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अलगक्कोनार
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अलंकत/अलङ्कत अलगक्कोनार पु., व्य. सं., एक राजकुमार का नाम, जो अलग्गो असत्तो अप्पतिहितो अपलिबुद्धो, ... सब्बकिलेसे च श्रीलङ्का के शासक विक्कमबाहु चतुर्थ का समकालीन, सब्बत्थ अलग्गेन भवितब्ब, मि. प. 356-357; ... गच्छन्तो पेरदोषी (आधुनिक पेरादेनिय) का निवासी तथा जयवङ्घनकोट्ट राजहंसो विय कत्थचि अलग्गोयेव मम पुत्तो ति..... ध. प. नामक नगर का संस्थापक था - गिरिवंसाभिजातो सो अट्ट, 1.343; एवं सो कत्थचि अलग्गो बहि निक्खमति, अलगक्कोनारनामको, चू. वं. 91.3..
उदा. अट्ठ, 97; - चित्त त्रि.. ब. स. [अलग्नचित्त], अलगद्द पु.. [अलगर्द], पानी का सांप, गेंहुअन सांप की इच्छारहित चित्त वाला, आसक्ति-रहित चित्त वाला, अनपेक्ष कृष्ण-वर्ण वाली प्रजाति का एक सांप - सिरिंसपो फणी - त्तो पु.. प्र. वि., ए. व. - एवं करुणं परिदेवन्ते तत्थ तत्थ सप्पा लगद्दा भोगिपन्नग्गा, अभि. प. 653; तुल., अलगर्दो, अनपेक्खो अलग्गचित्तो, चरिया. अट्ठ. 169; - ता स्त्री., जलव्याल: समौ राजिलडुण्डुभौ, अमर. 1(8).5; - दो प्र. भाव. [अलग्नता], अनासक्ति, बिलगाव की स्थिति, निरपेक्षता वि., ए. व. - तस्स सो अलगद्दो पटिपरिवत्तित्वा हत्थे वा - य तृ. वि., ए. व. - तमहं अलग्गताय असत्तं, पटिपत्तिया बाहाय वा अञ्जतरस्मिं येवा अङ्गपच्चले डसेय्य, म. नि. सुट्ट गतत्ता सुगतं, चतुन्नं सच्चानं बुद्धताय बुद्धं ब्राह्मणं 1.187; गदोति हि विसरस नाम, तं तस्स अलं परिपुण्णं वदामीति अत्थो, ध. प. अट्ठ.2414; - भाव पु. [अलग्नभाव, अत्थीति अलगद्दो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).13; अलं उपरिवत् - वो प्र. वि., ए. व. - सब्बं पच्चुपट्टपेत्वा परियत्तो गदो अस्साति अलगद्दो, म. नि. टी. (मू.प.) कमलदले जलबिन्दु विय सब्बत्थ अलग्गभावो, उदा. अट्ठ. 1(2).83; - स्स ष. वि., ए. व. - तं किस्स हेतु? दुग्गहितत्ता 188; - भाव-लक्खण त्रि., ब. स. [अलग्नभावलक्षण], भिक्खवे, अलगद्दस्स, म. नि. 1.187; - द्दत्थिक त्रि., बिलगाव, निरपेक्षता या अनासक्ति के लक्षण वाला - णो [अलगार्थिक], पानी के जहरीले सांप की चाह करने पु., प्र. वि., ए. व. - अलग्गभावलक्षणो वा कमलदले वाला - को पु., प्र. वि., ए. व. - सेय्यथापि, भिक्खवे, जलबिन्दु विय, ध. स. अट्ठ. 172. पुरिसो अलगद्दत्थिको अलगद्दगवेसी अलगद्दपरियेसनं चरमानो अलग्गन? त्रि., ब. स. [अलग्नार्थ], अलिप्तता या बिलगाव .... म. नि. 1.187; अलगद्दत्थिकोति आसिविसअस्थिको, म. के अर्थवाला - द्वेन पु., तृ. वि., ए. व. - अलग्गनदेन नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).13; - परियत्ति स्त्री., कर्मस. अब्भोकासो वियाति अब्भोकासो, दी. नि. अट्ठ. 1.148. [अलगर्दपर्याप्ति], जहरीले सांप को पकड़ने में प्राप्त फल अलग्गमान त्रि., Vलग के वर्त कृ. का निषे०, नहीं लगाव के समान लाभ-सम्मान पाने के लिए बुद्धवचनों का ज्ञान रखने वाला, लिप्त न रहने वाला - नं पु., वि. वि., ए. व. पाना - तिस्सो हि परियत्तियो अलगद्दपरियत्ति नित्थरणपरियत्ति - असज्जमानन्ति अलग्गमानं, ध. प. अट्ठ. 2.174. भण्डगारिकपरियत्तीति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).13; तत्थ अळग्वानगिरि पु., सिंहल के राजा परक्कमबाहु प्रथम द्वारा यो बुद्धवचनं उग्गहेत्वा एवं चीवरादीनि वा लभिस्सामि, विजित क्षेत्र - रिं द्वि. वि., ए. व. - अळग्वानगिरि गहि चतुपरिसमज्झे वा मं जानिस्सन्तीति लाभसक्कारहेतु महाबलपरक्कमो, चू. वं. 77.12. परियापुणाति, तस्स सा परियत्ति अलगद्दपरियत्ति नाम, तदे; अलंक/अलङ्क पु./नपुं. विशेष प्रकार का आभूषण या - सुत्तन्त पु.. म. नि. के एक सुत्त का शीर्षक, जिसमें बुद्ध गहना - इमिस्सं हि कवीनं कब्बरचनायं अलंकसद्दो भूसनविसेसं ने अरिट्ठ को उसकी मिथ्या धारणा के विषय में समझाते हुए वदति, सद्द. 2.434.19. यह बतलाया है कि जैसे जहरीले सर्प को ठीक से न अलंकत्त/अलङ्कत त्रि., अलं + कर का भू. क. कृ. पकड़ने वाले व्यक्ति को सांप काट लेता है उसी प्रकार बुद्ध- [अलङ्कृत], शा. अ. पर्याप्तरूप से निर्मित, अच्छी तरह से वचनों के सही आशय को न पकड़ने वाला व्यक्ति हानि को तैयार किया गया, ला. अ. सुसज्जित कर दिया गया, प्राप्त करता है; म. नि. 1.183-196; - दूपमा स्त्री., प्र. वि., विभूषित - तो पु.. प्र. वि., ए. व. - अलङ्कतो चेपि समं ए. व., जहरीले सर्प को पकड़ने जैसी - तत्थ या दुग्गहिता चरेय्य, ध. प. 142; तत्थ अलङ्कतोति वत्थाभरणेहि पटिमण्डितो. उपारम्भादिहेतु परियापुटा अयं अलगद्पमा, ध. स. अट्ठ. 25. ध. प. अट्ठ. 2.47; एकदिवसं नगरं सज्जापेत्वा सक्को अलग्ग त्रि., Vलग के भू. क. कृ. का निषे. [अलग्न], नहीं देवराजा विय अलङ्कतो अलङ्कतएरावणपटिभागस्स लिपटा हुआ, नहीं जुटा हुआ, किसी के साथ नहीं बंधा हुआ, मत्तवरवारणस्स खन्धे निसीदित्वा .... जा. अट्ठ 3.3463; नहीं अवलम्बित - ग्गो पु., प्र. वि., ए. व. - आकासो अलङ्कतो मढकुण्डली, मालधारी हरिचन्दनुस्सदो, ... तत्थ
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