Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 643
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवरुन्धति/ओरुन्धति 616 अवलेखन/अपलेखन व. - नीहरित्वा यक्षगणे पिसाचे अवरुद्धके, दी. वं. 21 लाया जा रहा - ना स्त्री., प्र. वि., ए. व. - गेहे पन ... -- क' पु., व्य. सं., एक यक्ष का नाम - द्धको प्र. वि., ए. सुवण्णपाति भाजनन्तरे निक्खित्ता दीघरत्तं अवलजियमाना व. - एको पन अवरुद्धको नाम यक्खो... आगन्त्वा अट्ठासि, मलग्गहिता अहोसि. जा. अट्ठ. 1.118... ध. प. अट्ट, 1.378. अवलम्ब अव+Vलम्ब का पू. का. कृ. [अवलम्ब्य], सहारा अवरुन्धति/ओरुन्धति अव + रुध का वर्तः, प्र. पु., ए. लेकर, किसी पर टिक कर या आश्रित होकर - नावाय च व. [अवरुणद्धि], क. बन्द कर देता है, घेरे के अन्दर कर त्वं अवलम्ब तिट्ठसि, पे. व. 443; अवलम्बाति अवलम्बित्वा देता है, नियन्त्रित कर देता है - गावमवरुन्धति वजं. मो.. अपस्सेनं अपस्साय, पे. व. अट्ठ. 164. व्या. 2.2; ख. बाहर कर देता है, निष्कासित कर देता है अवलम्बक/ओलम्बक त्रि., किसी के सहारे लटका हुआ -द्धसि म. पु., ए. व. - अवरुद्धसीति रट्ठा नीहरसि, जा. (सीका आदि) - कं पु., द्वि. वि., ए. व. - सुवपोतको तं अट्ठ. 7.261. सुत्वा ... साखायं ओलम्बकं ओतारेन्तो विय.... जा. अट्ठ. अवरोज पु., व्य. सं., विपस्सी बुद्ध के समकालीन एक 6.222. गृहस्थ तथा उसके भाजे का नाम - विपस्सीबुद्धकाले किर अवलम्बन नपुं., अव +Vलम्ब से व्यु.. क्रि. ना. [अवलम्बन], एस अवरोजस्स नाम कुटुम्बिकस्स भागिनेय्यो... अवरोजोक. आधार, सहारा, आश्रय, ख. नीचे की ओर लटक रहा नाम अहोसि.ध. प. अट्ठ. 2.211. - अवसंसनं अवलम्बनं, सद्द. 2.406. अवरोध/ओरोध पु., अव + रुध से व्यु., क्रि. ना. अवलित्त त्रि०, अव+लिप का भू. क. कृ. [अवलिप्त], शा. [अवरोध], अन्दर बन्द कर देना, घेरा-बन्दी करना, - धं अ. लीपा हुआ, पोता हुआ, अन्दर और बाहर में की गई द्वि. वि., ए. व. - ... तेपि सङ्घारखन्धपरियापन्नत्ता एत्थेव लिपाई पोताई से युक्त, ला. अ. आसक्त - त्ता पु., प्र. वि., अवरोधं गच्छन्ति, विभ. अट्ट, 29;- तो प. वि., ए. व. - ए. व. - कुटि नाम उल्लित्ता वा होति अवलित्ता वा .... तस्मा अजेसं तदवरोधतोपि पञ्चेव वुत्ताति, तदे; -धो प्र. पारा. 229. वि., ए. व. - ... सब्बपञत्तनीञ्च विज्जमानादीसु छसु अवलेखति/ओलेखति अव + लिख का वर्त., प्र. पु., ए. पञत्तीसु अवरोधो, उदा. अट्ठ. 13. व. [अवलिखति], शा. अ. रगड़ कर या खरोंचकर मिटा अवलक्खण त्रि., अमङ्गलसूचक, अपशकुन का सङ्केतक - देता है, ला. अ. क. स्नानगृह में अपने मैल को रगड़ कर णो पु., प्र. वि., ए. व. - येसं हत्थतो लाभं न लभति, तेसं साफ कर देता है - न्ति ब. व. - फरुसेनपि कद्वेन असिं अवलक्खणोति गरहति, जा. अट्ठ. 1.435; तुल. अवलेखन्ति, चूळव. 366; - खेय्य विधि., प्र. पु.. ए. व. - अवमङ्गल. नावलेखेय्य फरुसेनुहतञ्चापि धोवये खु. सि. 22; - खितब्ब अवलज त्रि., Vवळजि से व्यु., सं. कृ. का निषे., परिभोग त्रि., सं. कृ. - न फरुसेन कडेन अवलेखितब्बं चूळव. नहीं करने योग्य, व्यावहारिक प्रयोग में न लाए जाने योग्य, 366; ख. पेड़ की छाल को छीलकर उतार देता है - खेय्य लुञ्ज-पुञ्ज, नहीं चलने-फिरने योग्य - जो पु., प्र. वि. विधि., प्र. पु., ए. व. - अवलेखनमत्तकेन अवलिखेय्य, अ. ए. व. - आवुसो नङ्गलत्थेर, तव विचरणमग्गो अवळञ्जो नि. अट्ठ. 2.368; ग. केशों को काट देना या मूड़ देता है विय जातो, ध. प. अट्ठ. 2.349; - जं पु., द्वि. वि., ए. व. - खिस्सन्ति भवि., प्र. पु., ब. व. - केसे मे ओलिखिस्सन्ति, - ... आहारं थम्भेत्वा मग्ग अवलज करोति, म. नि. अट्ठ. थेरगा. 169; ... 'मम केसे ओलिखिस्सं कप्पेमी ति केसादीन (मू.प.) 1(2).271; - जे नपुं, द्वि. वि., ब. व. - सेतुसङ्कमनानि । छेदनादिवसेन कप्पनतो कप्पको ... म उपगच्छि, थेरगा. च अवलजे अकंसु. वि. व. अट्ठ. 35. अट्ठ 1.322. अवलञ्जन नपुं./त्रि., वलञ्जन का निषे०, अप्रयोग - नट्ठ अवलेखन/अपलेखन नपुं., अव + लिख से व्यु., क्रि. पु., तत्पु. स., अप्रयोग का अर्थ- द्वेन तृ. वि., ए. व. - ना., छीलना, खरोचना, रगड़कर साफ कर देना, रगड़ कर इमस्मि सुत्ते अवळञ्जनद्वेन पुराणमग्गो"त, स. नि. अट्ठ. मिटा देना - कट्ठ नपुं.. तत्पु. स. [अवलेखनकाष्ठ], 2.104. खरोंचने या रगड़ने के लिए प्रयुक्त काष्ठ का उपकरण - अवलजियमान त्रि., Vवलजि के कर्म. वा. के वर्त. कृ. का टुं नपुं., प्र. वि., ए. व. - न अवलेखनकट्ठ वच्चकूपम्हि निषे., किसी के द्वारा अप्रयुक्त, व्यावहारिक उपयोग में नहीं पातेतब्बं, चूळव. 366; अनुजानामि, भिक्खवे, अवलेखनकट्ठ For Private and Personal Use Only

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