Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 605
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरुणाभ 578 अरूप अरुणाम त्रि., ब. व. [अरुणाभ]. लाल रङ्ग की चमक वाला, अरूपाति, थेरगा. अट्ट. 2.398; 2. अरूप-ध्यान, जिसमें चित्त सूर्य के समान आभा वाला - मं स्त्री., द्वि. वि., ए. व. - को आकाररहित आकाश आदि चार आलम्बनों पर एकाग्र नागाहट अञ्जनं च अरुणाभं च मत्तिक, म. वं. 11.29. किया जाता है - तस्सातिक्कमनत्थाय, अरूपं पटिपज्जति, अरुणुद्वान नपुं.. तत्पु. स. [अरुणोत्थान], सूर्य का ऊपर की अभि. अव. 128; अरूपन्ति अरूपावचरभावनं, अभि. अव०, ओर उठना, दिन निकलना - नं प्र. वि., ए. व. - भगवतो अभि. टी. 2.190; ख. त्रि., ब. स. [अरूप], आकार या रूप किर धम्मद सनापरिनिद्वानञ्च अरुणुहानञ्च से रहित, अशरीरी, अभौतिक - पो पु., प्र. वि., ए. व. - रस्मिविस्सजनञ्च एकक्खणे अहोसि. म. नि. अट्ठ. (उप.प.) वण्णसङ्घातं रूपं अस्स अत्थीति रूपी, न रूपीति अरूपीति 3.225; - वेला स्त्री., तत्पु. स. [अरुणोत्थानवेला], सूर्योदय आह 'अरूपो ति, म. नि. टी. (म.प.) 1(2).77; - पा ब. क. का समय, दिन के निकलने का समय - य सप्त. वि., ए. - सरूपा, भिक्खवे, उप्पज्जन्ति पापका अकुसला धम्मा, नो व. - सचे अरुणट्ठानवेलाय तेसं आबाधो ववति, तेसंयेव अरूपा, अ. नि. 1(1).98; - क त्रि., अरूप से व्यु.. रूप या किच्चं कातब्बं विसुद्धि. 1.71. आकार से रहित - कानं पु.. ष. वि., ब. व. -- अरूपकानं अरुणुद्वापन नपुं.. तत्पु. स., सूर्य का ऊपर उठ कर आना, उपपज्जन्तानं तेसं मनायतनं उप्पज्जति, यम. 1.127; - प्रातःकाल होना, दिन निकलना - नं प्र. वि., ए. व. - कम्मट्ठान नपुं.. तत्पु. स. [बौ. सं. अरूपकर्मस्थान], चित्त भगवतो हि चारिकाचरणम्पि अरुणट्ठापनम्पि नियतं, की एकाग्रता हेतु रूपरहित आलम्बन - नं द्वि. वि., ए. व. मज्झिमपदेसेयेव चारिकं चरति, स. नि. अट्ठ. 3.309. - इति भगवा रूपकम्मट्टानं कथेत्वा अरूपकम्मट्ठानं कथेन्तो अरुणोदय पु., तत्पु. स., [अरुणोदय], सूर्योदय, प्रातःकाल .... वेदनावसेन ... कथेसि, दी. नि. अट्ट, 2.327, म. नि. - यो प्र. वि., ए. व. - अथ रत्ति विभासि, अरुणोदयो जातो, अट्ठ. (मू.