Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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अलङ्कम्मनिय
585
अलङ्कार
अलङ्कतोति नानाभरणविभूसितो, जा. अट्ट. 4.54; ध. प. अट्ठ. संवारना - णेन तृ. वि., ए. व. - अलङ्कारेनाति 1.18; - तं पु., द्वि. वि., ए. व. - सीलालङ्कारेन हि अलङ्कतं पटिजग्गनपुब्बकेन अलङ्करणेन, विसुद्धि, महाटी. 1.203; सीलकुसुमपिळन्धितं सीलगन्धानुलित्तं सदेवको लोको ख सन्तुष्टि या आनन्द पाना, केवल स. पू. प. के रूप में, आलोकेन्तो.... उदा. अट्ट, 230; - तत्तभाव त्रि., ब. स. अनलङ्करण के अन्त. द्रष्ट; - चुण्ण नपुं.. तत्पु. स. [अलङ्कृतात्मभाव], वस्त्रों एवं आभूषणों आदि से सुसज्जित [अलङ्करणचूर्ण], सजने-संवरने के उपयोग में लाया जाने शरीर वाला/वाली - वा पु., प्र. वि., ब. व. - वाला चूर्ण या पाउडर - ण्णं प्र. वि., ए. व. - वडमानन्ति बाहुसच्चसिप्पविनयेहि अलङ्कतत्तभावा, विनयानुरूपं सुभासितं अलङ्करणचुण्णं, वजिर. टी. 25. भासमाना, खु. पा. अट्ठ. 125; - पटियत्त त्रि., पूर्णरूप से अलङ्करोति अलं +vकर का वर्त., प्र. पु.. ए. व. [अलङ्करोति]. सजाया हुआ, सभी तरह से अलङ्कत - त्तो पु.. प्र. वि., ए. सजाता है, वस्त्र या आभूषण धारण करता है, अलङ्कृत व. - सन्ततिमहामत्तो गाथावसाने अरहत्तं पत्वा करता है - कुरुमानो पु., वर्त. कृ., प्र. वि., ए. व. - अलङ्कतपटियत्तोयेव आकासे निसीदित्वा परिनिबुतो, ध. प. सम्मासम्बुद्धो छबण्णबुद्धरस्सियो विस्सज्जेत्वा अट्ठ. 2.46; ततो पट्ठाय याव जेतुत्तरनगरा निरन्तर पुब्बकोट्ठकनदीतीरे लोकं अलङ्करुमानो अट्ठासि, अ. नि. अलङ्कतप्पटियत्तोव....जा. अट्ठ. 7.379; - त्तं द्वि. वि., ए. अट्ठ, 3.113; - नं द्वि. वि., ए. व. - पाचीनसमुद्दजलतलं व. - उप्पीळेत्वा बद्धमालाकपालो विय अलङ्कतप्पटियत्तं छिन्दमानं विय आकासं अलङ्कमानं विय दिब्बं चक्करतन मालासनं विय च, उदा. अट्ठ. 119; - रजत-दाम-सदिस पातुभवति, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.157; - ङ्कर अनु., म. त्रि., [अलङ्कृतरजतदामसदृक], अलंकृत चांदी की पट्टी के पु., ए. व. - तेन हि, वधु, येन अलङ्कारेन अलङ्कता पुत्तस्स समान सुन्दर - सं पु.. द्वि. वि., ए. व. - 'इतो एथा ति मे सुदिन्नरस पिया अहोसि, मनापा तेन अलङ्कारेन अलङ्कराति, वत्वा अलङ्गतरजतदामसदिसं हत्थिसोण्डं गहेत्वा तेसं हत्थे पारा. 17; -- करोहि उपरिवत - उय्यानं गन्चा महापरिसे ठपेत्वा उदकं पातेत्वा अलङ्कतवारणं ब्राह्मणानं अदासि जा. दिब्बालङ्कारहि अलङ्करोही ति, जा. अट्ठ. 1.70; -- करित्वा पू. अट्ठ. 7.237; - राजपुत्तगण पु., तत्पु. स. का. कृ.