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अविनय
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अविनिब्भुत्त अविनय पु.. [अविनय], दुराचार, विनय का अभाव, असंयत __- न त्रि., ब. स., कभी विनष्ट न होने वाला, अविनाशी
आचरण - यो प्र. वि., ए. व. - पुरे अविनयो दिप्पति स्वभाव वाला - नं पु., द्वि. वि., ए. व. - पविभत्तं इमं थेर विनयो पटिबाहिय्यति, चूळव. 453; पारा. अट्ट, 1.6; - यं सद्धम्म अविनासनं, दी. वं. 4.21. द्वि. वि., ए. व. - ये ते, भिक्खवे, भिक्खू अविनयं विनयोति अविनासितज्झान त्रि., ब. स. [अविनाशितध्यान], वह, दीपेन्ति, अ. नि. 1(1).25, धम्म धम्मोति वदामि, अविनयं जिसने ध्यान को भग्न या विनष्ट नहीं किया है, ध्यान को अविनयतोति वदामि, चूळव. 464; - ये सप्त. वि., ए. व. न त्यागने वाला - नो पु., प्र. वि., ए. व. - बहि -- यो च अविनये विनयसञी, यो च विनये अविनयसञी. अनीहटज्झानो, अविनासितज्झानो वा, नीहरणविनासत्यहि अ. नि. 1(1).103; - कम्म नपुं.. तत्पु. स. [अविनयकर्मन्]. इदं निराकरणं नाम, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).166; - ना विनय नियमों से विपरीत आचरण, विनय-विरुद्ध कार्य - ब. व. - अनिराकतज्झानाति बहि अनीहतज्झाना म्म प्र. वि., ए. व. - अधम्मकम्मं तं उपालि, अविनयकम्मन्ति, अविनासितज्झाना वा. इतिवु. अट्ठ. 147. महाव. 424, - म्मानि ब. व. - अविनयकम्मानि पवत्तन्ति अविनिच्छयञ्ज त्रि. विनिच्छयञ्जू का निषे. [अविनिश्चयज्ञ]. विनयकम्मानि नप्पवत्तन्ति, ... अविनयकम्मानि दिप्पन्ति, अ. निश्चय करने में असमर्थ, निर्णय में अक्षम - अविनिच्छयञ्ज नि. 1(1),90; - धारिता स्त्री., भाव. [अविनयधारित्व], अत्थेसु, मन्दोव पटिभासि में, जा. अट्ठ. 5.361. विनय-नियमों में अशिक्षित होना, विनय को धारण न करना अविनिच्छित त्रि., वि + नि + चि के भू. क. कृ. का निषे. - य त. वि., ए. व. -. अविनयधारिताय मजे त्वं अजानन्तो [अविनिश्चित], निश्चय नहीं किया हुआ, अनिर्णीत, एवं वदेसी ति, ध. स. अट्ठ, 30; - वादी त्रि.. [अविनयवादिन], समाधान नहीं किया गया, उलझन भरा - सकलजम्बुदीपे विनय के विपरीत बातें बोलने वाला - भिक्खू एवमाहंसु- किर अविनिच्छितो पहो मम सन्तिकं आगतो, जा. अट्ठ. 5.59. अधम्मवादी देवदत्तो, अविनयवादी देवदत्तो, पारा. 2743; अविनिपातधम्म त्रि., विनिपातधम्म का निषे. अकालवादी अभूतवादी अनत्थवादी अधम्मवादी अविनयवादी, अविनिपातधर्मन]. नरक जैसी दुखदायक अधोगतियों में म. नि. 1.360; - दिनो ब. व. -- पुरे अविनयवादिनो जन्म न लेने वाला - म्मो पु०, प्र. वि., ए. व. - सो बलवन्तो होन्ति, विनयवादिनो दुब्बला होन्तीति, चूळव. सोतापन्नो अविनिपातधम्मो नियतो सम्बोधिपरायणोति, पारा. 453; - सजी त्रि., [अविनयसंज्ञी], (किसी काम को) 10; अविनिपातधम्मोति विनिपातेतीति विनिपातो, नास्स विनय के विपरीत समझने वाला - ञी पु, प्र. वि., ए. व. विनिपातो धम्मोति अविनिपातधम्मो, पारा. अट्ठ. 1.149; - - यो च अविनये अविनयसी , यो च विनये विनयसञी. म्मा ब. व. - अतिरच्छानगामिनोति देसनामत्तमेत, अ. नि. 1(1).103.
अविनिपातधम्माति अत्थो, स. नि. अट्ठ. 1.194. अविनास पु., विनास का निषे०, तत्पु. स. [अविनाश]. अविनिपातसभाव त्रि., ब. स. [अविनिपातस्वभाव], नरक विनाश का अभाव, नित्यता - क त्रि०, विनासक का निषे०, जैसी अपायभूमियों में न उत्पन्न होने वाले स्वभाव से युक्त ब. स. [अविनाशक]. विनाश न करने वाला, धन का - चतूसु अपायेसु अविनिपातनसभावोति अत्थो, स. नि. अट्ठ. अपव्यय न करने वाला/वाली - के पु., द्वि. वि., ब. व. 3.311. -- अनक्खाकितवे तात, असोण्डे अविनासके, जा. अट्ट. अविनिब्भुजन्त त्रि., वि + नि + vभुज के वर्त. कृ. का निषे. 5.111; अविनासकेति तव सन्तकानं धनधनादीनं अविनासके [अविनिर्भुजत्], अवगाहन या गहन अनुचिन्तन न करने जा. अट्ठ. 5.113; -- सिका स्त्री॰, प्र. वि., ए. व. -- तत्थ वाला, स्पष्ट प्रभेद या विभाजन नहीं कर रहा, अलग अलग च होति अधुत्ती अथेनी असोण्डी अविनासिका, अ. नि. करके नहीं दिखा रहा - मुजं पु.. प्र. वि., ए. व. - 3(1).94; - कायो ब. व. - तत्थ च भविस्साम अधुत्ती अथेनी बहुस्सुतं अनागम्म, धम्मट्ठ अविनिभुजं. जा. अट्ठ. 5.117; असोण्डी अविनासिकायो ति, अ. नि. 2(1).33;-धम्म त्रि., अविनिभुजन्ति अत्थानत्थं कारणाकारणं अनोगाहन्तो अतीरेन्तो विनासधम्म का निषे. [अविनाशधर्मन्], अविनाशी, कभी न कोचि पञ्ज अधिगच्छति, ताताति, जा. अट्ठ. 5.118. विनष्ट न होने वाला (निर्वाण), अविनश्वर स्वभाव वाला - अविनिब्भुत्त त्रि., वि + नि + vभुज के भू. क. कृ. का निषे. म्म नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अच्चन्तसङ्घातं अविनासधम्म [अविनिर्भुक्त, बौ. सं. अविनिर्भूत]. अन्य से पृथक् न किया निब्बानं निट्ठा अरसाति अच्चन्तनिट्ठो, अ. नि. अट्ठ. 3.342; हुआ, अन्य से अलग न करने योग्य, अवियुक्त, अविभाजित
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