Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 616
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अलमत्थदस 589 अलम्बुसा नि. अट्ठ. 3.121; - तर त्रि., तुल. विशे., अधिक योग्य, विसेस पु., तत्पु. स., उत्तम ज्ञान एवं दर्शन की क्षमता की अधिक समर्थ, अधिक निपुण - तरा पु., प्र. वि., ब. व. - सबसे उत्कृष्ट अवस्था - सो प्र. वि., ए. व. - नत्थि तुम्हे तेन पण्डिततरा च ब्यत्ततरा च बहुस्सुततरा च समणस्स गोतमस्स उत्तरिमनु स्सधधम्मा अलमत्थतरा च, चूळव. 2; अलमत्थतराति समत्थतरा, चूळव. अलमरियाणदस्सनविसेसो, म. नि. 1.99; अलमरियो च अट्ठ. 1. सो जाणदस्सनविसेसो चाति अलमरियाणदस्सनविसेसो, अलमत्थदस त्रि., [अलमर्थदक], हितकारी या उपयोगी म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).334; - सं द्वि. वि., ए. व. -- बातों को देखने में समर्थ (ऋषि)- सा पु.. प्र. वि., ब. व. इरियाय ताय पटिपदाय ताय दुक्करकारिकाय नाज्झगमं - अलमत्थदसतरेहीति एत्थ अत्थे पस्सितुं समत्था उत्तरि मनुस्सधम्मा अलमरियाणदस्सनविसेसं. म. नि. अलमत्थदसा, ते अतिसित्वा ठिता अलमत्थदसतरा, अ. नि. 1.115. अट्ठ. 2.359; - दसतर त्रि., तुल. विशे०, हितकारक बातों अलंपञ त्रि., ब. स. [अलंप्रज्ञ], समझदार, परिपक्व बुद्धि को देखने में अधिक समक्ष या समर्थ - तरो पु., प्र. वि., वाला - ओ पु., प्र. वि., ए. व. - यतो च खो, भिक्खवे, ए. व. - अलमत्थदसतरो चेव पितरा, येपिस्स पिता अत्थे सो कुमारो बुद्धो होति अलंपओ, अ. नि. 2(1).6; अलपओ अनुसासि, तेपि जोतिपालस्सेव माणवस्स अनुसासनिया ति, ति युत्तपञो, अ. नि. अट्ठ. 3.3. दी. नि. 2.170; अलमत्थदसतरोति समत्थो पटिबलो अत्थदसो अलंपतेय्य स्त्री., पति प्राप्त करने हेतु उपयुक्त आयु वाली, अलमत्थदसो, त अलमत्थदसं तिरेतीति अलमत्थदसतरो, विवाह करने योग्य आयु को प्राप्त नारी- य्या प्र. वि., ब. दी. नि. अट्ट. 2.227. व. - मनुस्सेसु पञ्चवस्सिका कुमारिका अलंपतेय्या अलमत्थविचिन्तक त्रि., [अलमर्थविचिन्तक], हितकारक भविस्सन्ति, दी. नि. 3.52; अलंपतेय्याति पतिनो दातुं युत्ता, एवं उपयोगी बातों का निश्चय करने में सक्षम - कं पु.. दी. नि. अट्ठ. 3.33. द्वि. वि., ए. व. - पण्डितं वत में सन्तं, अलमत्थविचिन्तक, अलम्बत्थना/अलम्बत्थनी स्त्री०, ब. व॰ [अलम्बसस्तनो], थेरगा. 252; अलमत्थविचिन्तकन्ति अत्तनो च परेसञ्च अत्थं । वह नारी, जिसके स्तन नीचे की ओर लटके हुए न हो, हितं विचिन्तेतुं समत्थं, अलं वा परियत्तं अत्थस्स विचिन्तक कठोर स्तनों वाली युवती - नियो द्वि. वि., ब. व. - किलेसविद्धसनसमत्थं अत्थदस्सिनं वा, सब्बमेतं अत्तनो महासत्तस्स पन अतिदीघादिदोसवज्जिता अलम्बत्थनियो अन्तिमभविकताय थेरो वदति, थेरगा. अट्ठ. 1.405. मधुरथञायो चतुसट्टि धातियो अदासि, जा. अट्ठ. 6.3; - अलमरिय त्रि.. कर्म. स., आर्य होने में सक्षम, आर्य की ता स्त्री., भाव. [अलम्बस्तनता], स्तनों के लटकते न रहने पहचान करने में सक्षम, आर्य बनाने वाली बातों को जानने की स्थिति में होना, स्तनों का कठोर होना - अनुन्नतकुच्छिता में समर्थ - यो पु., प्र. वि., ए. व. - तत्थ अलमरियं छट्टो अलम्बत्थनता सत्तमो, अपलितभावो अट्ठमो, जा. अट्ठ. आतुन्ति अलमरियो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).334; - या 7.232. ब. व. - ये इमेसं भवतं धम्मा अकुसला अकुसलसङ्घाता, अलम्बित त्रि., Vलम्ब के भू. क. कृ. लम्बित का निषे०, वह, सावज्जा सावज्जसताता, असेवितब्बा असेवितब्बसङ्घाता, न जिसकी प्रगति में कोई बाधा नहीं डाली गई है, बिना अलमरिया न अलमरियससाता, कण्हा कण्हसवाता ..., दी. हिचकिचाहट वाला - तं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अहापेत्वा नि. 1.148. अलम्बित्वाति अपरिहीनं अलम्बितं कत्वा, अ. नि. अट्ठ. 2.311. अलमरियाणदस्सन त्रि., उत्तम ज्ञान एवं दर्शन को प्राप्त अलम्बित्वा लिम्ब के पू. का. कृ., प्रेर. लम्बित्वा का निषे., करने में सक्षम - नं नपुं., द्वि. वि., ए. व. - यो पन भिक्खु बिना देरी के, बिना बाधा या हिचकिचाहट के - अहापेत्वा अनभिजान उत्तरिमनु स्सधाम्म अत्तु पनायिक अलम्बित्वा परिपूरं वित्थारेन परस्स अवण्णं भासिता होति, अलमरियजाणदस्सनं समुदाचरेय्य, पारा. 110; 111; अ. नि. 1(2).89; अहापेत्वा अलम्बित्वाति अपरिहीनं अलम्बितं अलमरियाणदस्सनन्ति एत्थ लोकियलोकुत्तरा पञा कत्वा, अ. नि. अट्ठ. 2.311. जाननढेन आणं, चक्खुना दिट्ठमिव धम्म पच्चक्खकरणतो अलम्बुसा स्त्री., एक अप्सरा का नाम - सं द्वि. वि., ए. व. दरसनडेन दरसनन्ति आणदरसनं. ... तत्थ येन आणदस्सनेन - 'देवकज पराभेत्वा, सुधम्मायं अलम्बु सन्ति ... सो अलमरियजाणदस्सनोति वुच्चति, पारा. अट्ठ. 2.73; - पण्डुकम्बलसिलासने निसिन्नो तं अलम्बुसं पक्कोसापेत्वा For Private and Personal Use Only

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