- राजा सब्बालङ्कारं अलङ्करित्वा अमच्चगणपरिवुतो [अलङ्कतराजपुत्रगण], अलङ्कत या सजे संवरे राजपुत्रों का नङ्गलकरणहानं अगमासि, जा. अट्ठ. 1.68; - अनलङ्क- पू. समूह - णो प्र. वि., ए. व. - अलङ्कतराजपुत्तगणो विय का. कृ. का निषे. - खिडं रतिं कामसुखञ्च लोके, सद्धम्मालङ्कतो सो, खु. पा. अट्ठ. 13; - वारण पु., कर्म. अनलङ्करित्वा अनपेक्खमानो, सु. नि. 59; अनलङ्करित्वा स. [अलङ्कृतवारण]. पूरी तरह से सजाया हुआ हाथी - णं अलन्ति अकत्वा, एतं तप्पकन्ति वा सारभूतन्ति वा एवं द्वि. वि., ए. व. - ... उदकं पातेत्वा अलङ्कतवारणं ब्राह्मणानं अग्गहेत्वा, सु. नि. अट्ठ. 1.89; - ङ्कारापेतुं प्रेर., निमि. कृ. अदासि, जा. अट्ठ. 7.237; - सयन नपुं., कर्म स. - कामो पु.. प्र. वि., ए. व., अलङ्कत करवाने की कामना [अलङ्कतशयन], अच्छी तरह से सजायी गई सेज या शय्या वाला - अत्थगते सूरिये मङ्गलसिलापट्टे निसीदि अत्तानं - नं द्वि. वि., ए. व. - न मे अलङ्कतसयनं सादियिस्सति, अलङ्कारापेतुकामो, जा. अट्ठ. 1.70; - ङ्कारापेत्वा प्रेर., पू. जा. अट्ठ, 7.2.
का. कृ., अलङ्कत कराके - मग्गं समं कारेत्वा कदलिपुण्णघटअलङ्कम्मनिय त्रि., कर्म. स. [अलंकर्मण्य], काम करने हेतु धजपटाकादीहि अलङ्कारापेत्वा देवि..... जा. अट्ठ. 1.62. पूरी तरह से उपयुक्त, हाथ में ले लेने योग्य, काम करने अलङ्कार पु., अलं + Vकर से व्यु. [अलङ्कार]. शा. अ. के लिये अच्छा - ये नपुं., सप्त. वि., ए. व. - तस्सा। पर्याप्त रूप से तैयार कर देना, ला. अ. सजावट, गहना, कुमारिकाय सद्धिं एको एकाय रहो पटिच्छन्ने आसने आभूषण-रो प्र. वि., ए. व. - अयमस्स पच्छिमो अलङ्कारो, अलंकम्मनिये निसज्जं कप्पेसि, पारा 292; जा. अट्ठ. 1.70; - राय च. वि., ए. व. - अलङ्काराय अलंकम्मनियेति कम्मक्खम कम्मयोग्गन्ति कम्मनियं, संवत्तन्ति, पटि. म. 42; अविप्पटिसारादिपवत्तिया मूलकारणं अलं परियत्तंकम्मनियभावायाति अलंकम्मनियं, तस्सिं हुत्वा समाधिस्स सद्धिन्द्रिायादिअलङ्कारसाधनेन अलङ्काराय अलंकम्मनिये, यत्थ अज्झाचारं करोन्ता सक्कोन्ति, पारा. संवत्तन्ति, पटि. म. अट्ठ. 1.193; - चुण्ण नपुं., कर्म. स. अट्ठ. 2.194.
[अलङ्कारचूर्ण], मुख को सजाने हेतु लगाया जाने वाला अलङ्करण नपुं.. [अलङ्करण], क. अलङ्कत करना, सजाना- चूर्ण या पाउडर - ण्णं प्र. वि., ए. व. - वडमानं ति
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