प.) 1(1).286; - कसिणलाभी त्रि., जा. अट्ठ. 7.342; - ये सप्त. वि., ए. व. - अथ खुज्जस्स [अरूपकृत्स्नलाभिन्], चित्त की एकाग्रता के आलम्बन के सब्बरत्तिं सीतासिहतस्स अरुणोदये सरीरे वातो कुप्पि, जा. रूप में रूपरहित धर्मों को ग्रहण करने वाला - भिं पु., द्वि. अट्ठ. 2.189. वि., ए. व. - अरूपिन्ति एत्थ पन अरूपकसिणलाभिं अरुप्पल पु., व्य. सं., एक प्राचीन सिंहली ग्राम - लं द्वि. अरूपक्खन्धगोचरं वाति एवमत्थो दहब्बो, दी. नि. अट्ट. वि., ए. व. - विहाररस समीपम्हि अरुप्पलं ति नामक गाम 2.85; - कायिक त्रि., ब. स. [अरूपकायिक], रूप या एकं च अञानि गामक्खेत्तानि च बहू चू, वं. 100-212. आकार से रहित (प्राणी), बिना रूप-रङ्ग वाले प्राणी - का अरुभूत त्रि., [अरुषभूत], केवल व्रण या घावों ही घावों से । पु., प्र. वि.. ब. व. - ‘अस्थि देवेसु अरूपकायिका नाम भरपूर, घावों के रूप में परिवर्तित - तं पु., वि. वि., ए. व. देवा ति, मि. प. 290; - क्खन्ध पु.. तत्पु. स. - अरुकायन्ति नवन्नं वणमुखानं वसेन अरुभूतं कायं ध. प.. [अरूपस्कन्ध]. पांच स्कन्धों में रूपस्कन्ध को छोड़कर शेष अट्ठ 2.60. चार रूप या आकाररहित स्कन्ध, वेदना, संज्ञा, संस्कार एवं अरुमक्खन नपुं., तत्पु. स. [अरुष्मक्षण], घावों पर लगाया। विज्ञान स्कन्ध - धा प्र. वि., ब. व. - अरूपक्खन्धा हि जाने वाला मलहम या तेल - नं द्वि. वि., ए. व. - तेलञ्च इध भवोति आगता, विभ. अट्ट. 196; तं परिग्गण्हतो उप्पन्ना वसञ्च मुद्धनितेलं वा अभञ्जनं वा मधुं अरुमक्खनं फाणितं फस्सपञ्चमकाधम्मा चत्तारो अरूपक्खन्धा. स. नि. अट्ठ. घरधूपनं अधिद्वति, अनापत्ति, पारा. अट्ठ. 2.269. 2.96; - क्खन्धगोचर त्रि., ब. स. [अरूपस्कन्धगोचर]. अरूप क. नपुं.. तत्पु. स. [अरूप], 1. रूपस्कन्ध के रूपस्कन्ध से भिन्न वेदना आदि चार स्कन्धों को अपना अन्तर्गत न आने वाले सम्पूर्ण लौकिक एवं अलौकिक धर्म, आलम्बन बनाने वाला - रं पु., वि. वि., ए. व. - अरूपिन्ति चित्त, चेतसिक एवं निर्वाण - पं प्र. वि., ए. व. - ताणं एत्थ पन अरूपकसिणलाभिं अरूपक्खन्धगोचरं वाति एवमत्थो लेणमरूपं च सन्तं सच्चमनालयं, अभि. प. 1.6; सद्द 1.70. दहब्बो, दी. नि. अट्ठ. 2.85; - जीवित नपुं., कर्म. स. अनालयमरूपञ्च पदमच्चुतमक्खर, अभि. अव. 104; [अरूपजीवित], अभौतिक जीवन, रूपस्कन्ध से भिन्न रूपसभावाभावतो अरूपं, तदे. - प संबो. ए. व. - अरूप स्कन्धों से जुड़ा हुआ जीवन - ते सप्त. वि., ए. व. - दूरङ्गम एकचारि थेरगा. 1125; रूपाभावतो अरूपा चित्तस्स अरूपजीविते वुत्त-नयेनेव च तं वदे, अभि. अव. 87; - हि, तादिसं खण्ठानं नीलादिवण्णभेदो वा नत्थि तस्मा वत्तं ज्झान नपुं., कर्म. स. [अरूपध्यान], रूप या आकार से For Private and Personal Use Only

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