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अरञ्ञज
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नि. 39. ज्ञायतन नपुं. [ अरण्यायतन] जङ्गली निवास स्थल, वन में बना हुआ आवास ने सप्त. वि., ए. व. एकस्मिं अरज्ञायतने फलानि खादन्तो वसति, जा. अट्ठ 1.174 कुटिका स्त्री. तत्पु. स. [ अरण्यकुटिका ], वन में बनाई हुई कुटी कार्य / काय सप्त. वि. ए. व. हिमवन्तपदे से अरजकुटिकाय ओतरि ध. प. अ. 2.356: कोसलेसु विहरन्ति हिमवन्तपस्से अरज्ञकुटिकाय उद्धता स. नि. 1(1).75; हिमवन्तपदेसे अरञ्ञकुटिकायं विहरन्तो मार आरम्भ कधेसि घ. प. अड. 2298 कोक पु. जङ्गली कुत्ता, भेड़िया का प्र. वि. ब. व. सुनखमंसन्ति एत्थ अरज्ञकोका नाम सुनखसदिसा होन्ति, महाव, अड्ड 355: गत तत्पु, स. [ अरण्यगत], वन में विद्यमान, जङ्गल में गया हुआ - तो पु०, प्र. वि., ए. व. - अरञगतो वा रुक्खमूलगतो वा .... इति पटिसञ्चिक्खति म. नि. 1.405; अरज्ञगतो वा रुक्खमूलगतो वा सुञ्ञागारगतो वा पारा. 83 त पु. द्वि. वि. ए. व. अरञ्ञगतं वा तं' सुञगारतं वा, अ. नि. 2 ( 2 ) .67; - तं नपुं. प्र. वि., ए. व. अरज्ञगतं अरज्जे नस्सति म. नि. अड. (उप.प.) 3. 187 - गतसञ्ञी त्रि. शा. अ. वन में जाकर एकान्तसेवन की बात सोचने वाला, ला. अ. चित्त को क्लेशों से मुक्त एवं विशुद्ध बनाने की इच्छा करने वाला, अनासक्तिभाव के विकास का प्रबल संकल्प करने वाला - ञ्ञिनो पु., ष. वि., ए. व. एवं अरञ्ञगतसञ्ञिनो नेक्खम्मसङ्घप्पबहुलस्साति अत्थो, थेरगा. अ. 1.238 - गतसुदेशक त्रि.. जङ्गल में कुशल मार्गदर्शक को फु.. प्र. वि., ए. व. असम्मोहपच्युपद्वाना अरजगतसुदेशको अभि. अव. 21 अरञ्जगतसुदेसको दिय अरजे गतो मग्गसुदेसको विय, अमि, अव. पु. टी. 18; गामक पु०, [अरण्यग्रामक], जंगल में स्थित छोटा सा गांव के सप्त वि. ए. व. एकस्मिं अरज्ञगामके पिण्डाय चरन्ति म. नि. अट्ट. ( मू.प.) 1 (2) 277 गोण पु. तत्पु, स. जंगली बैल णा प्र. वि. ब. व. गोणसिराति अरज्ञगोणा, जा. 31. 7.306.
अरज्ञज त्रि. [ अरण्यज], वन में उत्पन्न जो पु०प्र० वि. ए. व. गामिकेहि अरज्ञजोति जा. अड. 5.102: जा ब. व. अपि रुक्खा अरञ्ञजा, जा. अट्ट. 1.314; जातक नपुं०, जा. अट्ठ का एक कथानक, जा० अ० 3.128 128 ज्झासय त्रि.. व. स. [ अरण्याध्याशय ]. शा. अ. वन के एकान्तवास में मानसिक अभिरुचि रखने वाला,
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अरजपीति
ला. अ. एकान्तप्रेमी, लगावरहित चित्त के विकास में अभिरुचि रखने वाला या पु०, प्र. वि., ब. व. - बुद्धा नाम अरञ्ञज्झासया अरञ्ञारामा, उदा. अट्ठ. 331; - ञ्ञटु त्रि., [अरण्यस्थ] वन में स्थित जङ्गल में मौजूद ' नपुं. प्र. वि. ए. व. अहं नाम भण्डं अरज्ञे चतूहि ठानेहि निक्खित्तं पारा 58: दुग् नपुं. द्वि. वि. ए. व. अरऋटुं भण्डं अवहरिस्सामीति श्रेय्यचित्तो दुतियं वा परियेसति गच्छति वा पारा. 58; टुकथा स्त्री. तत्पु. स. पारा अड के एक भाग का शीर्षक, पारा. अट्ठ 1.275: ज्ञद्वान नपुं तत्पु. स० [अरण्यस्थान], जङ्गली स्थान, वन क्षेत्र ने सप्त. वि., ए. व. - अरञ्ञट्टाने पञ्चसता पेसनकचोरा नाम पन्थघातं
पारा. अड. 1.275.
जा. अट्ठ. 1.246; छायूदकसम्पन्ने अरञ्ञद्वाने वासं उपगच्छंसु, पे. व. अट्ठ. 27 - निदानक त्रि. ब. स. वन में निवास पर आधारित (बुद्ध के) अरण्यनिवास के साथ जुड़ा हुआ कं नपुं. प्र. वि., ए. व. अरअनिदानक नामेतं सुत्तन्ति म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1 (2) 144: पाल पु.. [ अरण्यपाल ] वन का रक्षक ला प्र. वि. क. क अरञ्ञपाला च मयं... तापसानञ्च भागं अगण्हन्ता, पारा. अट्ठ. 1.275; लानं ष. वि. ब. व. अरज्ञपालानं देय्यधम्मं दत्वा अरञपीति स्त्री, तत्पु. स. [ अरण्यप्रीति], वन में रहने की सुखदायक अनुभूतिति प्र. वि. ए. व.सहं सुणतो अरञ्जरति नाम उप्पज्जतीति अ. नि. अट्ट. 1. 177, पाठा. अरज्ञरति - बिकार पु. तत्पु, स. [ अरण्यबिडाल]. जंगली बिल्ली रा.प्र.वि. ब. व. विकारात अरबिळारा जा. अड. 7.169 भूत त्रि [अरण्यभूत] जंगल हो चुका, वन में बदल चुका तं नपुं. प्र. वि. ए. व. दण्डकीरज्ञ कालिङ्गारज्ञ... मातङ्गारज्ञ अरअं अरসभूत ति म. नि. 2.47 - भूतभाव पु, वन बन जाना, जंगल के रूप में दिखलाई पड़ना वो प्र. वि. ए. क मज्झारज्ञस्स अरज्ञभूतभावो वेदितब्बो म. नि. अड. (म.प.) 2.63; - मास पु., तत्पु. स. [ अरण्यमाष]. जंगली उड़द का पौधा, जंगली उड़द का बीज या फल सा प्र. वि., ब.व. केणूति अरज्ञमासा, जा. अड. 5.402 लक्खण नपुं.. [ अरण्यलक्षण], जंगल का विशिष्ठ चिह्न, जंगल की पहचान का विशेष लक्षण, केवल स. प. के रूप में प्रयुक्त पञ्चधनुसतिक पच्छिमन्ति वुत्तअरज्ञलक्खणयोगतो अर
थेरगा. अट्ठ. 1.96; वग्ग पु., अ. नि. के एक वर्ग का शीर्षक, अ. नि. 2 (1) 204-206: वनपत्थ नपुं॰, द्व॰ स
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