Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 627
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८.02. अवहरि/अवाहरी 600 अवकप्पना अज्झोकासे चङ्कमति, महाव. 20; 4. निश्चय या पुष्टि - व. - एको अरओ विहरसि, नावकसि जीवितं, जा. अट्ठ. हत्थदाहनरिन्देन तस्मिं अत्थे वधारिते. चू. वं. 47.4; 5. 4.334; नावकङ्घसीति सयं दुल्लभभोजनो हुत्वा एवरूपं भोजनं शुद्धि की प्रकृष्टता या अधिकता - वोदानन्ति विसुद्धता, अञ्जस्स देसि, कि अत्तनो जीवितं न कसि, जा. अट्ठ. दी. नि. अट्ठ. 1.84; 6. तिरस्कार या अपमान - यो 4.335; - ङ्खामि उ. पु., ए. व. - भत्तिञ्च तयि सम्परसं चत्तानं समुक्कसे, परे च मवजानाति, सु. नि. 132; परे च नावकवामि जीवितं, जा. अट्ठ. 5.334. मवजानातीति तेहियेव परे अवजानाति, नीचं करोति, सु. अवकढयित्वा अव + कड्ड का पू. का. कृ., शा. अ. नीचे नि. अट्ट, 1.144; 7. जानना - एत्थ च यथा लोके की ओर खींच कर, ला. अ. कहीं अन्यत्र से लेकर या अवगन्ता अवगतोति वुच्चति, खु. पा. अट्ट. 7; 8. छीनना, उद्धृत कर - हेतुमवकड्ढयित्वा, एसो हारो परिक्खारो, नेत्ति. चुराना - संविदावहारो नाम सम्बहुला संविदहित्वा एको 5; हेतुमवकवयित्वाति तं यथावुत्तपच्चय सङ्घात भण्डं अवहरति ..., पारा. 60; ख. व्यञ्जनादि पदों से जनकादिभेदभिन्नं हेतुं आकवित्वा सुत्ततो निद्धारेत्वा यो पूर्व प्रायः 'ओ' के रूप में परिवर्तित, अप के स्थान संवण्णनासङ्घातो ..., नेत्ति. अट्ठ. 160. पर भी प्रयुक्त - ओलोकेथ, भिक्खवे, लिच्छविपरिसं, अपलोकेथ, अवकण्णक त्रि., [अवकर्णक], कनकटा, कटे हुए कान भिक्खवे, लिच्छविपरिसं. दी. नि. 2.76; सो नेव सक्कुण्णेय्य वाला (दास के लिये प्रयुक्त नाम) - के नपुं. प्र. वि., ए. उग्गिलितुं न सक्कुण्णेय्य ओगिलितुं, म. नि. 2.62. व. - हीनं नाम नाम- अवकण्णक, जवकण्णक, धनिट्ठक अवहरि/अवाहरी अव + हर का अद्य, प्र. पु., ए. व. सविडकं, कुलवड्वक, पाचि.8; अवकण्णकादि दासानं नाम [अवाहरत], नीचे की ओर ले गया - पातालरजो हि दुत्तरो, होति, तस्मा हीनं, पाचि. अट्ट. 5; अवकण्णकन्ति मा तं कामरजो अवाहरि स. नि. 1(1).228; अयं कामरजो छिन्नकण्णकनाम, वजिर. टी. 257. तं मा अवहरि अपायमेव मा नेतूति अत्थो, स. नि. अट्ठ. 1.253. अवकन्त त्रि., अव + कत का भू. क. कृ. [अवकृत्त], काटा अवं अ०, उप., क्रि. वि., प्रायः स. प. में ही प्रयुक्त [वै. हुआ - तेनेव तस्सा गलकावकन्तं, अयम्पि अत्थो अवाक /अवान्], नीचे, नीचे की ओर - तं सदं सुत्वा बहुतादिसोवा ति, जा. अट्ट, 4.225. तुरितमवसरी सो, सु. नि. 690; पाठा. अवसरी; अवसरीति अवकन्तति अव+vकत का वर्त, प्र. पु. ए. व. [अवकृन्तति]. ओतरि, सु. नि. अट्ठ. 2.187; पतन्ति सत्ता निरयं अवंसिरा, टुकड़ों में करके काट देता है, खण्ड-खण्ड कर देता है, - सु. नि. 251; ... अवंसिरा अधोगतसीसा, सु. नि. अट्ठ. 1.266. न्ति प्र. पु. ब. व. - ओक्कन्तति पुनपुनन्ति अवकन्तितढ़ाने अवंसिर त्रि., ब. स. [अवाकशिरस]. नीचे की ओर अपना खारोदकेन आसिञ्चित्वा पुनप्पनम्पि अवकन्तन्ति, पे. व. सिर किया हुआ - रो पु., प्र. वि., ए. व. - अवन्तं सिरो अट्ठ. 186; - थ अनु०. म. पु., ब. व. - पुथुसो मं यस्स, सो यं अवंसिरो, सद्द. 1.102; अवंसिरोति आदिसु विकन्तित्वा, खण्डसो अवकन्तथ, जा. अट्ठ. 4.140; - न्ता निच्चं ववत्थितविभासत्ता वाधिकारस्स, मो. व्या. 1.38; - रा पु., वर्त. कृ., प्र. वि., ब. व. - अग्गे चाति अवकन्तन्ता पन ब. व. - एवं निसिन्नकाले एवं अवंसिरा पतिस्सन्तीति, ध. पठमं अग्गे, ततो मज्झे छेत्वा सब्बपच्छा मूले छिन्दथ, जा. प. अट्ठ. 1.245; निगण्ठा अवंसिरा आवाटे पतिंस. ध. प. अट्ठ. 4.141; - न्तित त्रि., भू. क. कृ. - ओक्कन्तति अट्ठ. 1.246. पुनप्पुनन्ति अवकन्तितट्ठाने .... पे. व. अट्ठ. 186. अवकंस पु., अव + ।कंस से व्यु., क्रि. ना. [अवकर्ष], अवकप्पन नपुं., अव + कप से व्यु., क्रि. ना., कप के अर्थ पतन, नीचे की ओर घसीटा या खींच कर ले जाया जाना के रूप में प्रयुक्त, सक्षम होना, समर्थ होना - ने सप्त. वि., - तो प. वि., ए. व. - पच्चयो सत्तधा छठा, होति तं ए. व. - कप अवकम्पने, कपेति कप्यति, कपणो, कपणो ति अवकसतो, ..., विभ. अट्ठ. 165; वत्थुनो कायजिव्हानं, वसा करुणायितब्बो, सद्द. 2.553; भू अवकप्पने, सद्द. 2.555. तिसावकसतो, उक्कंसस्सावकसस्स, अन्तरे अनुरूपतो, अभि.. अवकप्पना स्त्री., उपरिवत् [अवकल्पना], शा. अ. घोड़े अव. 100. का लगाम द्वारा नियन्त्रण, ला. अ. नियन्त्रण - अवकप्पनाय अवकसति अव + कंख का वर्त., प्र. पु., ए. व., इच्छा कप्पितअस्सो आकड्डियमानोपि राजानं गहेत्वा पलायि, जा. करता है, कामना करता है - एवम्हि धीरा कुब्बन्ति, अट्ठ. 6.236; एवं अवकप्पनाय कप्पेत्वा मज्झिमयामसमनन्तरे नावकवन्ति जीवितं. ध. प. अट्ठ. 1.243; - सि म. पु.. ए. .... तदे.. For Private and Personal Use Only

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