Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

View full book text
Previous | Next

Page 636
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवण्णनीयसोभ 609 अवति वचन कहने वाला - केसु पु., सप्त. वि., ब. व. - तेसु कर्णाभूषण - को प्र. वि., ए. व. - उत्तंसो सेखरा वेळा अवण्णभासकेसु, तस्मिं वा अवण्णे तुम्हे भवेय्याथ चे, यदि मुद्धमाल्ये वटसको, अभि. प. 308; उत्तंसो त्ववतंसो च भवेय्याथाति अत्थो, दी. नि. अट्ठ. 1.49; - वादी त्रि., कण्णपूरे च सेखरे, अभि. प. 870; - टंसा प्र. वि., ब. व. [अवर्णवादिन]. दूसरों के बारे में बुरा बोलने वाला, निन्दा - विरोचन्ति परिक्खित्ता, अवटसा सुनिम्मिता, अप. 2.249; करने वाला -- दि पु., द्वि. वि., ए. व. - तत्रापि अवण्णवादिं थेरीगा. अट्ठ. 76; - टंसं/टंसकं द्वि. वि., ए. व. - मोलिं अपस्सन्तो अत्तनो गुणकथमेव सुत्वा हिमवन्तपदेसे नु खो। वटंसं पामङ्गभिङ्गारं हरिचन्दनं म. वं. 11.28; वटंसं ति कथान्ति .... जा. अट्ठ. 3.94; - विरहित त्रि., तत्पु. स. कण्णपिलन्धनं वटसकं ति वुत्तं होति, म. वं. टी. 11.28; - [अवर्णविरहित], निन्दारहित, अनिन्दित, अपयश का अपात्र सको पु., प्र. वि., ए. व. - वटसकोति कण्णस्स उपरि - स्स पु., ष. वि., ए. व. - बुद्धस्स अवण्णं भासतीति पिळन्धनत्थं कतपुष्फविकति, सो च वटसो ति वुच्चति, वि. अवण्णविरहितस्स अपरिमाणवण्णसमन्नागतस्सापि बुद्धस्स वि. टी. 263; - सका ब. व. - वटसका वातधुता, वातेन भगवतो, दी. नि. अट्ठ 1.36; - संयुत्त त्रि., तत्पु. स. [अवर्णसंयुक्त], अपयश या निन्दा का पात्र, निन्दित - त्ता अवतत/ओतत/ओत्थत त्रि., अव + Vतन का भू, क. पु., प्र. वि., ब. व. - अवण्णसंयुता जहन्ति जीवितं, इतो कृ. [अवतत/अवस्तीर्ण], ऊपर की ओर फैलाया हुआ, विमुत्तापि च यन्ति दुग्गतिं, जा. अट्ठ. 3.390; अवण्णसंयुता आच्छादित, ढका हुआ - त्थतं नपुं., प्र. वि., ए. व. - यस्स जहन्तीति अधम्मिका लोलराजानो अवण्णेन युत्ता हुत्वा अच्चन्तदुस्सील्य, मालुवा सालमिवोत्थतं, ध. प. 162; पाठा. जीवितं जहन्ति, जा. अट्ठ. 3.391; - संसग्गभय नपुं.. ओत्थत; खेत्ते सुविरुळ्हं धञबीजं सम्मा पवत्तमानेन वस्सेन तत्पु. स. [अवर्णसंसर्गभय]. निन्दनीय हो जाने का डर - ओततविततआकिण्णबहुफल हुत्वा सस्सुहानसमयं पापुणाति, या प. वि., ब. व. - सुखीपि हेके न करोन्ति पापं. मि. प. 282. अवण्णसंसग्गभया पुनेके, ... यसदायकस्स सामिकस्स अवतरण नपुं., अव + Vतर से व्यु., क्रि. ना. [अवतरण], अपरज्झन्तान अवण्णो भविस्सतीति अवण्णसंसग्गभया न नीचे उतरना, नीचे की ओर जा रहा उतार - णे सप्त. वि०, करोन्ति, जा. अट्ठ. 6.203; 204; -- हरण नपुं.. तत्पु. स. ए. व. - अवतारोवतरणे तित्थरिम विवरे प्यथ, अभि. प. [अवर्णहरण], अपयश का प्रसार, बदनामी का फैलाव - 981. गेहतो गेहं, गामतो गाम, जनपदतो जनपदं अवण्णहरणं, अवतरति अव + Vतर का वर्त., प्र. पु., ए. व. [अवतरति]. विभ. अट्ठ. 457; विसुद्धि. 1.28; - हारिका स्त्री., तत्पु. स. नीचे उतर कर आता है, डुबकी लगाता है, प्रवेश करता है [अवर्णहारिका], अपयश का प्रसार एवं प्रचार करने वाली - यदि चतूसु अरियसच्चेसु अवतरति, किलेसविनये - सविपना पापना सम्पापना अवण्णहारिका परपिट्टिमंसिकता, सन्दिस्सति, नेत्ति. 20-21. विभ. 405; अवण्णहारिकाति एवं मे अवण्णभयापि दस्सतीति अवतार पु., अव + Vतर से व्यु. [अवतार], 1. उतार, वह गेहतो गेह... अवण्णहरणं विभ. अट्ट, 457; विसुद्धि. 1.28; स्थान, जहां, नीचे उतर कर आ सके, नहाने का घाट, विवर - ण्णारह त्रि.. [अवर्णाह], निन्दनीय, निन्दा किए जाने --रो प्र. वि., ए. व. - अवतारोवतरणे तित्थस्मिं विवरे प्यथ, योग्य - स्स पु.. ष. वि०. ए. क. - अननविच्च अपरियोगाहेत्वा । अभि. प. 981; 2. प्रारम्भिक प्रवेशद्वार, भूमिका, स. उ. प. अवण्णारहस्स वण्णं भासति, अ. नि. 1(1).107; अ. नि. के रूप में ही प्राप्त - रं द्वि. वि., ए. व. - अभिधम्मावतारन्तु 1(2).3; इध, पोतलिय, एकच्चो पुग्गलो, अवण्णारहस्स मधुरं मतिवड्चन, अभि. अव. 2; अभिधम्म ओतरन्ति अनेनाति अवण्णं भासिता होति, अ. नि. 1(2).115.. अभिधम्मावतारं नाम पकरणं, अभि. अव., अभि. टी. 1.1303; अवण्णनीयसोभ त्रि.. ब. स. [अवर्णनीयशोभा], वर्णन न बालावतारं भासिस्स, बाला. 65. करने योग्य शोभा वाला, अत्यन्त श्रेष्ठ शोभा से युक्त - भं अवति' अव (रक्षा करना) का वर्त, प्र. पु., ए. व. - अवति नपुं, प्र. वि., ए. व. - तं सुवण्णरूपकं जिव्हाय अवण्णनीयसोभं अहोसि, जा. अट्ठ. 5.274. अवति ।उ (शब्द करना) का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अवते], अवतंस/अवट सक/ वटस/ वटंसक पु./नपु., शब्द करता है - उ सद्दे, अवति अवन्ति अवसि, सद्द. [अवतंस/अवतंसक], फलों से बना कान का आभूषण, 2.322. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761