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अलदब
अनच्छादितकोपीना
दका पु०, प्र. वि., ब. व. अलद्धन्नलवोदका, सद्धम्मो. 106. अलद्धब्ब त्रि.. लम के सं. कृ. का निषे.. नहीं प्राप्त होने योग्य नहीं मिलने योग्य ब्बं नपुं. प्र. वि. ए. व. पिण्डम्पि अलब्द्धब अहोसि. म. नि. 2.198 एत्थ पूरंतु अयुत्तद्वेन कायदुच्चरितादि अविन्दियं नाम अलद्धब्वं ति अत्थो, सद्द. 2.577. अलमोक्ख त्रि. व. स. [अलब्धाधिमोक्ष] सुदृढ़ संकल्प को प्राप्त न करने वाला क्खा पु०, प्र. वि., ब. व. ये पुब्बवुद्धेसु कताधिकारा अलद्वमोक्खा जिनसासनेसु अप. 1.1. अलद्धविपाकवार त्रि. ब. स. [अलब्धविपाकवार], परिपाक होने के अवसर को न प्राप्त करने वाला, वह जिसके परिपाक का अवसर ही नहीं आया है- रं नपुं०, प्र. वि., ए. व. अपरिपक्कवेदनीयन्ति अलद्धविपाकवारं अ. नि. अड्ड
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3.263.
अद्धा लभ के पू. का. कृ. लद्धा का निषे. [अलभ्य ], नहीं प्राप्त कर कथं झायिं बहुलं कामसञ, परिवाहिरा होन्ति अलद्ध यो तन्ति, स० नि० 1 ( 1 ). 148, 149; अलद्धाति अलभित्वा स. नि. अट्ठ. 1.165. अलद्वाधिमोक्ख त्रि. ब. स. [अलब्धाधिमोक्ष] सुदृढ़ संकल्प को प्राप्त न किया हुआ, संशयालु क्खे पु०, सप्त.वि., व.- विचिकिच्छासहगते अलद्धाधिमोक्खे दुब्बलेपि पटिसन्धिं आकढमाने उद्धच्चसहगतं लद्धाघिमोक्खं बलवं कस्मा नाकड्डूतीति ?, ध. स. अट्ठ. 300.
ए.
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अलद्धूपचार त्रि. ब. स. [ अलब्योपचार) पूर्णरूप से प्रयास न किया गया, आधे-अधूरे रूप में किया गया रं नपुं. प्र. वि. ए. व. अलडूपचार सिप्पं फलं न देति ताताति, म. नि. अड. (म.प.) 2.235. अळनागराजमहेसी स्त्री. व्य. सं., नागों की एक रानी चित्तलपब्बते भिक्खुना नीहटउदकवाहकं अळनागराजमहेसी विय, एवम्पि वट्टति, पारा अट्ठ. 2.234 पाठा. अळन्दनागराजमहेसी. अलपितलिप के भू० क. कृ. लपित का निषे. [ अलपित], नहीं कहा गया, नहीं स्थापित या नहीं प्रतिपादित तं नपुं. प्र. वि., ए. व. अभासितं अलपितं तथागतेन भासितं लपितं तथागतेनाति दीपेति, महाव. 476. अलब्भत्र लभसे सं. कृ. लब्भ का निषे [ अलभ्य ] नहीं प्राप्त करने योग्य नहीं मिल सकने योग्य नपुं. प्र. वि., ए. व.
व॰
यमिदं कम्मं दिधम्मवेदनीयं तं उपक्कमेन
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अलमत्थ / अलमत्त
वा पधानेन वा सम्परायवेदनीयं होतूति अलब्भमेतं, म. नि.
3.7.
अलब्मनीय त्रि लभ के सं. कृ. लब्भनीय का निषे. [ अलभनीय] उपरिवत् यानि नपुं. प्र. वि. ब. व. - अलब्भनीयानि दानानि समणेन वा ब्राह्मणेन वा देवेन वा मारेन वा ब्रह्मना वा केनचि वा लोकस्मिं. अ. नि. 2 (1).50; यद्वान नपुं. कर्म. स. [ अलभनीयस्थान] प्राप्त न हो सकने योग्य चीज या वस्तु नं. प्र. वि., ए. व. पण्डितानं कथं सुत्वा अलब्भनीयट्ठानन्ति तथतो अत्वा अप्पमत्तकम्पि सोकं न करिसूति. जा. अड्ड. 4.53. अलब्मनेय्य त्रि.. लभ के सं. कृ. लब्भनेय्य का निषे. [ अलमनीय] उपरिवत् थ्यो पु. प्र. वि. ए. व. सचे पजानेय्य अलब्भनेय्यो, मयाव अञ्ञेन वा एस अत्थो, अ. नि. 2 ( 1 ) 53: जा. अड. 3.177 - खेमता स्त्री०, भाव., कुशल- मङ्गल या कल्याण का अप्राप्य होना - य प्र. वि., ए. क. अतायनताय चेव अलब्भनेय्यखेमताय च अताणतो, महानि. अ. 132; - ट्ठान नपुं. कर्म. स. [अलभनीयस्थान ], नहीं प्राप्त हो सकने योग्य अवस्था या स्थितिनं नपुं प्र. वि. ए. व. यस्मा अलब्भियं अलब्भनेय्यद्वानहि नामेतन्ति अत्यो जा. अनु. 4.77 पतिद्वत्रि ब. स. [ अलभनीयप्रतिष्ठ], किसी अवस्था पर दृढ़-स्थिति प्राप्त न करने वाला द्वं नपुं. प्र. वि., ए. व. दुक्खोगाहं अलब्भनेय्यपतिद्वञ्च तस्मा गम्भीरं, ध. स. अड. 24 सकलसुत्तन्तं भगवा परेस पञ्ञाय अलब्धनेय्यपतिद्वं परमगम्भीरं सब्बञ्ञतञाणं दरसेन्तो... म. नि. अट्ठ० (मू०प.) 1 (1).60; - वत्थु नपुं०, कर्म. स. [अलभनीयवस्तु ], प्राप्त न हो सकने योग्य वस्तु स्मिं सप्त. वि. ए. व. - आकासेन गच्छन्तस्स बन्दस्स गहेतुकामतासदिसं अलब्भनेय्यवत्थुरिमं इच्छाभावतोति अधिप्यायो पे. व. अट्ट
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55.
अलब्जियत्र लभ के सं. कृ.. लभिय का निषे. [अलभ्य]. नहीं पाए जाने योग्य, अप्राप्य यं नपुं. प्र. वि. ए. व. जातो मे मा मरी पुत्तो, कुतो लब्भा अलब्मिय, जा. अड्ड 4.77 यस्मा अलब्धियं अलब्धनेष्यद्वानहि नामेतन्ति अत्थो तदे.. अलमत्थ/अलमत्त त्रि. ब. स. [ अलमर्थ], सक्षम, समर्थ, योग्य, निपुण त्यो पु०, प्र. वि., ए. व. एवं भोगे समाहत्वा, अलमत्तो कुले गिही दी. नि. 3.143; अलमत्थोति युत्तसभावो समत्थो वा परियत्तरूपो घरावासं सण्ठापेतुं दी.
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