Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अविग्गह
627
अविचल
वह, जिसके चित्त से तृष्णा नष्ट नहीं हुई है - हा पु.. प्र. अविघात पु.. विघात का निषे. [अविघात], हानिरहितता, वि., ब. व. - अवीततण्हा अविगततण्हा अचत्ततण्हा दुःख का अभाव, स्वस्थता, कुशलता - तो पु., प्र. वि., ए. अवन्ततण्हा , महानि. 34-35; - पच्चय पु., कर्म. स. व. - यस्मा च खो, आवुसो, कुसले धम्मे उपसम्पज्ज [अविगतप्रत्यय], नष्ट नहीं हुआ कारण या प्रत्यय-यो प्र. विहरतो, दिढे चेव धम्मे सुखो विहारो अविघातो..., स. नि. वि., ए. व... पञ्चविधो होति अस्थिपच्चयो अविगतपच्चयो 2(1).8; तत्र अविघातोति निढुक्खो , स. नि. अट्ठ. 2.228; - च, अभि. ध. स. 59; - यता स्त्री., भाव., प्र. वि., ए. व. तं नपुं., द्वि. वि., ए. व., क्रि. वि. - दिडेव धम्मे सुखं [अविगतप्रत्ययता]. प्रत्यय या कारण का समाप्त न होना, विहरति अविघातं अनुपायासं अपरिळाह, अ. नि. 1(1).234; प्रत्यय का विद्यमान रहना - अत्थिपच्चयभावोति नत्थि - पक्खिक/पक्खिय त्रि., [अविघातपक्षीय], सुख या निब्बानस्स सब्बदा भाविनो अस्थिपच्चयता, अभि. ध. वि. कल्याण के पक्ष के साथ जुड़ा हुआ - को पु., प्र. वि., ए. 219; - पेम त्रि., ब. स. [अविगतप्रेमन], वह, जिसका प्रेम व. -- पावुद्धिको अविघातपक्खिको निब्बानसंवत्तनिको, मिटा नहीं है, प्रेम को जारी रखने वाला - मो पु., प्र. वि., म. नि. 1.164; न दुक्खकोट्ठासाय संवत्ततीति ए. व. - ... आयतिञ्च सिक्खासमादाने अविगतपेमो, अ. नि. अविघातपक्खिको, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).396; - क्खिका 2(2).166; दी. नि. 3.199; -विमति त्रि., ब. स. [अविगतविमति], ब. व. -- ... सत्त बोज्झङ्गा चक्खुकरणा जाणकरणा पञआबुद्धिया सन्देह या शङ्का को नहीं नष्ट किया हुआ, संशयालु, शङ्कालु - अविघातपक्खिया निब्बानसंवत्तनिकाति, स. नि. 3(1).119. ती पु., प्र. वि., ब. व. - ते पत्वाख्यातसद्दे अविगतविमती होन्ति । अविघातव त्रि., वि + Vहन के प्रेर. का निषे., हानि से रहित,
आणी पि, सद्द. 1.13 -- सोक त्रि., ब. स. [अविगतशोक], वह, बाधाओं से मुक्त, विक्षेप रहित, एकाग्रचित्त, सुखमय, समाहित जिसके चित्त का शोक अभी तक नहीं मिटा है, शोक से पीड़ित - सतो च होति अप्पिच्छो, सन्तहो अविघातवा, थेरगा. 899; मन वाला - कानं पु, ष. वि., ब. व. -- जीवसोकिनन्ति चित्तस्स विघातकरं विक्खेपं पहाय अविघातवा अविक्खित्तो अविगतसोकानं अरसे वसन्तानं.... जा. अट्ठ. 7.368. समाहितो, थेरगा. अट्ठ. 2.291. अविग्गह 1. पु., विग्गह (कलह) का निषे०, तत्पु. स. अविघाती त्रि., विघाती का निषे. अविघातिन]. विक्षेप न [अविग्रह], अकलह, झगड़ा झंझट का अभाव - हो प्र. वि., करने वाला, चित्त की व्याकुलता न लाने वाला, बाधाओं से ए. व. -- इति अभण्डनं इति अविग्गहो इति अकलहो, स. रहित, प्रतिघात न करने वाला - अविघाती दिसा सब्बा, नि. 1(1).259; 2. त्रि., विग्गह (शरीर) का निषे., ब. स. सीलगन्धो पवायति, विसुद्धि. 1.55; अविघातीति अप्पटिघाती, [अविग्रह], शा. अ. अशरीरधारी, अनङ्ग, ला. अ. कामदेव विसुद्धि. महाटी. 1.80. - हो पु.. प्र. वि., ए. व. - अविग्गहो तु कामो च मनोभू अविचक्खण त्रि., विचक्षण का निषे॰ [अविचक्षण], अचतुर, मदनो भवे, अभि. प. 42; - क त्रि., ब. स., द्वेषभाव से मन्द बुद्धि, मूर्ख -- णो पु., प्र. वि., ए. व. - अवकुज्जपओ रहित, कलह से मुक्त, शरीररहित, अशरीरी, अभौतिक - कं पुरिसो दुम्मेधो अविचक्खणो, अ. नि. 1(1).154; नपुं., द्वि. वि., ए. व. - उपेति चाविग्गहकम्पदं पदं, अभि. अविचक्खणोति संविदहनपञआय रहितो, अ. नि. अट्ठ. अव. 174; अविग्गहकम्पदं पदं अविग्गहकं सरीररहितं पदं । पटिपज्जितब्बं ञातब्बं पदं निब्बानं उपेति पापुणाति च, अविचल त्रि.. [अविचल], शा. अ. नहीं हिलने डुलने अभि. अव. पु. टी. 114; अविग्गहकम्पदन्ति विग्गहञ्च वाला, अचल, ला. अ. स्थिर चित्त, चित्त की चञ्चलता से कम्पञ्च न देतीति अविग्गहकम्पदन्ति अत्थो, अभि. अव. रहित - लाय स्त्री., तृ. वि., ए. व. - तेसु अविचलाय अभि. टी. 2.270.
मेत्ताय पुब्बकारिनो होन्ति, विसद्धि. 1.315; अविचलायाति अविग्गहीत त्रि., विग्गहीत का निषे. [अविगृहीत], अलग- पटिपक्खेन अकम्पनीयाय, विसुद्धि. महाटी. 1.368; - अलग करके उदित न होने वाला, अविभिन्न, एक पिण्ड के लाधिद्वान त्रि., ब. स. [अविचलाघिष्ठान], सुदृढ़ या रूप में एकीकृत - तट्ठ पु., अलग-अलग न होने का अर्थ अडिग संकल्प वाला - ना पु., प्र. वि., ब. व. - तेसं - तद्वेन तृ. वि., ए. व. - चित्तं पन नो हितद्वेन निरन्तरतुन हितसुखाय अविचलाधिट्टानाति होन्ति, विसुद्धि. 1.315; अविग्गहढेन समग्गटेन एकमेवाति दस्सेति, म. नि. अट्ठ. अविचलाधिट्ठानाति यथासमादिन्नेसु दानादिधम्मेस निच्चलाधि (मू.प.) 1(2).139.
द्वायिनो अचलसमादानाधिद्वाना, विसुद्धि. महाटी. 1.368.
2.99.
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761