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अविप्पटिसारी
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अविब्मन्त
अविप्पटिसारी त्रि.. विप्पटिसारी का निषे. [अविप्रतिसारिन]. मानसिक अनुताप न करने वाला, पश्चात्ताप के भाव से मुक्त - रिस्स पु., ष, वि., ए. व. - धम्मता एसा, ..., यं
अविप्पटिसारिस्स पामोज्जं जायति, अ. नि. 3(2).3. अविप्पमुत्त त्रि., वि + प + vमुच के भू. क. कृ. का निषे. [अविप्रमुक्त], पूरी तरह से मुक्त न होने वाला, वह, जो पूर्णरूप से मुक्त नहीं हो पाया है - ता पु., प. वि.. ब. व. - सब्बे ते अविप्पमुत्ता भवस्मा ति वदामि. उदा. 105-06; - त्त नपुं.. भाव. [अविप्रमुक्तत्व]. पूरी तरह से मुक्त न होना, छुटकारा न पाना - त्ता प. वि., ए. व. - निरयम्पि गच्छतीति आदि निरयादीहि अविष्पमुत्तत्ता अपरपरियायवसेन तत्थ गमनं सन्धाय वुत्तं, अ. नि. अट्ठ. 2.225. अविप्पयोग पु., विप्पयोग का निषे. [अविप्रयोग]. वियोग या बिछोह का न होना, अपार्थक्य, संयोग - मोदन्ति वत... हितसुखाविपयोगकामता मुदिता, सु. नि. अट्ठ. 1.102; - ता स्त्री॰, भाव. [अविप्रयोगता]. बिछोह या बिलगाव का न होना, अपार्थक्य - ... पियेहि मनापेहि सद्धि अविप्पयोगता दीघायुकताति एवमादीनि फलानि, ..., खु. पा. अट्ठ. 23. अविप्पवसन्त त्रि., वि+प+Vवस के वर्त. कृ., विप्पवसन्त का निषे. [अविप्रवसत्], घर से दूर या बाहर निवास नहीं कर रहा, परदेश में नहीं रह रहा - तो/न्तस्स पु., ष. वि., ए. व. - तरसेव सतो अविष्पवसतो, अञ्जस्सेव सरामि अत्तानन्ति, थेरगा. 118; अविप्पवसतोति न विप्पवसन्तस्स, चिरविप्पवासेन ... अधिप्पायो, थेरगा. अट्ठ. 1.256. अविप्पवास पु., विप्पवास (विप्रवास) का निषे. [अविप्रवास].
शा. अ. दूर या अन्यत्र निवास का न होना, पास में या साथ में विद्यमान होना, ला. अ. बिलगाव का न होना, संयोग, अपार्थक्य, सहभाव - सो प्र. वि., ए. व. - सो पनेस अत्थतो सतिया अविष्पवासो नाम ध, प. अट्ट, 1.130; - सेन त. वि., ए. व. - तेसं सतिया अविप्पवासेन सतानं ..., ध. प. अट्ट, 2.258; अविष्पवासेन अनापत्ति, परि. 398; अविप्पवासेन अनापत्तीति सहगारसेय्याय अनापत्ति, परि. अट्ठ. 240; - सं द्वि. वि., ए. व. - नमस्समानो विवसेमि रत्तिं तेनेव मामि अविप्पवासं सु. नि. 1148; या सा, भिक्खवे, सङ्घन सीमा सम्मता समानसंवासा एकुपोसथा, सङ्घो तं सीमं तिचीवरेन अविप्पवासं सम्मन्नतु, महाव. 137; - सा प. वि., ए. व. - सम्मता... तिचीवरेन अविप्पवासा ठपेत्वा गामञ्च गामूपचारञ्चाति इमिस्सा कम्मवाचाय
उप्पन्नकालतो पट्ठाय भिक्खून पुरिमकम्मवाचा न वट्टति, महाव. अट्ट. 313; - सीमा स्त्री., तत्पु. स. [अविप्रवाससीमा], भिक्षुओं के लिए सङ्घ द्वारा अनुमोदित आवासों की वह सीमा, जिसके भीतर पड़ने वाले विहारों में भिक्षु तीन चीवरों में से किसी एक को छोड़ने हेतु सङ्घ द्वारा अनुमोदित थे, इसी का दूसरा नाम समानसंवाससीमा भी है, पन्द्रह प्रकार की सीमाओं में से एक - यावतिका भिक्खू अन्तोसीमगता तेहि भाजेतब्बन्ति आदिम्हि पन मातिकानिद्देसे सीमाय देतीति ... खण्डसीमा, ..., अविप्पवाससीमा, ... चक्कवाळसीमाति पन्नरस सीमा वेदितब्बा, महाव. अट्ठ, 392; अविप्पवाससीमा पन यत्थ समानसंवासकसीमा, तत्थेव गच्छति, महाव. अट्ठ. 314; - मं द्वि. वि., ए. व. - तत्थ सचे खण्डसीमञ्च
अविप्पवाससीमञ्च जानन्ति, तदे.. अविप्पवुद्ध त्रि., वि + प + Vवस के भू. क. कृ. का निषे. [अविप्रोषित], परदेश में नहीं बसा हुआ, दूर न गया हुआ, समीप में ही विद्यमान, जुड़ा हुआ - 8ो पु., प्र. वि., ए. व. - तेनेव मआमि अविष्पवासन्ति ... अविष्पवासोति तं मामि, अविप्पवुट्ठोति तं मआमि जानामि चूळनि. 199; - सति त्रि., ब. स. [अविप्रोषितस्मृति], जागरुक स्मृति वाला, अविनष्ट स्मृति वाला, अप्रमादी - नो पु, ष. वि., ए. व. - अप्पमत्तरसाति अविप्पवुत्थसतिनो, ध. प, अट्ठ. 1.136. अविप्पसन्न त्रि., विप्पसन्न का निषे. [अविप्रसन्न], मलिन, अशुद्ध, अस्वच्छ - न्ने नपुं.. सप्त. वि., ए. व. - अप्पसन्नेति तायेव आविलताय अविप्पसन्ने, जा. अट्ठ.2.83; - चित्त त्रि., ब. स. [अविप्रसन्नचित्त], मलिन या दूषित चित्त वाला - त्तानं पु.. ष. वि.. ब. व. - अविप्पसन्नचित्तानव्हि इन्द्रियप्पसादो नाम नत्थि अ. नि. अट्ठ. 2.166. अविष्फारिकता स्त्री., अविफारिक का भाव. [अविस्फारितता], विस्तृत किया हुआ न होना, फैलाया हुआ न रहना, सङ्कुचित अथवा मन्द रहना, शिथिलता - य त. वि., ए. व. - लीनन्ति अविप्फारिकताय पटिकुटित, ध. स. अट्ट, 402; तत्थ पीळनं दुक्खसच्चस्स तंसमङ्गिनो हिंसनं अविष्फारिकताकरणं, उदा. अट्ठ. 17; - कभाव पु., उपरिवत् - वो प्र. वि., ए. व. - अनसनन्ति न असनं अविफारिकभावो कायालसियं दी. नि. अट्ट, 3.35. अविस्मन्त त्रि., वि + भिम के वर्त. कृ. का निषे. [अविभान्त]. विभ्रम या भौचक्केपन से रहित, घबराहट से रहित, असंयम से रहित – न्तं नपुं.. द्वि. वि., ए. व. - अथरस... निच्चलं अविमन्तं ... दिस्वा एतं, म. नि. अट्ट. (उप.प.) 3.216;
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