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अरिट्ठ
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अरित्त
काके... च पेणिलवमे, अभि. प. 822; - टुं द्वि. वि., ए. व. अतेकिच्छा अनिवत्तिनो अरिष्टकण्टकसदिसा, म. नि. अट्ठ. - अमज्जं अरिष्टुं पिवति, पाचि. 150; ख. जंगली कौआ - (म.प.) 2.88. अरिहो आसवे काके निम्बे च पेणिलद्दुमे, अभि. प. 822; अरिट्ठकथा स्त्री., विन. वि. के एक खण्ड का शीर्षक, विन. एत्थ 'काको धको वायसो बलिभोजी अरिहो ति इमानि वि. 137-138. काकाभिधानानि, सद्द. 2.325; ग. रीठे का पेड़ - अरिदट्ठो अरिट्ठजनक पु., महाजनक का पुत्र, मिथिला का राजा - फणिलो भवे, अभि. प. 555; घ. नीम का पेड़ - निम्बो रो अच्चयेन अरिट्ठजनको राजा हुत्वा .... जा. अट्ठ. अरिष्टो सुचिमन्दी, अभि. प. 570.
6.38. अरिट्ठ' नपुं.. [अरिष्ट]. क तर्क, तोड़ - तक्के मरणलिङ्गे अरिद्वपुर नपुं., सिविरट्ट में अवस्थित एक नगर - रं द्वि. च अरिद्वभसुभे सुभे, अभि. प. 822; ख. मरण का चिह्न, वि., ए. व. - वातवेगेन सिविरटे अरिद्वपुरं नाम गन्चा दुर्भाग्य का चिह, उपरिवत्, ग. अशुभ, दुर्भाग्य, उपरिवत्; .... जा. अट्ठ. 6.246. घ. शुभ, सुख, सौभाग्य, उपरिवत्.
अरिहसिक्खापद नपुं., अरिट्ठ नामक एक भिक्षु के अनुचित अरिट्ठ' पु., क. अनेक व्यक्तियों के नाम के रूप में प्राप्त 1. आचरण को पाचित्तिय नामक आपत्ति (अपराध) प्रज्ञप्त एक प्रत्येकबुद्ध - अरिद्वो उपरिठ्ठो तगरसिखी यसस्सी, म. करने वाला शिक्षापद, पाचि. 178-182. नि. 3.115; 2. एक भिक्षु - आयस्मा अरिद्वो भगवतो अरित्त' त्रि., रिञ्च के भू. क. कृ. का निषे. [अरिक्त], नहीं पच्चस्सोसि, स. नि. 3(2).385; 3. एक नाग - तस्स। खाली किया हुआ, अव्यर्थ, विपाक से अशून्य, अमुक्त - त्तो अरिद्वोति नाम करिंसु ... चत्तारो पुत्ते विजायित्वापि पु., प्र. वि., ए. व. . कामेहि अरित्तो होति, स.नि. नागभवनभावं न जानाति, जा. अट्ठ. 7.11; 4. श्रीलङ्का के 2(1).11; किलेसकामेहि अरित्तो होति अन्तो कामानं भावेन राजा देवानम्पिय तिस्स के भतीजे तथा भिक्ष महेन्द्र के शिष्य अतुच्छो, स. नि. अठ्ठ. 2.229; - ज्झान त्रि., ब. स. एक अमात्य का नाम - टुं द्वि. वि., ए. व. - अमच्च [अरिक्तध्यान], ध्यान को नहीं छोड़ा हुआ - ज्झानो पु०, सेनापतिं अरिष्टुं सालं च परंचपब्बतं. दी. वं. 11.32; ख. प्र. वि., ए. व. - भिक्खु अरित्तज्झानो विहरति ... अनेक स्थानों या क्षेत्रों के नाम के रूप में प्राप्त 1. श्रीलङ्का ओवादपतिकरो, अ. नि. 1(1).13; अरित्तज्झानोति के एक पर्वत का नाम - युद्ध सज्जा अरिष्टुं तं उपसङ्कम्म अतुच्छज्झानो अपरिच्चत्तज्झानो, अ. नि. अट्ठ. 1.55; - ता पब्बतं. म. वं. 10.64; 2. श्रीलङ्का के एक विहार का नाम स्त्री., भाव. [अरिक्तता], नहीं खाली कर देना, नहीं त्याग - अरिद्वविहारं कारेसि तथा कुञ्जरहीनक, म. वं. 33.27. देना, मुक्त न होना - य तृ. वि., ए. व. - आसयस्स अरिद्वक' त्रि., अरिट्ठ (1ग) से व्यु. [अरिष्टक], रीठे के कड़े अरित्तताय अनिग्गते... दुक्खाहि वेदनाहि फुट्ठो, उदा. अट्ठ. फल के समान कृष्ण वर्ण वाला, रीठा जैसे काले रङ्ग का । 93. - को पु.. प्र. वि., ए. व. - सेय्यथापि नाम महा अरिटको अरित्त' नपुं.. [अरित्र], नौकाओं को आगे बढ़ाने में प्रयुक्त मणि ..., स. नि. 1(1).123; अरिटकोति काळको, स. नि. पतवार, डांड या लंगर - त्तं प्र. वि., ए. व. - अरित्तं अट्ठ. 1.150; अरिखकोति अरिखकवण्णो, लीन. (स. नि. केनिपातोथ अभि. प. 667; तुल. अमर. 1.10; तत्थ अरीयति टी.) 1.177.
तेन नावाति अरित्तं पाजनदण्डी, विसुद्धि. महाटी. 1.310; - अरिहक' पु., ब. व. में ही प्राप्त, देवताओं का एक वर्ग- त्तेन तृ. वि., ए. व. - विना अरित्तेन न सक्का ठपेतु, का प्र. वि., ब. व. - अरिखका च रोजा च उमापुप्फनिभासिनो, विसृद्धि. 1.185; यो पन... थेय्यचित्तो अरित्तेन वा फियेन वा दी. नि. 2.191; अरिद्वका च रोजा चाति अरिट्ठकदेवा च पाजेति, पाराजिक, पारा. अट्ठ 1.266; - बल नपुं.. तत्पु. स. रोजदेवा च, दी. नि. अट्ठ. 2.254.
[अरित्रबल], लङ्गर या पतवार की शक्ति - लेन तृ. वि., अरिट्ठकण्डकसदिस त्रि., तत्पु. स. [अरिष्टकण्टकसदृक]. ए. व. - सेय्यथापि नाम अपरिसण्ठितजलाय सीघसोताय दुखदायक कांटों जैसा, असौभाग्यदायक या पीड़ाप्रद कांटों नदिया अरित्तबलेनेव नावा तिट्ठति, विसुद्धि. 1.185; सरीखा - सो पु., प्र. वि., ए. व. - सत्तमे बुद्धानम्पि अरित्तबलेनाति पाजनदण्डबलेन, विसुद्धि. टी. 1.203; - अतेकिच्छो अनिवत्ती अरिष्टकण्डकसदिसो होति. म. नि. तूपत्थम्मन नपुं., तत्पु. स., लंगर द्वारा (नौकाओं का) अट्ठ. (उप.प.) 3.98; - सा ब. व. - सत्तमे बुद्धानम्पि ठहराव या आगे बढ़ने से विराम करा देना -- नवसेन तृ.
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