित त्रि., अविरल से व्यु. [अविरल], एक दूसरे से सटा हुआ, व्यवधान-रहित, सघन - तं नपुं., क्रि. वि., द्वि. वि., ए. व. - अविरलितं उदेनतं धातुया ताय दिस्वा, दा. वं. 4.24. अविरागी त्रि., विरागी का निषे. [अविरागिन]. शा. अ. रंगों से नहीं रंगा हुआ, रंग न बदलने वाला, ला. अ. राग या
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