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अभिमद्दन 1(2).279; - हे विधि., प्र. पु.. ए. व. - नाभिहरे नाभिमद्दे न वाचं पयुतं भणे, अ. नि. 1(1).229; - द्दथ अद्य., प्र. पु., ए. व. - एवं विहरमानं म, मच्चुराजाभिमद्दथ, अप. 2.79. अभिमद्दन नपुं, अभि + मद्द का क्रि. ना. [अभिमर्दन], रगड़ना, कुचलना, दमन - नं द्वि. वि., ए. व. - सो हि पुरिसो विय... न पुंसेति अभिमदनं कातुं न सक्कोतीति नपुंसकोति वुच्चति, सद्द. 2.566; - द्दने सप्त. वि., ए. व. - पुस अभिमद्दने नकारो निग्गहीतत्थं, सद्द. 2.566. अभिमद्दित त्रि०, अभि + vमद्द का भू. क. कृ. [अभिमर्दित], कुचला हुआ, दमन किया हुआ, सम्मर्दित, रगड़ा हुआ - तं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - ताव मनोरमं बिम्ब, जराय अभिमद्दितं. स. नि. 3(2).293. अभिमन त्रि., [अभिमनस], वह, जो किसी की ओर अपने मन को किये हुए हो, किसी की ओर अभिमुख मन वाला - नो पु., - दुक्खा हि कामा कटुका महब्भया, निब्बानमेवाभिमनो चरिस्सं. थेरगा. 1125; निब्बानमेवाभिमनो चरिस्सं तस्मा निब्बानमेव उद्दिस्स अभिमखचित्तो विहरिस्सं. थेरगा. अट्ठ. 2.399. अभिमनाप त्रि., अतीव सुन्दर, रमणीय, रोचक, प्रीतिकर, सुखद, मनोहर - पेन पु./नपुं., तृ. वि., ए. व. - अभिक्कन्तेनाति अतिमनापेन, अभिरूपेनाति अत्थो, पे. व. अट्ठ. 60; - तर त्रि., तुल., विशे०, अपेक्षाकृत अधिक मनभावन - रं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अभिक्कन्ततरन्ति
अभिमनापतरं अतिसेहतरन्ति, दी. नि. अट्ठ. 1.141. अभिमन्थति/अभिमत्थति अभि + मन्थ का वर्त.. प्र. पु.. ए. व. [अभिमन्थति, अभिमथ्नाति], शा. अ. रगड़ देता है, कुचल देता है, पीस देता है, ला. अ. पीड़ित करता है, उत्पीड़ित करता है, विनष्ट करता है - अभिमत्थति दुम्मेधं वजिरंवस्ममयं मणि ति, ध. प. 161; अभिमत्थति कन्तति विद्धसेतीति, ध. प. अट्ठ. 2.84; - त्थथ म. पु., ए. व. -- बाला कुमुदनाळेहि, पब्बतं अभिमत्थथ, स. नि. 1(1).149; - त्थं वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. - स्वस्स गोमयचुण्णानि अभिमत्थं तिणानि च जा. अट्ठ.6.200; अभिमत्थन्ति हत्थेहि घंसित्वा आकिरन्तो..., जा. अट्ठ. 6.201; - न्थेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - बलवा पुरिसो तिण्हेन सिखरेन मुद्धनि अभिमन्थेय्य, म. नि. 1.312; - त्थियमानो भा. वा., वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. - मत्थको सिखरेन अभिमत्थियमानो विय जातो, जा. अट्ठ. 4.413; - मन्थेन्तो प्रेर., वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व., पूर्ण शक्ति लगाकर मथ रहा या रगड़
अभिमुखं रहा - अमु अल्लं कहूँ ... उत्तरारणिं आदाय अभिमन्थेन्तो
अग्गिं अभिनिब्बत्तेय्य, म. नि. 2.437. अभिमान पु.. [अभिमान], क. दर्प, अहङ्कार, घमण्ड, गर्व ख भ्रान्त धारणा - गब्बो भिमानो हङ्कारो, अभि. प. 171; - नेन तृ. वि., ए. व. - अभिवदतीति अभिमानेन उपवदति, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.16; - वसीकत त्रि., प्र. वि., ए. व. [अभिमानवशीकृत], घमण्ड या अभिमान के वश में रहने वाला - ता पु.. प्र. वि., ब. व. - पदुट्ठमनसङ्कप्पा
अभिमानवसीकता, चू. वं. 74; 135. अभिमानी त्रि., [अभिमानिन] घमण्डी, अहङ्कारी, हेकड़ी भरने वाला, अक्खड़, महत्त्वाकांक्षी - ततो अभिमानी सेनानी सेनं सो तत्थ पेसयि, चू, वं. 57.55;-निनो ब. व. - पधानामच्चसामन्तभटादिस्वभिमानिनो, चू. वं. 66.142. अभिमार' पु., बुद्ध की हत्या का प्रयास करने वाला, बुद्ध का वधिक या गुप्तघाती - रे द्वि. वि.. ब. व., गुप्तघातियों या छलघातियों को - अभिमारे पेसेत्वा धनपालं मुञ्चापेत्वा .... दी. नि. अट्ठ. 1.127; - पयोजन नपुं.. गुप्तघाती का प्रयोजन - ना प. वि., ए. व. - देवदत्तस्स वत्थु याव अभिभारप्पयोजना
खण्डहालजातके आविभविस्सति, जा. अट्ठ. 1.147. अभिमार पु., मार की एक उपाधि - खेरभेरोरभिमारभेखे,
खेरभेरेखि भेखे खे, जिना. 98. अभिमुख त्रि., [अभिमुख], वह, जो किसी की ओर मुख किये हुए हो, की ओर, किसी की ओर मुड़ा हुआ, सामने क. द्वि. वि. में अन्त होने वाले नामपद के साथ अन्वित - खो पु., प्र. वि., ए. व. - गिरिमारञ्जरं पतीति आरञ्जरं नाम गिरि अभिमुखो हुत्वा .... जा. अट्ठ. 7.244; ख. प. वि. में अन्त होने वाले पद के साथ अन्वित- खं नपुं., प्र. वि., ए. व. - एकदिवसेनेव देवगणं अत्तनो अभिमुखमकासि. म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.225; - खा पु.. प्र. वि., ब. क. - नाभिजवन्तीति न सुमुखभावेन अभिमुखा जवन्ति, सु. नि. अट्ठ. 2.181; स. उ. प. के रूप में अन्तोगेहा., अन्तोविहारा., अस्समा., आगतमग्गा., आरम्मणा., आरामा., उत्तरदिसा., उत्तरा., उय्याना., कम्मट्ठाना., कामा. आदि के अन्त. द्रष्ट.. अभिमुखं निपा., [अभिमुखम्], आगे की ओर, किसी दिशा में, के सामने, की उपस्थिति में, के निकट - तदा पन बाराणसिरओ मत्तवारणेपि अभिमुखं आगच्छन्ते ..., जा. अट्ठ. 1.255; स. उ. प. के रूप में आघातना.. आपणा., उत्तरा.. गगनतला., पुरत्था., भूमितला. तथा सिविरट्ठा. के अन्त. द्रष्ट..
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